गोरखनाथ एरिया के राजेंद्रनगर कॉलोनी निवासी 20 वर्षीय आयुष कुमार सिंह अक्सर एयर पाड्स और ईयर फोन का इस्तेमाल करते है. कान में दर्द के साथ मवाद आने से प्रॉब्लम इतनी बढ़ गई कि उन्हें बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ईएनटी डिपार्टमेंट में डॉक्टर से संपर्क करना पड़ा.


गोरखपुर (ब्यूरो)। पता चला कि क्रॉनिक सुपरयुटिस मीडिया के शिकार हो गए हैं। डॉक्टर ने इलाज शुरू किया। यह एक केस ही नहीं है। इस तरह के कई केसेज सामने आए है। मेडिकल कॉलेज के एक रिसर्च में पता चला है कि एयर पाड्स का इस्तेमाल करने वाले 90 परसेंट लोग क्रॉनिक सुपरयुटिस मीडिया के शिकार हो चुके हैं। ओपीडी में आने वाले 40 पेशेंट पर स्टडी
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ईएनटी डिपार्टमेंट में (अनसेफ सीएसओएम) से कान का पर्दा फटने पर इससे मवाद बहने की शिकायत लेकर पेसेंट्स मेडिकल कॉलेज के ईएनटी डिपार्टमेंट की ओपीडी में पहुंच रहे हैं। ऐसे करीब 40 पेशेंट्स जिनकी उम्र 25 से 40 साल की है। इन पर स्टडी की। स्टडी में इसकी मुख्य वजह तमाम तरह के गैजेट्स जैसे एयर पॉडस और ईयर फोन आदि ज्यादा यूज करना भी हैं। मौसम में बदलाव की वजह से भी ज्यादा समस्या होती है। सबसे अधिक गर्मियों में पसीना होता है। पसीने की वजह से इंफेक्शन का खतरा रहता है। कान का पर्दा फटने की आशंका रहती है और कान से मवाद बहने लगता है। यदि इसका समय से इलाज नहीं किया जाए तो पेशेंट्स बहरा हो सकता है। ब्रेन भी कमजोर


कान शरीर का अहम अंग हैं। बाहरी कान के दो भाग होते हैं। जिनकी बनावट हमारे चेहरे के अनुसार अनुवांशिक गुणों पर आधारित होता है। यह एक कॉर्टिलेज है, जिस पर एक झिल्ली होती है और ऊपर चमड़ी। झिल्ली इतनी कमजोर होती है कि तेज आघात से फटकर बहरेपन के साथ ब्रेन को कमजोर भी कर सकती है। दूसरी कान के पर्दे के पीछे स्थित तीन सूक्ष्म हड्डियां होती हैं, जिस मेलियस, इंकस व स्टेपिस कहते हैं। यह नसों के को अपास में जोड़ती है। कोमा में जा सकता है व्यक्ति

कान का पर्दा फटने पर इससे कमवाद बहने लगता है। जब कान का पर्दा काफी दिनों से पटा होता है जो उसको सेफ सीएसओएम क्रानिक सुपरयुटिव ओटाइटिस मीडिया एवं अनसेफ सीएसओएम कहते हैं। सेफ सीएसओएम में कान अधिक बहता है, कान के मवाद में बदबू नहीं आती, दवा से कान बहना बंद हो जाता है, लेकिन पूरी तरह ठीक करने के लिए कान का पर्दा बनाने का ऑपरेशन करना पड़ता है। अनसेफ सीएसओएम में कान कम बहता है, मवाद से बदबू आती है ओर सुनाई भी कम देता है। इसको हड्डी गलने वाले या ब्रेन का फोड़ा भी कहते हैं। जब मवाद ब्रेन में चला जाता है, जिससे सिर दर्द, ब्रेन में बुखार एवं व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है। हड्डी गलने वाली बीमारी डॉ। आदित्य पाठक ने बताया कि हम कान व नाक के रास्ते सांस लेते हैं। उस नली को यूस्टेचियन ट््यूब कहते हैं। जब भी इसमें रूकावट आती है, निगेटिव प्रेशर से पर्दा अंदर की ओर जाने लगता है। यदि इसी समय इसको सही कर दिया जाए तो बीमारी आगे नहीं बढ़ पाती, लेकिन लगातार निगेटिव प्रेशर बनने से पर्दा पूर्ण रूप से अंदर की ओर धंसने लगता है, यदि अंदर वाला पर्दा अंदर की ओर हड्डी को गलता रहता है ओर बीमारी अंदर की ओर जाती है। लास्ट में वह ब्रेन तक पहुंच जाती है। इसके लक्षण सिर दर्द, चक्कर, कान से ब्लड बहने, बेहोशी, उल्टी आने, दौरे पडऩे व चलने में दिक्कत जैसे लक्षण होने लगते हैं। यह बरतें सावधानी - एयर पाड्स और ईयर फोन के इस्तेमाल से बचें- कान में कभी कोई सींक या अन्य वस्तु न डालें- जुकाम होने पर विशेषज्ञ डॉक्टर्स से परामर्श लेकर दवा लें- बच्चे को अधिक जुकाम हो तो डॉक्टर को अवश्य दिखाएं
एयर पाड्स और ईयर फोन के ज्यादा इस्तेमाल से यंगेस्टर्स कान बहने की प्रॉब्लम से ग्रसित है। ओपीडी में 25 से 40 वर्ष यंगेस्टर्स इसके शिकार है। कान में समस्या होने पर जितनी जल्दी हो सके, डॉक्टर को दिखाएं। ऑपरेशन की स्थिति होने पर देरी न करें। दवा के साथ आजकल नई विधि से ऑपरेशन होता है, जिससे सुनाई भी देने लगता है। - डॉ। आदित्य पाठक, ईएनटी डिपार्टमेंट बीआरडी मेडिकल कॉलेज

Posted By: Inextlive