Bareilly : जाने भी दो यारों बैंडिट क्वीन जैसी ना जाने कितनी क्लासिकल मूवीज और थिएटर प्ले के लिए स्क्रिप्ट लिखने वाले रंजीत कपूर किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. डायरेक्टर राजकुमार संतोषी की मोस्टली फिल्मों में स्क्रिप्टराइटर रहे और एमीनेंट डायरेक्टर रंजीत कपूर विंडरमेयर के 8वें थिएटर फेस्ट में शिरकत करने बरेली आए थे. इस मौके पर आईनेक्स्ट से उन्होंने खुलकर अपने दिल की बातें शेयर कीं.


इंडिया में थिएटर की क्या स्थिति है?थिएटर की स्थिति पहले से बहुत बेहतर है, लेकिन इसके बाद भी थिएटर को सामाजिक मान्यता नहीं मिली है। मैं आपको बताता हूं, मेरे पिताजी खुद एक थियेटर से जुड़े थे। जब मैं बड़ा हुआ तो मां ने एक हिदायत दी कि किसी से ये मत कहना कि पिताजी, क्या करते हैं। आप समझ सकते हैं कि थिएटर किस पोजिशन में था। हालांकि स्थिति में बहुत परिवर्तन आया है, अब पहले जैसा माहौल नहीं रहा। अरे भाई, जैसे लोगों को डॉक्टर बनना है, इंजीनियर बनना है, उसी तरह थियेटर भी करना होगा। तभी और चेंजेज दिखेंगे।थिएटर में टेक्निक्स कितनी इफेक्टिव है?टेक्निक्स बहुत जरूरी है। लेकिन बावजूद इसके इससे क्रिएशन प्रभावित नहीं होना चाहिए। टेक्निक्स कितना भी जरूरी हो जाए लेकिन उसका रोल सेकेंडरी ही है। कहने का मतलब है कि थिएटर में स्टोरी और एक्टिंग की इंपॉर्टेंस कहीं ज्यादा है।


थिएटर में करियर बनाने को क्या चाहिए?यूथ को चाहिए कि वह पहले प्रोफेशनल  बनें क्योंकि जैसे डॉक्टर और इंजीनियर बनने के लिए स्पेशलाइज्ड फील्ड चुननी पड़ती है। वैसे ही आपको थिएटर्स के लिए पूरी तैयारी करनी पड़ेगी। खूब मेहनत करें ताकि परफार्मेंस में कोई डिफेक्ट न रहे।आपने थिएटर में शुरुआत कैसे की?

मैं इस मामले में भाग्यशाली हूं। मैंने बहुत सारे काम किए। एमपी के एक छोटे  से शहर सिहौर से निकल कर इधर-उधर घूमा। 1970 में मैंने थिएटर के बारे में सोचा भी नहीं था। फिर एकाएक थिएटर की ओर रुझान हो गया। तब लगा मैं इसी के लिए बना हूं। 1972 में एक अखबार में भी नौकरी की। 1973 में एनएसडी ज्वाइन किया। फिर वहां से मुम्बई का रुख किया। आप खुद को किस रूप में देखते हैं?मैं खुद को राइटर नहीं मानता हूं। एनएसडी में काम करने तक तो मैं राइटर था लेकिन उसके बाद 'रंजीत कपूर एक डायरेक्टर हैं। मेरा मानना है कि डायरेक्टर पूरी मशीन है बाकि सब उसके कल पुर्जे हैं। लोग मेरी काबिलियत देख कर राइटिंग की सलाह देते थे पर मैं पुर्जा नहीं, पूरी मशीन बनना चाहता था। अब सिनेमा छोटे शहरों की तरफ मुड़ रहा है?

जब कोई संघर्ष करता है तो यह उसके काम में भी झलकता है। जब कोई गरीबी से निकलकर संघर्ष और पैशन से आगे बढ़ता है तो वह खरा सोना बन जाता है। इसी तरह प्रेजेंट में जो एक्टर हैं, छोटे शहर से होने के बाद भी वे पूरी तैयारी से आ रहे हैं। थियेटर कर रहे हैं। इस लिहाज से सिनेमा को अच्छा टैलेंट अब छोटे शहरों से ही मिल रहा है। आप थियेटर में अधिक काम क्यों करते हैं?रंगमंच से बढ़कर परफार्मेंस कहीं और नहीं मिल सकती है। यह लिविंग आर्ट है, जबकि फिल्में मैं केवल पैसे के लिए करता हूं। थिएटर से जुड़ाव गॉड गिफ्टेड है। मेरा फस्र्ट पैशन थिएटर बनाया है। इसमें फीडबैक तुरंत मिलता है। जाने भी दो यारों क्यों आज भी सिनेमा के लेसन की तरह है ?जाने भी दो यारों में काम करने वाले सभी लोग एक थे। पंकज कपूर, नसीर, सतीश शाह सभी उस समय संघर्ष कर रहे थे। उस समय सबके पास एक प्रोजेक्ट आया। बस सबने अपना काम ईमानदारी से कर दिया। फिल्म का बजट इतना कम था कि हम लोगों ने खुद इसके लिए पैसा जुटाया। सब लोग जाने भी दो यारों की तारीफ करते हैं। अच्छा लगता है, हमें भी नहीं मालूम था कि जाने भी यारों इतना सफल रहेगी।चिंटू जी मूवी का आइडिया कैसे आया?
किसी भी छोटे शहर में थर्ड ग्रेड के एक्टर को भी भगवान समझा जाता है। स्क्रीन की इमेज और रियल इमेज में काफी फर्क होता है। जरूरी नहीं है कि वह जैसा स्क्रीन पर दिखे वैसा ही हो। मैंने चिंटू जी मूवी में यही दिखाने की कोशिश की है।  प्रेजेंट बॉलीवुड पर क्या राय है?देखिए अभी बन रही 99 परसेंट फिल्में बेकार हैं। डायरेक्टर्स के पास न कोई आइडिया है और ना ही स्टोरी। सब बस मारपीट, तोडफ़ोड़, अंडरवल्र्ड, गोली बंदूूक दिखा रहे हैं। आज डायरेक्टर्स के पास कोई सŽजेक्ट नहीं रह गया है। सब केवल पैसा चाहते हैं। जो नए डायरेक्टर्स भी आए हैं, वे भी बस जल्द से जल्द चीजों को कैश कराना चाहते हैं। बॉलीवुड क्या अच्छी कहानियों की कमी से जूझ रहा है?बॉलीवुड में लेखक एक अनिवार्य बुराई है। एक मजबूरी है। हमारी इंड्रस्टी में राइटर की कोई वैल्यू नहीं है। सिर्फ एक आध फिल्में ही स्टोरी बेस्ड बनती हैं और ऐसी फिल्मों को चलाने के लिए स्टार्स की कोई जरूरत नहीं होती है। बॉलीवुड केवल कारोबार कर रहा है।फैमिली में कौन-कौन हैं?फैमिली में मेरी बेटी गुरुशा कपूर, बहन सीमा कपूर और छोटा भाई अन्नू कपूर हैं। गुरुशा की फिल्म जल्द रिलीज होने वाली है। अन्नू कपूर आज की डेट में किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। आपका फ्यूचर प्लान क्या है?
मेरी अगली फिल्म 'जय हो डेमोक्रेसीÓ दो महीने बाद थिएटर्स में आ जाएगी.  मुझसे सभी पूछे जाने वाले सवालों का जबाव इस फिल्म में है। इसमें डेमोक्रेसी के बारे में जो फील करता हूं, वह सब कुछ है।बरेली आपको कैसा लगा?जब पहली बार बरेली आया था, तब से अब तक कई परिवर्तन आ चुके हैं। काफी अच्छा लगता है यहां आना। इस पूरे अफर्ट के लिए विंडरमेयर को थैंक्स। बरेली के लोग जिस्मों का ही नहीं रूहों का भी ख्याल रखते हैं।करोड़ क्लब के बारे में क्या राय है?देखिए, ये कोई दौड़ नहीं है। बस असुरक्षा की भावना है। जब आप एक अच्छी फिल्म बनाते हैं तो आपको कोई डर नहीं रहता। करोड़ क्लब में शामिल होने के लिए पूरी रणनीति है। आप एक साथ चार हजार थियेटर्स में फिल्म रिलीज कर जल्द से जल्द पैसा बटोरना चाहते हैं। ये बात आजकल के डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स की इनसिक्योरिटी के बारे में बताता है। पूरी इंड्रस्टी हिट एंड रन कल्चर पर चल रही है।बैंडिट क्वीन आज भी क्लासिक क्यों?देखिए, जब किसी फिल्म में रिसर्च वर्क बहुत अच्छा से किया जाता है तो यकीन जानिए, उसका रिजल्ट बैंडिट क्वीन की तरह ही आएगा। आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि मैं खुद 1965 में डाकू माधव सिंह की पकड़ में 50 दिन रहा हूं। संयोग ऐसा रहा कि शेखर कपूर ने बैंडिट क्वीन की स्क्रिप्ट लिखने के लिए मुझे चुना। मैं और फूलन का भाई एक होटल के कमरे में दिन भर साथ रहते और हम लोग बस डाकूओं और चंबल की बात करते, इन्हीं बातों से बैंडिट क्वीन की स्टोरी निकली।Report By - Ajeet Singh

Posted By: Inextlive