आज 'इंटरनेशनल ओलंपिक डेÓ है. ऐसे में गोरखपुर के ओलंपियन की बात जरूरी है जिन्होंने गोरखपुर का मान बढ़ाया है. हॉकी प्लेयर प्रेम माया ने 1980 ओलंपिक्स में पार्टिसिपेट किया था. हालांकि मेडल से चूक गई थीं. जबकि 2022 में ब्राजील में हुए डेफ ओलंपिक में आदित्या यादव ने गोल्ड मेडल जीतकर गोरखपुर का मान बढ़ाया. इतिहास पर नजर डालें तो गोरखपुर मेडल की लिस्ट में पिछड़ा हुआ है इसकी सबसे बड़ी वजह है 'संसाधनों की कमीÓ. ऐेसा नहीं है कि यहां टैलेंट की कमी है. यहां बुनियादी सुविधाएं ना होने के बाद भी प्लेयर्स ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है.


(प्रांजल साहू). शहर के मैत्रीपुरम कॉलोनी निवासी दिग्विजय यादव की 12 साल की बेटी आदित्या यादव ने ब्राजील डेफ ओलंपिक 2022 में बैडमिंटन में गोल्ड मेडल जीतकर गोरखपुर के साथ ही पूरे देश का मान बढ़ाया। वह बोल और सुन नहीं सकती हैं। क्लास 8 में पढऩे वाली आदित्या ने अभी तक कुल 20 मेडल जीते हैं। आदित्या के पिता ही उसके कोच हैं। उन्होंने बताया कि जब आदित्या 5 साल की थी, वह तभी से उसे कोचिंग दे रहे हैं। आगे उन्होंने बताया कि गोरखपुर में टैलेंट की कोई कमी नहीं है, कमी है तो संसाधनों की। बैडमिंटन के लिए यहां सिंथेटिक कोर्ट नहीं है। रीजनल स्टेडियम में जो कोर्ट है वह खेलने लायक बिल्कुल भी नहीं है।जिस खेल में मेडल मिला उसी की हालत खस्ता
गोरखपुर को अभी केवल हॉकी और बैडमिंटन में ही मेडल मिल सका है। इसके बाद भी इन दोनों खेलों के लिए संसाधनों की बहुत ज्यादा कमी है। हॉकी के लिए आज के दौर में एस्ट्रोटर्फ सबसे ज्यादा जरुरी है क्योंकि सभी बड़े टूर्नामेंट इसी पर होते है। गोरखपुर में स्पोट्र्स कॉलेज को छोड़ दें तो यहां एक भी एस्ट्रोटर्फ नहीं है। बैडमिंटन की भी स्थिति वही है सिर्फ एक प्राइवेट एकेडमी में सिंथेटिक कोर्ट है और कहीं भी नहीं है।


बाकी खेलों का बुरा हालओलंपिक में शामिल अन्य खेलों का और भी बुरा हाल है। जिमनास्टिक रीजनल स्टेडियम के एक कमरे में चलता है। कोच का अपॉइटमेंट टाइम से ना हो पाने की वजह से प्लेयर्स की सही से ट्रेनिंग नहीं हो पाती।

Posted By: Inextlive