साफ सफाई कुछ हद तक ठीक जरूरी व्यवस्थाओं के न होने से रैंकिंग में पिछड़ रहा निगम. गोरखपुर में स्वच्छता के लिए तमाम कारगर उपाए किए जा रहे हैं लेकिन कमियां काफी हद तक छूट जा रही हैं. यही कारण है कि स्वच्छ सर्वेक्षण में भी रैंकिंग पर प्रभाव पड़ रहा है.


गोरखपुर (ब्यूरो)। पिछले महीने हुए स्वच्छता सर्वेक्षण में गोरखपुर को ऑल इंडिया में 22वां रैंक मिला है। रैंकिंग में सार्वजनिक टॉयलेट की स्थिति काफी महत्वपूर्ण होती है। इसके बाद भी शहर में बने पिंक और सार्वजनिक टॉयलेट्स की हालत किसी से छिपी नहीं है। हालांकि नगर निगम सब कुछ दुरुस्त होने का दावा कर रहा है। उस दावे में थोड़ी बहुत है लेकिन अव्यवस्थाएं भी काफी हैं। पिंक और सार्वजनिक टॉयलेट्स कुछ हद तक साफ सुथरे तो दिखते हैं लेकिन जरूरी व्यवस्थाओं का अभाव है। 42 सार्वजनिक टॉयलेट
गोरखपुर में इंदिरा बाल बिहार, रीजनल स्पोर्ट स्टेडियम, रामगढ़ताल, रेलवे बस स्टेशन, शास्त्री चौक, यूनिवर्सिटी चौराहा सहित कुल 42 जगहों पर सार्वजनिक टॉयलेट अवेलेवल हैं। जिनमें से 6 पिंक टॉयलेट और 36 सार्वजनिक टॉयलेट हैं। इससे अलावा 22 कम्युनिटी टॉयलेट भी अवेलेबल हैं। सभी सार्वजनिक टॉयलेट में भी महिलाओं के लिए अलग पोर्टल होते हैं। उनकी व्यवस्था अलग होती है। वहां पर भी उनकी सभी जरूरतों का ध्यान रखा जाता है। इसके अलावा जेन्ट्स एरिया में भी हाइजीन पर पूरा ध्यान दिया जाता है।वार्ड वाइज होता है सर्वेक्षण


स्वच्छ भारत मिशन नोडल ऑफिसर डॉ। मणि भूषण तिवारी ने बताया कि स्वच्छता की जांच वार्ड वाइज की जाती है। हर वार्ड के कुछ क्राईटेरिया सेट की जाती है। जब सर्वेक्षण स्टार्ट किया जाता है तो एमआईएस पर उसी के हिसाब से ऑप्शन शो होता है और अधिकारी सुविधा को देखकर येस ऑर नो कर देते हैं। वहीं रिपोर्ट स्वच्छता सर्वेक्षण में अहम होता है। उस वार्ड के अंदर जितने भी सार्वजनिक टॉयलेट या पिंक टॉयलेट या कम्युनिटी टॉयलेट आते हैं उनकी स्थिति भी चेक की जाती है। ऐसे पिंक टॉयलेट को रैंककिसी पिंक टॉयलेट को स्वच्छता सर्वेक्षण में कुछ सुविधाओं के आधार पर ग्रीन सिग्नल दिया जाता है। पिंक टॉयलेट में सफाई की क्या स्थिति है, वाश वेशिंग ठीक है कि नहीं, खिड़की की व्यवस्था है कि नहीं, प्रॉपर लाइटिंग की व्यवस्था है कि नहीं, सीवेज सिस्टम कैसा है, वॉल पेंटिंग, लेडिज के लिए इंपोर्टेड मैसेज है कि नहीं, हेल्पलाइन नंबर लगा है कि नहीं, दिव्यांग के लिए अलग से सीट है कि नहीं, छोटे बच्चों को ध्यान में रखकर टॉयलेट सीट बनीं है कि नहीं, वेडिंग मशीन, चेंजिंग रूम, फीडिंग रूम और फीडबैक मशीन ठीक है कि नहीं। इन सभी फैसिलिटी को ध्यान में रखते हुए रिपोर्ट तैयार किया जाता है। अगर इसमें कुछ भी कमी मिलती है तो रैंकिंग पर असर पड़ेगा।मोबाइल पिंक टॉयलेट भी है अवेलेवल

मेले जैसे सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं की सुविधा के लिए शहर में स्पेशल मोबाइल पिंक टॉयलेट भी अवेलेवल है। नोडल ऑफिसर ने बताया कि जब कहीं पर मेला लगता है या कोई विशेष सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। जिसमें लेडिज ज्यादा पार्टिसिपेट करतीं हैं तो उस जगह पर मोबाइल पिंक टॉयलेट स्टेबल कर दिया जाता है जिससे कि उन्हें किसी भी तरह का प्रॉब्लम ना हो।स्वच्छता सर्वेक्षण में तीन साल की रैंकिंगसाल नेशनल रैंकिंग स्टेट रैंकिंग 2021 111 92022 74 72023 22 4 स्वच्छता सर्वेक्षण में मिले अंक 2022 7500 में से मिले 4456.95 (58.43 परशेंट)2023 9500 में से मिले 6403.63 (67.4 परशेंट)
स्वच्छता सर्वेक्षण की रैंकिंग वार्ड वाइज होती है। सभी वार्ड को उसकी निश्चित क्राईटेरिया पर चेक किया जाता है। उसी आधार पर रिपोर्ट बनती है। इसमें सार्वजनिक टॉयलेट की स्थिति को भी देखा जाता है। उसमें कोई कमी होती है तो माक्र्स पर प्रभाव पड़ता है। - डॉ। मणिभूषण त्रिपाठी, नोडल ऑफिसर, स्वच्छ भारत मिशन

Posted By: Inextlive