अपने शहर की माटी भूकम्प के झटके झेलने में कमजोर
- गंगा-यमुना नदी के बहाव के कटान से बनने वाली मिट्टी कानपुर में मौजूद
- बालू के साथ स्ट्रांग बॉन्डिंग नहीं होने से भूकम्प के झटके झेलने की ताकत नहीं - वाराणसी के घाटों में यहां से बहकर पहुंचने वाली बालू की कई फुट गहरी परतें kanpur@inext.co.in KANPUR : अपने शहर की माटी भूकम्प के झटके नहीं झेल सकती। नदी के साथ किनारे-किनारे बहकर शहर तक पहुंचने वाली मिट्टी की पकड़ इतनी ढीली है कि भूकम्प के तगड़े झटकों को रोक पाना इसके लिए मुमकिन नहीं है। स्वाइल एक्सपर्ट्स के अनुसार गंगा की तलहटी पर सैंड बेड (बालू की परतें) भी ज्यादा गहरी नहीं है। ऐसे स्थानों पर जब भूकम्प आता है, वहां सबसे ज्यादा नुकसान होता है। गंगा-यमुना के बहाव से बनी 'एल्युिवयल स्वाइल'कानपुर की धरती में प्रचुर मात्रा में 'एल्युवियल स्वाइल' मौजूद है। यह मिट्टी उपजाऊ तो है, लेकिन इसमें इतनी ताकत नहीं है कि भूकम्प के झटकों को कम कर सके। सीएसए में स्वाइल टेस्टिंग डिपार्टमेंट के डॉ। बीडी तिवारी ने बताया कि एल्युवियल स्वाइल बेहद उपजाऊ होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह मिट्टी गंगा और यमुना नदी के बहाव के कटान से बनती है। इस प्रकार की मिट्टी का रंग हरा और भूरापन लिए होता है।
लूज बॉडिंग बड़ी वजह
नदियों के बहाव का असर कुछ ऐसा होता है कि चट्टानें टूटकर कंकड़-रोड़े और कई किलोमीटर बाद सैंड यानि बालू के सूक्ष्म कणों में तब्दील होती जाती हैं। एल्युवियल मिट्टी की पकड़ ढीली होने का ही नतीजा होता है कि इसकी बालू के साथ मजबूत बॉडिंग संभव नहीं है। इसीलिए जब भूकंप के झटके आते हैं तो उन्हें यहां की 'सैंड बेड' रोक नहीं पाती। वाराणसी है इसलिए सुरक्षित जैसे-जैसे बालू और मिट्टी के कण कानपुर से आगे बढ़ते हैं, वहां भूकम्प के शॉक्स एब्जॉर्व करने की ताकत बढ़ जाती है। वाराणसी शहर इस बात का शानदार उदाहरण है। स्वाइल एक्सपर्ट्स के अनुसार प्रकृति का करिश्मा ही कहा जाएगा कि कानपुर से बहकर वाराणसी पहुंचने वाली गंगा नदी के किनारों पर बालू की मजबूत और कई फुट गहरी परतें बनी हुई हैं। इसलिए कानपुर जितनी तीव्रता का भूकंप अगर वाराणसी में आता है, तो वहां नुकसान की आशंका न के बराबर है। शुक्र है कानपुर में धीमी बहती है गंगाशहर पहुंचते-पहुंचते गंगा नदी के बहाव का वेग इतना प्रचंड नहीं रह जाता, जितना ऋषिकेश में होता है। इसलिए यहां भूकंप आने पर उतना नुकसान नहीं होगा, जितना कि पहाड़ी इलाकों में होता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक जहां-जहां नदियों का बहाव तेज होता है। उन स्थानों पर नदी के किनारे-किनारे कंकड़ और रोड़े पाए जाते हैं। वहीं जिन स्थानों पर नदियां धीमे वेग से बहती हैं, वहां रेत और मिट्टी के सूक्ष्म कण इकट्ठा हो जाते हैं। भूकम्प की तरंगें कंकड़ और रोड़े के बीच के गैप से होकर बहुत तेजी से फैलती हैं। जिससे नुकसान भी बहुत जाता है। मगर, जहां मिट्टी और बालू की परतें नदी किनारे बिछी होती है। उस एरिया को भेदकर आगे बढ़ने पर भूकंप की तरंगों की तीव्रता कम होती जाती है। कानपुर में अगर गंगा प्रचंड गति से बहती तो भविष्य में भूकम्प आने पर यहां के लोगों को भी पहाड़ी इलाकों जैसा नुकसान झेलना पड़ जाता। मगर, यहां गंगा स्लो स्पीड में बहती हैं। इसलिए भूकंप आएगा तो नुकसान होगा, लेकिन पहाड़ी स्थानों की तुलना में थोड़ा कम
'यहां एल्युवियल मिट्टी पाई जाती है। इसकी प्रकृति उपजाऊ होती है। गंगा और यमुना नदी के बहाव की वजह से यह मिट्टी बनती है। जो बालू के छोटे-छोटे कणों के साथ मिश्रित होती है। - प्रो। जीडी तिवारी, स्वाइल एक्सपर्ट, सीएसए