क्या आपने कभी करियर के तौर पर महावत का पेशा अपनाने की सोची है. शायद नहीं. लेकिन फ़िनलैंड की एक 25 वर्षीय महिला महावत बनना चाहती है.

इस महिला का नाम लौरा पुको है और वह होम्योपैथी की पढ़ाई कर रही हैं लेकिन अब उन्होंने अपने करियर को नई राह देने की ठानी है। दरअसल भारत के दक्षिणी राज्य केरल के एक दौरे ने इन्हें अपने करियर पर दोबारा विचार करने को विवश कर दिया।

लौरा कहती है, "जब मैंने केरल के एक गाँव कुमली में हाथी को देखा तो मुझे उससे प्यार हो गया." मैंने इस हाथी की देख-रेख करने वालों से पूछा कि क्या मैं यहाँ रह सकती हूँ। ये शब्द मेरे मुँह से अनायास ही निकल गए थे। फिर जब मुझे उन्होंने वहाँ रहने की मंज़ूरी दे दी तब जाकर मैंने वहाँ रहने का फैसला कर लिया। लेकिन लौरा ने फैसला किया है कि वह होम्योपैथी की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही अपने इस नए करियर को अपनाएँगी।

लौरा कहती है महावत का प्रशिक्षण लेने के लिए पहले उन्होंने हाथी के साथ-साथ चलना शुरु किया और जो उन्हें जो खाना खिलाया जाता वो उसमें मदद करती थी।

दिनचर्या

आम तौर पर महावत का काम एक लड़का बचपन से ही सीखना शुरु कर देता है और हाथी के जिंदा रहने तक दोनों में गहरे संबंध बन जाते हैं। लौरा कहती है वह इस काम को लेकर काफ़ी उत्साहित हो गई थीं और इसलिए वह वहाँ तीन महीने तक रही।

उनका कहना था कि वह सुबह जल्दी उठकर हाथी के पास आ जाती थी और देर रात तक वहाँ काम करती रहती थी और यही उनकी दिनचर्या बन गई थी। उनका कहना था कि अन्य महावत की तरह वह भी हाथियों को नदी पर नहलाने लेकर जाती थीं और उसके पालन पोषण के लिए हर ज़रूरी काम में मदद करती थी।

इन्हीं गर्मियों में उन्होंने भारत का दूसरा दौरा किया है और इस बार वह एक निजी कंपनी एलीफैंट जक्शन से प्रशिक्षण ले रही हैं। ये कंपनी लोगों को हाथी पर बिठाकर सैर कराती है।

प्रशिक्षण
लौरा कहती है, "पिछली बार उन्होंने अपना प्रशिक्षण गंगा नाम की हथिनी के साथ लिया था लेकिन अब वह गर्भवती है इसलिए मैं मीरा के साथ प्रशिक्षण ले रही हूँ। मीरा बहुत ही होशियार है। अगली बार जब मैं आऊंगी तो नर हाथी के साथ प्रशिक्षण लूंगी."

एशिया में पाए जाने वाले हाथियों में केवल नर हाथियों के नोकदार दांत होते है और उन पर मादा हाथियों के मुकाबले क़ाबू पाना मुश्किल होता है.लेकिन लौरा को यहाँ प्रशिक्षण लेने में एक बाधा आ रही है और वह है भाषा। जो भी महावत वहाँ काम करते हैं वह सभी मलयालम बोलते हैं। ऐसे में लौरा के लिए ये भाषा सीखना अनिवार्य हो गया है।

लौरा कहती है, "मुझे अब भी पूरी तरह से ये भाषा नहीं समझ आती है."लेकिन हाथी पर क़ाबू पाने और उसे हुक्म देने के लिए उन्होंने कुछ शब्दों को याद कर लिया है। वह कहती है," मलयालम सीखना हाथी पर क़ाबू पाने से मुश्किल है। हाथी भी आप से बातचीत करते हैं और बहुत कुछ बताते हैं लेकिन अगर आप को मलयालम नहीं आती तो आप कुछ नहीं कर सकते। "

एलीफ़ैंट जंक्शन के एक अधिकारी का कहना है कि लौरा को हाथियों के बारे में जानने की बहुत ललक है और वह प्रशिक्षण का काम रुचि लेकर सीख रही है।

भाषा
एलीफैंट जंक्शन में प्रंबंधक शज़ी नायर का कहना है,"अन्य लोगों की तरह ही लौरा को भी हाथियों के बारे में कुछ मुख्य बातें बताई गई हैं जैसे वह क्या खाते हैं, वह कितना पानी पाते हैं, उनके कितने दाँत होते है और बहुत कुछ। "

इस प्रशिक्षण के दौरान हाथी के मूड को जानने के लिए उसके स्वभाव और संकेतों को पढ़ने की जानकारी भी दी जाती है। शज़ी नायर कहते हैं आमतौर पर महावत बनने का प्रशिक्षण पुरुषों को दिया जाता है लेकिन लौरा को भी वही प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उनका कहना था,"हम हाथियों को समझने के लिए शब्दों और छू कर कमांड देते हैं और ये कमांड एक हथियार अंकुश के ज़रिए दी जाती है। "

इस हथियार के ज़रिए हाथी के सिर या अन्य संवेदनशील भागों जैसे मुँह या कान के भीतरी भाग में थपथपा कर हाथी को निर्देश दिए जाते हैं। नायर का कहना है, "महावत के लिए स्थानीय भाषा को समझना बेहद ज़रूरी है क्योंकि हर क्षेत्र के हाथी क्षेत्रीय भाषा के आदि होते हैं। "वह कहते है लौरा या किसी भी अन्य व्यक्ति के महावत बनने में कितना समय लगेगा ये कह पाना मुश्किल है।

अभ्यास
लौरा के अनुसार,"मेरे प्रशिक्षक ये कहते हैं कि मैंने 50 फीसदी से ज्यादा चीज़े सीख ली हैं और बाक़ी की चीज़ें मुझे अभ्यास से आएँगी। लेकिन ये सब इस बात पर निर्भर करेगा कि मैं हाथी के साथ किस तरह का तालमेल बिठा पाती हूँ."

वह कहती हैं कि ये कहा जाता है कि आपको हाथियों पर विश्वास करना आना चाहिए। इनके साथ हमेशा डर और ख़तरा बना रहता है। लेकिन इस बीच अगर कुछ ग़लत हो जाता है तो आपके पास दूसरा मौका नहीं होता।

एक बार मैं ऐसा ही अनुभव भी कर चुकी हूँ जब एक हाथी को मैंने आज्ञा दी लेकिन उसने उसके विपरीत काम किया। महावत का काम देखने में आकर्षक तो लगता है लेकिन इसमें मुश्किल से एक दिन में 10 डॉलर की कमाई होती है, वो भी तब जब आपका दिन अच्छा हो। लेकिन लौरा को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

वह कहती है, "अगर आप वो काम करना चाहते है जो आपका दिल कहता है तो उसमें पैसे कोई मायने नहीं रखते." वह ये उम्मीद कर रही है उनकी यूनिवर्सिटी उनके इस नए प्यार को समझेगी और उनका समर्थन करेगी।

वह कहती है, "भारत में हाथियों का उपचार आयुर्वेद या होम्योपैथी के ज़रिए होता है। ऐसे में मैं ये उम्मीद करती हूँ कि हाथियों के साथ मेरा भविष्य सुरक्षित रह सकेगा." वह कहती है," एक बार मेरा प्रशिक्षण पूरा हो जाएगा तो मैं केरल में पहली महिला महावत बन जाऊंगी."

 

Posted By: Inextlive