चरमपंथी हमलों और हिंसा को लेकर सुर्खियों में रहने वाला अफगानिस्तान अब क्रिकेट के साथ आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है.

ये खेल कबीलों, जातीयता और दूसरे कई मुद्दों पर बंटे मुल्क को एक सूत्र में बांधने में मदद कर रहा है। राजधानी काबुल से 45 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व में खाके जब्बार जिले में आठ परस्पर विरोधी गांवों के लोग क्रिकेट की वजह से न सिर्फ एक जगह जुटे, बल्कि उनकी आपसी दूरियां भी कम हो रही हैं।

बंजर पहाड़ियों से घिरे इस इलाके में एक प्राथमिक स्कूल के मैदान पर 15 ओवरों वाले मैच खेले गए। ये वही इलाका है जहां 1878 से 1880 के बीच ब्रिटेन और अफगानिस्तान के बीच दूसरा अफगान युद्ध लड़ा गया था।

क्रिकेट से घटती दूरियां

अपने गांव की टीम का हौसला बढ़ाने पहुंचे 11 वर्षीय हामिद कहते हैं, “हम इस मैच को देखने के लिए 25 किलोमीटर पैदल चल कर आए हैं.” हामिद का कहना है कि ये न सिर्फ पहला मौका है जब वो अपने गांव से बाहर आए हैं, बल्कि पहली बार वो खाके जब्बार के दूसरे गांवों के अपनी उम्र के बच्चों से मिले और उनसे दोस्ती भी की।

ये पहाड़ी इलाका 1990 के दशक में अफगानिस्तान में शासन करने वाले तालिबान और उनके प्रतिद्वंद्वी उत्तरी गठबंधन की लड़ाई की चपेट में रहा है। यहां के कुछ गावों ने उत्तरी गठबंधन की सेना को शरण दी थी तो कुछ ने तालिबान का साथ दिया था जिससे दोनों पक्षों के बीच एक बड़ी खाई पैदा हो गई थी।

जिले के शिक्षा निदेशक और इस क्रिकेट टूर्नामेंट के आयोजकों में से एक अहमद जान अहमदजई का कहना है, “हम इस खाई को पाटने की कोशिश कर रहे हैं। खाके जब्बार के युवा अपने बड़ों की छोड़ी खुमारी को भुगत रहे। लेकिन अब फिर हम एक हो रहे हैं.” अहमदजई का कहना है कि जो काम सरकार की बार बार होने वाली कोशिशों से नहीं हुआ, वो क्रिकेट से हो रहा है-देश में एकता और राष्ट्रीय गौरव की भावना पैदा हो रही है।

‘बूम बूम बिलाल’जिला युवा परिषद के सदस्य खान मोहम्मद का कहना है कि 2009 में विश्व कप क्रिकेट के क्वॉलिफायर में अफगान टीम के मैच को लेकर दिखी गजब की दीवानगी ने हमें स्थानीय टूर्नामेंट कराने के लिए प्रेरित किया।

मोहम्मद कहते हैं, “क्रिकेट ने अफगानिस्तान को एकजुट कर दिया। लोगों ने अपनी जातीयता और कबायली वफादारियों को एक तरफ रख कर राष्ट्रीय टीम का हौसला बढ़ाया। यहां तक कि तालिबान ने भी उनकी कामयाबी के लिए दुआ की.” वो आगे कहते हैं, “लेकिन जैसे ही क्रिकेट का बुखार उतरता है तो मतभेद फिर उभरने लगते हैं। हम इस बुखार को बनाए रखना चाहते हैं.”

टूर्नामेंट का फाइनल मैच चिनार गांव और जिला पुलिस प्रमुखों की टीम के बीच हुआ और इस मैच को देखने के लिए सभी आठों गावों के लोग मौजूद थे। 15 वर्षीय उस्मान ने कहा, “मैं तो यहां चिनार गांव की टीम से खेलने वाले अपने पसंदीदा खिलाड़ी को देखने आया हूं। हम उन्हें अफगानिस्तान का केविन पीटरसन कहते हैं.” वो बताते हैं, “हमारे पास तो बूम बूम बिलाल भी है.” उस्मान का इशारा एक उभरते हुए अफगान क्रिकेटर की तरफ है जिन्हें धमाकेदार छक्के लगाने के लिए जाना जाता है।

बहुत से क्रिकेटरों को इस खेल से इसलिए लगाव हुआ क्योंकि रूसी हमले और उसके बाद छिड़े गृह युद्ध के दौरान उनके परिवारों ने पाकिस्तान में शरण ली। तालिबान के सत्ता से चले जाने के बाद ये लोग अफगानिस्तान लौटे तो अपने क्रिकेट प्रेम को परवान चढा़ने लगे।

क्रिकेट का रोमांच

खाके जबब्बार पुलिस प्रमुख अहमद जान घोरजांग अपनी टीम के कप्तान हैं। वो कहते हैं कि उनका मकसद मैच नहीं, बल्कि लोगों का दिल जीतना है। जैसे ही मैच शुरू हुआ तो स्थानीय अफगान कारोबारियों ने माइक पर नकद इनाम की घोषणा करनी शुरू कर दी।

एक व्यक्ति ने कहा, “मैं हर छक्के के लिए 100 डॉलर और चौके के लिए 50 डॉलर दूंगा.” इसके बाद दूसरा व्यक्ति कहता है, “मैं एक छक्के के लिए 150 डॉलर दूंगा.” हर गेंद पर दर्शकों की तालियां और शोर जारी थे, लेकिन तभी एक विवाद की वजह से मैच रोकना पड़ा। चिनार टीम के समर्थकों ने आरोप लगाया कि पुलिस प्रमुखों की टीम में कुछ प्रांतीय खिलाड़ी हैं जो नियमों का उल्लंघन है।

बुजुर्गों की मदद से खेल दोबारा शुरू हुआ और जीत पुलिस प्रमुखों की टीम को मिली। बूम बूम बिलाल के चौकों का जीत में खास तौर से योगदान रहा। उन्हें न सिर्फ भरपूर तारीफ, बल्कि खूब पैसे भी मिले। स्थानीय कारोबारी हाजी शेर शाह ने टूर्नामेंट को कामयाब बताया। उनके मुतबिक क्रिकेट न सिर्फ देश को एकजुट कर रहा है बल्कि इससे युवा पीढी नशीली दवाओं और हिंसा से भी दूर रहती है।

Posted By: Inextlive