बरेली ब्यूरो । बच्चों को पढ़ा पाना आज के टाइम में सबसे टफ टास्क हो गया है. लोगों पर पहले से ही महंगाई का बोझ का है. ऊपर से उसमें स्कूल की हर साल बढ़ती मनमानी. हर साल बढ़ती फीस हर साल बदलता कोर्स एक निर्धारित शॉप से ही बुक्स मिलने की प्रॉब्लम के साथ ही स्कूल की अलग-अलग तरह की एक्टिविटीज ने भ्ज्ञी गार्जियन्स की नाक में दम कर रखा है.

बरेली (ब्यूरो)। बच्चों को पढ़ा पाना आज के टाइम में सबसे टफ टास्क हो गया है। लोगों पर पहले से ही महंगाई का बोझ का है। ऊपर से उसमें स्कूल की हर साल बढ़ती मनमानी। हर साल बढ़ती फीस, हर साल बदलता कोर्स, एक निर्धारित शॉप से ही बुक्स मिलने की प्रॉब्लम के साथ ही स्कूल की अलग-अलग तरह की एक्टिविटीज ने भ्ज्ञी गार्जियन्स की नाक में दम कर रखा है।

बिना फीस नो एंट्री
हर माता-पिता चाहते हैैं कि उनका बच्चा अच्छी और बेस्ट एजुकेशन ले। ऐसे में अपने बच्चे के भविष्य को सुधारने की हर मुमकिन कोशिश करते हैैं। उन्हें बेस्ट देने की कोशिश करते हैैं, लेकिन स्कूल की महंगाई की मार से हार जाते हैैं। नया सेशन शुरू हो गया है। हर माता-पिता या तो बुक्स स्टोर के बाहर या फिर स्कूलों में लाइन लगाए हुए खड़े हैं। क्योंकि स्कूलों में बिना फीस के नो एंट्री है। अगर बच्चे की फीस सबमिट हो तब ही वह क्लास करने के लिए परमिटेड है नहीं तो नहीं।

खुलेआम मनमानी
मिडल क्लास स्कूल के लिए प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना काफी मुश्किल हो गया है। अगर आप अच्छे स्कूल में एडमिशन कराने जाते हैैं तो सिर्फ एडमिशन के नाम पर एडमिशन फीस, मेनटेनेनस फीस, ट्यूशन फीस आदि के नाम पर हजारों रुपए चले जाते हैैं। ऐसे ही एक पेरेंट अनीता से बात कि उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने बच्चे का एडमिशन क्लास फस्र्ट में कराया है। जहां एडमिशन हुआ है वह एक निजी स्कूल है। वहां पर उनसे एडमिशन के नाम पर 30 हजार रुपए ले लिए गए। इसके बाद बुक्स-कॉपीज, बैग, बॉटल आदि का खर्च अलग से ऐसे में फस्र्ट क्लास में पढ़ाना 40-50 हजार से कम नहीं है। इसके अलावा स्कूल में होने वाले तरह-तरह के प्रोग्राम, एक्ट्राकरीकुलर एक्टिविटीज आदि भी होती रहती है। जिसमें भी सालभर फीस सबमिट करनी पड़ती है। ऐसे में स्कूल का खर्च लाखों में बैठ जाता है।

चार महीने पहले से टेंशन
मार्च आते ही पेरेंट्स को अप्रैल का डर सताने लगता है। अप्रैल लोगों के घर को बजट को पूरी तरह से बीगाड़ देता है। क्योंकि यहीं वो महीना जब पेरेंट्स को स्कूलों से काफी बड़ी झटका लगता है। स्कूल में एडमिशन के टाइम पेरेंट्स को शहर में रहते हुए भी मुंबई और नोएड़ा जैसी फीलिंग आनी शुरु हो जाती है क्योंकि स्कूल की फीस उसी स्तर की होती है जहां स्कूल की फीस 4000 से 40000 रुपए तक पहुंच जाता है। इसके अलावा बुक्स-कॉपी, नेम स्लिप, कवर, स्टेशनरी आदि। वहीं सबसे बड़ा खर्च होता है स्कूल की ड्रेस किसी भी स्कूल में ड्रेस का चलन ही खत्म हो गया है। एक स्कूल चार तरह की ड्रेस। उसमें भी अगर एक भी न लो तो अगले दिन बच्चों को बड़ा सा नोटिस दे दिया जाता है।

क्या है नियम
पेरेंट्स फोरम के कन्वीनर एडवोकेट खालिद जिलानी ने बताया कि यूपी में स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय अधिनियम 2018 के अनुसार प्राइवेट स्कूलों में वार्षिक सनयोजना में सीपीआई में 5 प्रतिशत जोडक़र फीस बढ़ाई जा सकती है। वर्तमान सत्र में सीपीआई 6.67 प्रतिशत है, अधिनियम के अनुसार, स्कूल फीस केवल 6.69 प्रतिशत प्लस पांच प्रतिशत फीस ही बढ़ा सकता है। वहीं अगर कोई स्कूल सरकारी जमीन पर बना है तो उसमें बिना शिक्षा विभाग को बताए फीस नहीं बढ़ाई जा सकती है।

स्कूल मनमाने तरह से फीस नहीं बढ़ा सकते हैैं। इसके लिए उन्हें कानूनी अधिनियम को मानना होगा। बगैर इसके फीस बढ़ाना गलत है। यह पूरी तरह से मनमानी की श्रेणी में आता है।
-खालिद जिलानी, एडवोकेट, पेरेंट्स फोरम के कन्वीनर

स्कूल अपनी मनमानी करते रहते हैं और अपनी मर्जी के अनुसार ही फीस बढ़ा देते हैैं। ऐसे में सबसे ज्यादा सफर सिर्फ और सिर्फ आम आदमी करता है। इस तरह की हठधर्मिता पर रोक लगनी चाहिए।
-सिद्धि

स्कूल की फीस हर साल फीस बढ़ जाती है। इसका सबसे ज्यादा असर फैमिली बजट पर पड़ता है। हम लोगों को हर चीज मैनेज करके ही चलना पड़ता है।
-रचना सक्सेना

हर साल पांच से छह हजार रुपए तक की फीस बढ़ जाती है। इससे मिडल क्लास के लोगों को बहुत परेशानी होती है। सरकार को इस दिशा में सार्थक कदम उठाना चाहिए।
ऋचा

Posted By: Inextlive