GORAKHPUR : सिटी में कई बड़ी प्रॉब्लम में बाढ़ भी शामिल है. इसकी सबसे अहम वजह नेपाल के रास्ते आने वाले पानी को माना जाता है. सिटी में बाढ़ तभी आती है जब पहाड़ी और मैदानी इलाकों में एक साथ भीषण बरसात होती है और सीढ़ीदार खेती की वजह से पानी इस ओर आने लगता है. अगर नेपाल में इस तरह की फार्मिंग पर रोक लग जाए तो सिटी में बाढ़ के संकट को थोड़ा कम किया जा सकता है. यह बातें बताई प्रो. जगदीश सिंह ने जो गोरखपुर यूनिवर्सिटी में ऑर्गेनाइज नेशनल वर्कशॉप में बतौर चीफ गेस्ट मौजूद थे. उन्होंने बताया कि अगर नेपाल के 'सुखोमाजरी गांव' को मॉडल बनाकर इसी तरह पूरे शिवालिक एरिया में यह मॉडल लागू कर दिया जाए तो बाढ़ से काफी राहत मिल जाएगी.


वॉटर कनजर्वेशन भी है जरूरीप्रोग्राम की अध्यक्षता करते हुए वीसी प्रो। पीसी त्रिवेदी ने कहा कि जिस तरह से पानी का यूज लगातार बढ़ रहा है, उसी तरह उसके एग्जिस्टेंस पर भी संकट आता जा रहा है। इसके लिए अब वॉटर कनजर्वेशन काफी जरूरी हो गया है। प्लानर्स और पॉलिसी मेकर्स को वाटर कनजर्वेशन के लिए एक्टिव, एलर्ट और सीरियस होने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो फ्यूचर में पानी की कमी का इफेक्ट सिर्फ सिटीज पर ही नहीं बल्कि इंडस्ट्रीज और फार्मिंग पर भी पड़ेगा। उन्होंने रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के कम्पल्शन पर जोर दिया। मास्टर प्लान बनाना जरूरी
इंडिपेंडेंस के इतने दिनों के बाद भी आज तक देश के पास कोई मास्टर लैंड यूज प्लान नहीं है, जबकि वक्त की जरूरत के साथ यह जरूरी भी है। ईस्ट-वेस्ट और नार्थ साउथ कोरिडोर से सटी भूमि के यूज का अध्ययन करके, भूमि उपयोग के लिए मास्टर प्लान बनाना जरूरी है। अगर ऐसा नहीं होता है तो बिल्डर्स इनका गलत यूज करने में कामयाब हो जाएंगे और देश को सिर्फ नुकसान ही उठाना पड़ेगा। प्रोग्राम के डायरेक्टर प्रो। केएन सिंह ने वर्कशॉप की जरूरत और इंपॉर्टेंस की आउट लाइन पेश की। प्रोग्राम का संचालन ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ। शिवकांत सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो। एसके दीक्षित ने किया।

Posted By: Inextlive