जानलेवा हो सकती है अनदेखी
-चिलचिलाती धूप से बढ़ रहा हीट स्ट्रोक का खतरा
-ब्लडप्रेशर और डायबिटीज मरीज को होता है अधिक खतरा GORAKHPUR: चिलचिलाती धूप सिर्फ जला नहीं बल्कि बीमार भी कर रही है। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल, मेडिकल कॉलेज हो या फिर प्राइवेट क्लीनिक हीट स्ट्रोक के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। सूरज की तरेरती आंखों के साथ जैसे-जैसे टेंप्रेचर नए रिकॉर्ड बना रहा है, वैसे-वैसे मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। हीट स्ट्रोक वैसे तो अचानक होती है, मगर इसमें छोटी सी लापरवाही भी जान ले सकती है। वहीं ह्यूमिडिटी अधिक होने के साथ टेंप्रेचर लगातार बढ़ रहा है, जिसमें हीट स्ट्रोक के चांस काफी बढ़ जाते हैं। टेंप्रेचर के साथ बढ़ रहे मरीजअप्रैल मंथ में ही टेंप्रेचर फ्7 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया है। इससे न सिर्फ गर्मी बढ़ी है बल्कि डॉक्टर्स के पास मरीजों की संख्या भी। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल, मेडिकल कॉलेज समेत प्राइवेट क्लीनिक में भी जितने मरीज डॉक्टर के पास आ रहे है, उनमें काफी मरीज हीट स्ट्रोक के हैं। मेडिकल कॉलेज, डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल, गोरखनाथ हॉस्पिटल के साथ प्राइवेट क्लीनिक में तकरीबन क्00 से अधिक मरीज डेली हीट स्ट्रोक के आ रहे हैं।
हीट स्ट्रोक है इमरजेंसीडॉ। सुधांशु शंकर ने बताया कि हीट स्ट्रोक एक इमरजेंसी है। ठंड के बाद अचानक इतना अधिक टेंप्रेचर बढ़ने से प्रॉब्लम क्रिएट हो जाती है। इससे अधिक होने पर हीट स्ट्रोक होने के चांस बढ़ जाते हैं। ऐसा अक्सर तब होता है, जब ह्यूमिडिटी के साथ टेंप्रेचर लगातार बढ़ता है। हीट स्ट्रोक सबसे अधिक उन लोगों को होता है, जिन्हें पसीना नहीं निकलता, क्योंकि गर्मी अधिक होने पर पसीने के माध्यम से शरीर की गर्मी निकल जाती है, मगर पसीना न आने पर गर्मी बॉडी के अंदर रह जाती है, जिससे हीट स्ट्रोक होता है। साथ ही ब्लडप्रेशर और डायबिटीज के मरीजों के लिए अधिक प्रॉब्लम होती है। हीट स्ट्रोक में तुरंत डॉक्टर की एडवाइस लेनी चाहिए। इसमें थोड़ी भी लापरवाही जानलेवा हो सकती है।
इलेक्ट्रोलाइट को करें कंट्रोल डॉ। बीके सुमन ने बताया कि बॉडी में पानी के साथ इलेक्ट्रोलाइट की कमी होने पर हीट स्ट्रोक के चांस बढ़ जाते हैं। इसलिए इलेक्ट्रोलाइट को कंट्रोल करना बहुत जरूरी है। बॉडी में सोडियम, पोटेशियम जैसे अनेक तत्व ऐसे हैं जो जिंदगी के लिए बहुत जरूरी है। उन्होंने बताया कि हीट स्ट्रोक सबसे अधिक बुजुर्ग और छोटी एज वाले बच्चों को होता है। सिम्पटम्स -बेहोश होना -उल्टी -दस्त -सिरदर्द -अधिक कमजोरी लगना -पूरे शरीर में दर्द होना-पसीना न आना, पर शरीर अत्यधिक गर्म होना
-जल्दी थकान आना बचाव -देर तक धूप में न रहें -अधिक गर्मी में वर्क न करें -पानी अधिक पिये -धूप में शरीर ढक कर चलें -इलेक्ट्रोलाइट को कंट्रोल करें इसका करें अधिक यूज -आम का पना -बेल का शर्बत -नारियल पानी -नमक, चीनी और नींबू का घोल लापरवाही पर हो सकता है -किडनी फेल -अनकांसेस -झटका आना इनको है अधिक खतरा -बुजुर्ग को -क्0 साल से कम एज के बच्चों को -हार्ट पेशेंट को -इंफेक्शंस पेशेंट को -शारीरिक रूप से कमजोर को