कुछ समय पहले वैज्ञानिक कह रहे थे कि वे एक ऐसे माइक्रोचिप बनाना चाहते हैं जिसे मरीजों की त्वचा के नीचे लगा दिया जाए और वह समय समय पर

दवा की संतुलित मात्रा मरीज को देता रहे। तब लगता था कि वे कोई खयाली पुलाव पका रहे हैं लेकिन अब यह परिकल्पना सच के एक क़दम और करीब पहुँच गई है।

अमरीका में वैज्ञानिक ऐसे एक माइक्रोचिप का एक महिला पर परीक्षण कर रहे हैं जिसे ऑस्टियोपोरोसिस है। ये एक ऐसा रोग है जिसमें हड्डियाँ कैल्शियम की कमी से कमज़ोर हो जाती हैं। एक माइक्रोचिप को उनकी कमर में लगाया गया है और उसे रिमोट कंट्रोल के ज़रिए शुरु कर दिया गया है।

साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन में प्रकाशित विवरण के अनुसार इस माइक्रोचिप के क्लिनिकल ट्रायल से पता चला है कि चिप सही मात्रा में शरीर को दवा दे रहा है और उसके कोई साइट इफ़ेक्ट भी नहीं हैं। इस प्रयोग के बारे में अमरीकन एसोसिएशन ऑफ़ एडवांसमेंट ऑफ साइंस (एएएएस) में भी चर्चा की गई है.

मैसाच्युसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी (एमआईटी) के प्रोफेसर रॉबर्ट लैंगर इस चिप का निर्माण करने वालों में से एक हैं। वे दावा करते हैं कि नियंत्रित हो सकने वाले

इस चिप ने चिकित्सा के क्षेत्र में नई संभावनाओं को द्वार खोल दिए हैं। वे कहते हैं, "सच कहें तो आप इस चिप में दवा की दुकान डाल सकते हैं."

प्रोफेसर लैंगर कहते हैं, "इस शोध में उपकरण का उपयोग ऑस्टियोपोरोसिस के लिए किया गया है लेकिन ऐसी कई बीमारियाँ हैं जिसमें चिप का प्रयोग इलाज

के परिणामों को सुधार सकते हैं, उदाहरण के तौर पर मल्टिपल स्क्लैरोसिस और कैंसर के इलाज में, टीकाकरण और दर्द निवारक दवा देने के लिए."

इस तरह के चिप के निर्माण की पिछले 15 वर्षों से कोशिश की जा रही थी और अब पहली बार इस वायरलेस कंट्रोल से दवा देने वाले उपकरण का मनुष्यों पर प्रयोग हो रहा है।

दवा देने के लिए प्रोग्रामये नाखून के आकार का माइक्रोचिप है जो दवा के छोटे-छोटे पैकेट से जुड़ा होता है। अभी जो प्रयोग किया जा रहा है, इसमें पैराथॉयराइड हार्मोन और टेरीपैराथाइराड भरा हुआ है, जिसका प्रयोग ऑस्टियोपोरोसिस में किया जाता है। दवा आदि से भरा हुआ पूरा उपकरण कुल मिलाकर दिल में लगने वाले पेसमेकर की तरह होता है।

इस शोधपत्र के सह लेखक डॉक्टर रॉबर्ट फारा बताते हैं, "ये उपकरण पाँच सेंटीमीटर लंबा, तीन सेंटीमीटर चौड़ा और एक सेंटीमीटर मोटा है." वे बताते हैं कि इस उपकरण में ऐसी सामग्री का प्रयोग किया गया है जो शरीर को नुकसान नहीं पहुँचाते और इस उपकरण के भीतर इलेक्ट्रॉनिक्स लगे हुए हैं जिसमें दवा और दवा के पैकेट दोनों होते हैं।

इसके काम करने की पद्धति के बारे में बताते हैं कि हर दवा के छोटे पैकेट को प्लैटिनम और टाइटेनियम की पतली झिल्लियों से ढँक कर रखा गया है। जब इन झिल्लियों को हटाया जाता है तभी दवा शरीर में जाती है।

उनका कहना है कि जब ज़रुरत होती है तो बिजली का हलका झटका देकर इस झिल्ली में सुराख कर दिया जाता है और दवा शरीर में पहुँच जाती है।

चूंकि इस चिप को पहले से प्रोग्राम किया जा सकता है, इसलिए दवा की मात्रा और समय पहले से तय कर दिया जाता है और जैसा कि शोध पत्र में बताया गया है, जरुरत पड़ने पर रिमोट कंट्रोल के जरिए भी समय आदि का निर्धारण किया जा सकता है।

इस शोध से जुड़े प्रोफेसर माइकल काइमा ने बीबीसी को बताया, "जब माइक्रोचिप दवा के पैकेट पर लगी झिल्लियों को संकेत देते हैं तो एक सेंकेंड के 25 हिस्से के समय में ये झिल्लियाँ पिघल जाती हैं." उन्होंने बताया, "इसके बाद उपकरण में लगी केशिकाएँ दवा को खून में पहुँचा देती हैं."

प्रयोग और भविष्य

इस उपकरण का प्रयोग डेनमार्क में सात महिलाओं पर किया जा रहा है, जिनकी उम्र 65 से 70 वर्ष के बीच है। वैज्ञानिकों ने अपने शोध पत्र में बताया है कि इस उपकरण के जरिए दवा दिया जाना ठीक उसी तरह से प्रभावशाली साबित हो रहा है जैसा पेन-इंजेक्शन के जरिए दवा देने पर होता है और इससे हड्डियों में सुधार हो रहा है.ॉ

उनका कहना है कि अब तक कोई साइट इफैक्ट देखने में नहीं आया है। उन्होंने ये भी स्पष्ट किया है कि किसी दवा का प्रभावशाली होना न होना इस प्रयोग का हिस्सा नहीं है और ये प्रयोग सिर्फ़ इस उपकरण के लिए किया जा रहा है।

हालांकि इस प्रयोग की शुरुआत मैसाच्युसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी (एमआईटी) में हुई थी लेकिन अब इसका विकास माइक्रोचिप इंक नाम की एक कंपनी कर रही है। अब ये कंपनी इस उपकरण को और विकसित करने की कोशिश कर रही है जिससे कि इसमें दवा की और खुराकें डाली जा सकें।

अभी जो प्रयोग किया जा रहा है उसमें उपकरण में दवा की सिर्फ़ 20 खुराकें ही हैं लेकिन कंपनी मानती है कि इस उपकरण में सैकड़ों खुराक डालना संभव है। हालांकि इस उपररण को बाजार में आने में अभी भी पाँच साल का समय लगेगा।

प्रतिक्रियाएँयूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन डियागो में बायोइंजीनियरिंग के प्रोफेसर जॉन वाटसन ने इस शोध पर टिप्पणी करते इस उपकरण में सुधार की जरुरत बताई है।

उन्होंने कहा, "शोध के दौरान एक मरीज पर ये उपकरण कारगर नहीं रहा। वह आठवीं महिला थी जिसका ज़िक्र शोध पत्र में नहीं किया गया है। इसके अलावा इस समय जो उपकरण बनाया गया है उसमें सिर्फ़ 20 खुराकें हैं."

उनका कहना है कि ये प्रयोग फिलहाल सिर्फ सात महिलाओं पर किया जा रहा है, इसे बाजार में लाने से पहले अमरीकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) की सहमति लेनी होगी और उसमें कई वर्षों का समय लग सकता है।

ब्रिटेन में नेशनल ऑस्टियोपोरोसिस सोसायटी की नर्स जूलिया थामसन का कहना है कि ये उपकरण उन लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो सकता है जिन्हें खुद से हर दिन इंजेक्शन के जरिए दवा लेनी होती है।

उनका कहना है कि इंजेक्शन लगाने के इंझट से मुक्त होने के लिए लोग इसे अपना लेंगे, खासकर ऑस्टियोपोरोसिस के मामले में जिसमें महिलाओं को पैराथॉयराइड का इंजेक्शन खुद लेना होता है। वे कहती हैं, "हालांकि ये प्रयोग अभी बहुत छोटा है लेकिन इसके नतीजे उत्साहित करने वाले हैं."

मैसाच्युसेट्स के शोधकर्ता कहते हैं कि अब इस पर विचार किया जा सकता है कि चिप्स अलग-अलग तरह की दवाओं पर नियंत्रण करे और मरीज के शरीर की स्थिति के अनुरुप दवा की मात्रा तय कर सके।

Posted By: Inextlive