मेरी बेटी तो इस दुनिया से चली गई लेकिन उन पैरेंट्स से इतना कहना चाहूंगा कि अपने नाबालिग बच्चों को इस तरह कार चलाना न सिखवाएं जिससे दूसरे की जिंदगी चली जाए.मेरे साथ तो ऐसा हो गया फिर किसी पर ऐसे दुखों का पहाड़ न टूटे. बालिग होने पर कार का स्टेयरिंग उनके हाथ में दें उससे पहले किसी ट्रेनिंग स्कूल से उनको ट्रेण्ड कराएं. भगवान करे मेरी बात लोगों की समझ में आए और फिर किसी परिवार ऐसे आंसू न बहाना पड़े. यह कहना है सोमवार को हादसे में जान गंवाने वाली एनएलके स्कूल की छात्रा कल्पना के पिता विनोद कुमार का. दोपहर बाद जब दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम विनोद के घर पहुंची तो फस्र्ट फ्लोर पर बाहर के कमरे में पड़े तखत पर बेटा अंशुमन लेटा था पास में ही एक वृद्ध बैठे थे. करीब ही कुर्सी पर विनोद बैठे सुबक रहे थे बेटी की मौत का सद्मा कुछ इस तरह बैठा कि अब तक हिचकियां बंधी हुई हैैं. हादसे के 14 घंटे बाद आंसू सूख गए हैैं.


कानपुर (ब्यूरो) मूल रूप से उन्नाव के बांगरमऊ फतेहपुर चौरासी निवासी विनोद कुमार निषाद पत्नी दुर्गावती के साथ 1999 में कानपुर रहने आए थे। कुछ दिन दूसरे के साथ काम किया फिर अपनी दुकान खोल ली। दुकान खुलने के बाद कल्पना का जन्म हुआ तो दुकान का नाम कल्पना स्वीट हाउस रख लिया गया। सोमवार हादसे में बेटी कल्पना की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार भैैंरोंघाट में किया गया। मंगलवार को पूरा परिवार गमगीन दिखाई दिया। बेटी की यादें दिल में संजोए विनोद ने बताया कि कार सीख रहे नाबालिग के खिलाफ कुछ ऐसी कार्रवाई हो, जिससे किसी दूसरे के साथ ऐसा न हो जैसा उनके साथ हुआ है। उन्होंने कहा कि समझौता करने के ऑफर तो आ चुके हैैं, लेकिन वे अपनी लड़ाई खत्म होने तक जारी रखेंगे। परिवार वाले देंगे लड़ाई में साथ
विनोद ने बातों के दौरान बताया कि रात से ही लोग आ रहे हैैं। परिवार वाले उसे आश्वासन दे रहे हैैं कि किसी भी हालत में पीछे नहीं हटना है। विनोद ने बताया कि उसकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है लेकिन कोई ये बताए कि उनकी बेटी की गलती क्या है? वह तो पढऩे जा रही थी। उनका सपना बेटी को पढ़ा लिखा कर डॉक्टर बनाने का था। अब नियति को यही मंजूर था। इसी दौरान सीढिय़ों के पास कल्पना की मां दुर्गावती भी आकर बैठ गईं, अंदर से महिलाएं आ-जा रही थीं। रह-रह कर रोने की आवाज सुनाई दे रही थी। इसी बीच बेटा अंशुमन पिता की गोद से उतरकर मां की गोद में बैठ गया। उसे ये भी नहीं पता था कि उसके पालन-पोषण में मां का सहयोग करने वाली उसकी दीदी इस दुनिया में नहीं है। मोटर व्हीकल एक्ट अगर कहीं कमजोर है तो बहुत मजबूत है। अगर ड्राइविंग लाइसेंस न हो तो हत्या का केस दर्ज किया जाता है। ड्राइवर की जानकारी पुलिस की जांच या सीसीटीवी कैमरे से की जाती है। संदीप कुमार शुक्ला, एडवोकेट

पुलिस ने एफआईआर में खेल किया है। इस तरह के मामले में मेन रोड पर नाबालिग को स्टेयरिंग थमाने वाले ड्राइवर और गाड़ी मालिक को भी आरोपी बनाना चाहिए था। लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया। ड्राइवर भैरव झा और गाड़ी मालकिन नाबालिग की मां अंजना भगत को भी एफआईआर में आरोपी बनाना चाहिए था।पीके गोस्वामी, एडवोकेट हाईकोर्ट

Posted By: Inextlive