दस साल पहले सात अक्तूबर को ही अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला शुरू किया था.

एक ऐसा अभियान जो तात्कालिक रूप से तो काफ़ी जल्दी ही ख़त्म हो गया और तालेबान का शासन ख़त्म हुआ। अफ़ग़ान विपक्षी दलों की फ़ौजें काबुल पहुँच गईं और सड़कों पर ख़ुशियों के नज़ारे दुनिया भर में दिखाए जा रहे थे। जिन लोगों को पाँच साल तक उस शासन में रहना पड़ा वे ख़ुशी में सड़कों पर नाच रहे थे।

बच्चे एक बार फिर पतंग उड़ा सकते थे, उनके माँ-बाप संगीत सुन सकते थे क्योंकि इससे पहले अगर कोई सीटी बजाता, गाना गुनगुनाता, घुटने से ऊपर तक के कपड़े पहने या फिर किसी भी ज़िंदा व्यक्ति की तस्वीर लिए दिखता तो सार्वजनिक रूप से उसे कोड़े पड़ते। जो व्यक्ति अक़सर सज़ा पाए मुजरिमों के हाथ या पैर काट देता वो स्वास्थ्य मंत्री था।

तालेबान की सत्ता को उखाड़ने में सिर्फ़ कुछ ही हफ़्तों का समय लगा और एक बार जब वे सत्ता से हटे तो लगा नहीं था कि वे इतनी जल्दी वापसी कर सकेंगे मगर तालेबान सिर्फ़ टूटे और बिखरे थे ख़त्म नहीं हुए.इतनी जल्दी वापसी कर सकेंगे 

पाकिस्तान का रुख़

वे राजधानी छोड़कर चले गए थे और काफ़ी ने पाकिस्तान का रुख़ कर लिया। कुछ साल बाद अमरीका और उसके सहयोगी देशों का पूरा ध्यान जब इराक़ पर लग गया तो तालेबान ने फिर सिर उठाया। ब्रितानी फ़ौजें जब 2006 में हेलमंद पहुँचीं तो उन्हें ख़ासे प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।

अफ़ग़ानिस्तान में 382 ब्रितानी और लगभग 2750 नैटो देशों के सैनिक मारे गए हैं। इसके कई गुना ज़्यादा अफ़ग़ान नागरिक भी इस दौरान मारे गए। यूँ तो तालेबान कोई बहुत ही प्रशिक्षित लड़ाकू नहीं थे मगर उनके सहयोगियों ने उनकी मदद की और धीरे-धीरे वे भी बेहतर होते गए।

इस्लामी स्वयंसेवक उनकी मदद के लिए आगे आए और इन लोगों की बम बनाने की क्षमता काफ़ी अच्छी हो गई। अब वे काबुल तक में ज़बरदस्त बम हमले कर रहे हैं और ऐसा लग रहा है कि उनकी पहुँच देश में लगभग हर जगह है।

पश्चिमी देशों के अधिकारी ये बात मानेंगे कि जब 2014 में नैटो देशों के सैनिक रक्षक की भूमिका छोड़ देंगे तब अफ़ग़ानिस्तान के कई हिस्से हिंसा से ग्रस्त होंगे।

मगर ये नहीं कहा जा सकता कि वे पूरे देश पर क़ब्ज़ा ही कर लेंगे। काबुल अब एक आधुनिक शहर लगने लगा है और तालेबान अब भी राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं भले ही वे कितने ही अच्छे लड़ाकू क्यों न हो गए हों।

विदेशी निवेश बड़े पैमाने पर देश में पहुँच रहा है और लगता है कि पहले की तरह अब पश्चिमी देश अचानक अफ़ग़ानिस्तान को यूँ ही नहीं भूल जाएँगे जैसा उन्होंने 1989 में किया था जब रूसी चले गए थे और 2001 में तालेबान को सत्ता से हटाया गया था।


Posted By: Inextlive