ब्रिटेन में एशियाई मूल के लोगों के गुर्दे ख़राब होने के आसार श्र्वेत लोगों से पांच गुना ज़्यादा हैं. दानदाताओं की कमी के कारण एशियाई लोगों को प्रतिरोपण के लिए दोगुना इंतज़ार करना पड़ता है.

ख़राब खान-पान और बढ़ते मोटापे के कारण मधुमेह की बीमारी बढ़ती जा रही है। एशियाई लोगों में मधुमेह के मामले ज़्यादा पाए जाते हैं और ये गुर्दों के फ़ेल होने का मुख्य कारण है। नतीजन ब्रितानी एशियाई लोगों में गुर्दे काम न करने के मामले पिछले दो सालों में 14 फ़ीसदी बढ़ गए हैं।

डरहम काउंटी में रहने वाली सैंडी के भाई इंदीजीत की मौत 14 साल की उम्र में हो गई। इंदीजीत के गुर्दे ख़राब हो गए थे। सैंडी बताती हैं, “वो काम जो कोई भी किशोर करता है इंदीजीत नहीं कर पाता था। डायलेसिस के लिए उसे जल्दी सोना पड़ता था। अस्पताल जाने के लिए उसे स्कूल से छुट्टी लेनी पड़ती थी.”

ऐसा तब होता है जब गुर्दे धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं। इस कारण हार्ट अटैक और दौरे पड़ सकते हैं। सैंडी के रिश्तेदार चरन को भी यही बीमारी है। चरन को उनकी बेटी ने अपना गुर्दा दिया है जिसके बाद अब उनकी तबीयत बेहतर है।

लेकिन इंदीजीत का प्रतिरोपण सफल नहीं रह पाया था। उनकी बहन कहती हैं कि अगर गुर्दा दान करने वाले और लोग होते तो उनका भाई शायद बच सकता था। ब्रिटेन की चैरिटी संस्था किडनी रिसर्च का कहना है कि बचाव में ही भलाई है। संस्था के कर्मचारी कहते हैं कि दक्षिण एशियाई लोगों के गुर्दे फ़ेल होने का ख़तरा ज़्यादा रहता है और अगर परिवार में उच्च रक्तचाप का इतिहास रहा है तो डॉक्टरी जाँच ज़रूरी है।

Posted By: Inextlive