उन्हें मिले शिक्षा का हक
अमेरिका में पॉपुलेशन का 12 परसेंट हिस्सा डिसेबल्ड के तौर पर गिना जाता है, इंग्लैंड में 18 परसेंट और जर्मनी में नौ परसेंट है। भारत में ऑफिशियल आंकड़ों के मुताबिक केवल 2 परसेंट लोग ही डिसेबल्ड हैं। नेशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ इंप्लॉयमेंट फॉर डिसेबल्ड पीपुल के जावेद अबीदी का इन आंकड़ों को लेकर दिल पर लगने वाला सवाल था कि दूसरे देशों की तुलना में भारतीय माहौल या फिर मौसम या फिर जीन में ऐसा क्या खास है कि हमारे देश में 10 में से केवल एक या फिर पांच में से केवल एक ही डिसेबल्ड की कैटेगरी में आता है? या फिर गिनती में कुछ गड़बड़ है? आजादी के 53 साल तक यानी साल 2000 तक भारत की सेंसस रिपोर्ट में एक भी डिसेबल्ड का रिकॉर्ड दर्ज नहीं है.
सर्व शिक्षा अभियान कहता है कि भारत में हर बच्चे का शिक्षा पर हक है। इसके बावजूद भारत में कई स्कूल उन बच्चों को एडमिशन देने से साफ इंकार कर देते हैं जो थोड़े से भी डिसेबल्ड होते हैं। वो इसके पीछे इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी और टें्रड स्पेशल टीचर्स के ना होने का बहाना देते हैं। वो शायद सही भी हैं। लेकिन देश के स्कूलों को डिसेबल्ड फ्रेंडली होने से किसने रोका है? मैं डरता हूं कि कहीं विचारों में कमी, दिमाग को और शायद दिल को अमल में ना लाना तो नहीं है। आइए उसे बदल डालें। हम अगर आज से शुरू करेंगे तो हर स्कूल (अगर वो चाहे तो) दो साल और ज्यादा से ज्यादा तीन साल के भीतर पूरी तरह से एक इंटीग्रेटेड स्कूल बन जाएगा. वर्तमान में डिसेबल्ड बच्चों का एक बहुत छोटा परसेंंटेज शिक्षित है जो कि एक चेतावनी की तरह है। मजबूत शिक्षा के बिना कोई भी बच्चा ताकत को पहचान नहीं सकता। डिसेबिलिटी के साथ आने वाले बच्चों को स्कूलों में एडमिशन न देकर हम उनको शिक्षा का अधिकार देने से इंकार कर रहे हैं और ऐसे में उन्हें उनकी जिंदगी को काबिल बनाने का हक भी नहीं दे रहे हैं।
हम नॉर्मल बच्चों को भी उनके साथ मिलने से और उनसे कुछ सीखने से भी रोक रहे हैं। हम उन्हें क्रिएटिव, अपनी देखभाल और अपनी फैमिली की देखभाल कर सकने का एक आधार तैयार कर सकते हैं। सरकार कहती है कि भारत में दो परसेंट लोग ही डिसेबल्ड हैं। एक्सपट्र्स और एनजीओज का दावा है कि यह छह परसेंट है। चलिए अगर मान लिया कि यह आठ परसेंट है। 1.2 बिलियन की जनसंख्या में यह 96 मिलियन हुआ। यह इंग्लैंड की जनसंख्या (51 मिलियन), फ्रांस (65 मिलियन) और जर्मनी (80 मिलियन) से कहीं ज्यादा है। जैसा कि जावेद अबीदी ने कहा कि क्या हम यह चाहते हैं कि हमारे देश की 90 मिलियन पॉपुलेशन अशिक्षित हो, रोजगार हो, असमर्थ हो और एक बोझ की तरह हो? या फिर हम चाहते हैं कि हमारे समाज का यह एक बड़ा तबका शिक्षित हो, उसके पास रोजगार हो और वो भी देश की तरक्की में कांट्रीब्यूट करे। तो हमें उन लोगों को मेन स्ट्रीम एजुकेशन में शामिल करना हेगा। बस यही आखिरी सच है सत्यमेव जयते