Lucknow: अब आर्किटेक्ट और सिविल इंजीनियरों को नौकरी की तलाश में दुबई और ओमान जाने की जरूरत नहीं. डीएलफ ईमार एमजीएफ यूनीटेक अंसल और ओमेक्स जैसी बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनियां लखनऊ में जड़ें मजबूत कर रही हैं. राजधानी भी आर्किटेक्ट और इंजीनियरों का बड़ा हब बनने वाला है. यही वजह है कि पिछले तीन सालों में कम्प्यूटर साइंस और आईटी जैसी ब्रांचेस को छोड़ कर स्टूडेंट्स का रूझान सिविल इंजीनियरिंग और आर्किटेक्‍चर में बढ़ गया है.

40 सीटों पर 50 हजार फार्म

गर्वनमेंट कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर के धीरज बताते है कि जीसीए में आर्किटेक्चर है। जिन पर एसईई के थ्रू एडमिशन होते है। पिछले कुछ सालों में आर्किटेक्चर की डिमांड काफी तेजी से बढ़ी है। यही वजह है कि लास्ट ईयर इन 40 सीटों पर 50 हजार से ज्यादा कैंडीडेंट्स ने एप्लाई किया था। धीरज बताते है कि सिटी में करीब गर्वनमेंट कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर समेत चार प्राइवेट इंस्टीट्यूट में आर्किटेक्चर की डिग्री दी जाती है। जीसीए समेत यहां पर 120 सीटें है। जो पहले राउंड की काउंसिलिंग में ही फुल हो जाती है।

सिविल की डिमांड भी बढ़ी

सीतापुर रोड स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रो एम खान बताते है कि पिछले कुछ सालों में सिविल इंजीनियरिंग में स्टूडेंट्स का रूझान तेजी से बढ़ा है। लास्ट ईयर काउंसिलिंग में भी देखा गया था कि आईटी और कम्प्यूटर साइंस से पहले स्टूडेंट्स सिविल इंजीनियरिंग ब्रांच को चुन रहे थे। प्रो खान बताते है कि आईईटी में सिविल इंजीनियरिंग की 60 सीटें है जो सबसे पहले फुल हो जाती है। उन्होंने बताया कि गर्वनमेंट सेक्टर के साथ रियल इस्टेट में बूम आने की वजह से सिविल इंजीनियर्स की डिमांड में इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि सिटी में इंफ्रास्ट्रक्चर तेजी से बढ़ रहा है। जिसकी वजह से सिविल इंजीनियर्स की डिमांड भी बढ़ रही है। जीबीटीयू के एक अधिकारी बताते है कि सिटी में 60 से ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेज चल रहे है। जिसमें 2700 से ज्यादा सिविल इंजीनियरिंग की सीटें है। उनका कहना है कि कम्प्यूटर साइंस और आईटी की सीटें भले ही खाली रह जाएं लेकिन सिविल इंजीनियरिंग सीटें फुल ही रहती है।

बदल रहा है लखनऊ

डीएलएफ कामर्शियल कॉम्प्लेक्स लिमिटेड के एक सीनियर ऑफीसर के मुताबिक लखनऊ अब काफी बदल चुका है। कुछ साल पहले जिन सिविल इंजीनियरों को बेहतर नौकरी नहीं मिल पाती थी वह विदेश का रुख करते थे। अब सिविल इंजीनियरों की बड़ी संख्या लखनऊ के रियल एस्टेट में अपनी सेवा दे सकेंगे। उनके लिए कई ऑप्शन खुले हैं। वह पिछले दो सालों से यहां कंस्ट्रक्शन कराने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वक्त अब आया है। डीएलएफ यहां 7,50,000 वर्ग फीट पर डीएलएफ प्लाजा का निर्माण कराने जा रही है।

धड़ाधड़ खुल रहे हैं इंजीनियरिंग कालेज

यह बढ़ती मांग का ही नतीजा है कि शहर में 20 इंजीनियरिंग कॉलेज जल्द ही शुरू हो जाएंगे। सिविल इंजीनियर बीके श्रीवास्तव ने बताया कि भूकंपरोधी मकानों की मांग को देखते हुए अपार्टमेंट के निर्माण में भी सिविल इंजीनियरों और आर्किटेक्ट की भूमिका बढ़ गई है। लोगों को मकान की बुकिंग कराने के पहले भूकंपरोधी होने की जानकारी ले रहे हैं। उनके अनुसार कुछ बिल्डर भूकंपरोधी डिजाइन तैयार करने के लिए सिविल इंजीनियरों की अलग टीम ही रखते हैं, जो जगह के चयन से लेकर निर्माण तक में भूकम्प जोन आदि का ख्याल रख नींव को तैयार कराते हैं

प्रापर्टी बूम ने संवारे दिन

रुद्राक्ष ग्रुप के संजीव जायसवाल का कहना है कि प्रापर्टी बूम ने सिविल इंजीनियरों के दिन संवार दिए हैं। आर्किटेक्ट और सर्वेयरों को भी फायदा हुआ है। पांच-सात साल पहले तक सिविल इंजीनियरिंग का क्षेत्र बेकारी से जूझने लगा था। लड़के डिग्री तो ले रहे थे, लेकिन नौकरी के पद पर नजर नहीं आ रहे थे। स्थिति यह हुई कि देश भर के कई महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग कॉलेजों में पहुंचने वाले छात्र सिविल इंजीनियरिंग की तरफ मजबूरी में ही नामांकन लेते थे। स्थिति यह हो गई थी कि नौकरी न मिल पाने के कारण सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर लोग विदेश जाने लगे थे। लेकिन अब अच्छे दिन लौट आए हैं।

रिएल स्टेट मार्केट में बढ़ी डिमांड

प्रापर्टी कंसल्टेन्ट मनीष शुक्ला के अनुसार प्राधिकरणों के साथ ही रियल एस्टेट मार्केट में सिविल इंजीनियरों और आर्किटेक्ट की काफी मांग है। शहर में एलएनटी, डीएलफ, ईमार एमजीएफ, यूनीटेक और ओमेक्स जैसे ग्रुप कंस्ट्रक्शन कराने के लिए उतर रहे हैं। पहले जहां बिल्डर एक प्रोजेक्ट पर एक ही सिविल इंजीनियर से काम चलाते थे। वहीं आज एक बड़े प्रोजेक्ट पर दो से चार इंजीनियर और आर्किटेक्ट लगे होते हैं। डिजाइन पर विशेष ध्यान दिए जाने के कारण अब प्राधिकरणों में भी कई सिविल इंजीनियर रखे गए हैं.

लखनऊ का बढ़ रहा है दायरा

- सीतापुर रोड, फैजाबाद रोड, सुलतानपुर रोड, रायबरेली रोड, कानपुर रोड पर हैं कई रियल इस्टेट कंपनियों के प्रोजेक्ट

- आर्किटेक्ट के बीच बढ़ा कम्प्टीशन

- हर आदमी बनवाना चाह रहा है बेहतरीन नक्शा

- कम फीस पर बेहतर सुविधाओं का दावा

- अब आर्किटेक्ट भी रिजेक्ट कर रहे हैं दूूसरे शहरों से आ रहे ऑफर

- 2000 रुपए से लेकर 10 हजार रुपए है फीस

- साइट का लेते हैं जिम्मा और बनवाते हैं पूरा मकान

- शहर में 250 से ज्यादा आर्किटेक्ट

क्या कहते हैं जानकार

बिजनेसमैन अनिल कपूर कहते हैं कि चार साल पहले एक मकान बनवाया था। उस समय तो आर्किटेक्ट से नक्शा बनवाने की जरूरत ही नहीं समझी। लेकिन अब यह समय की जरूरत है। एक अच्छी कॉलोनी में बसाने के लिए जरूरत है एक सिस्टेमिटक नक्शे की। इसीलिए वह जानकीपुरम में अपने प्लॉट पर मकान बनवा रहे हैं और वो भी नक्शे के मुताबिक। वहीं वास्तुशास्त्री राजीव शुक्ला कहते हैं कि पहले लोग वास्तु का ध्यान ही नहीं रखते थे लेकिन अब मकान बनवाते समय वह वास्तु का पूरा ध्यान रखते हैं। यह समय के जरूरी भी है। दूसरी ओर आर्किटेक्ट सुपर्णा कहती हैं कि माडुलर किचेन और एंटीक टाइप के पुराने स्ट्रक्चर की डिमांड इस समय जोरो पर है। मार्डन टेक्नोलॉजी के फ्लैट इस समय पसंद किए जा रहे हैं. 

Posted By: Inextlive