LUCKNOW NEWS: उम्र में इजाफे के साथ ही शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं। जिससे किशोरों के मन में सेक्स एजुकेशन को लेकर कई तरह के सवाल भी आते हैं। झिझक और शर्म के कारण वे इन सवालों के जवाब परिजनों से नहीं पूछते हैं। वे अपनी समस्याओं का समाधान दोस्तों से पूछकर करना चाहते हैं या फिर इंटरनेट का सहारा लेते हैं।

लखनऊ (ब्यूरो)। जहां उन्हें अधिकतर जानकारी आधी-अधूरी या गलत ही मिलती है। जिससे वे मानसिक समस्याओं का शिकार होने लगते हैं। केजीएमयू के मानसिक स्वास्थ्य विभाग में की गई रिसर्च में यह जानकारी सामने आई है।

250 युवाओं पर की गई स्टडी
केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग के डा। आदर्श त्रिपाठी की ओर से ओपीडी में आने वाले 15 से 25 साल के 250 लोगों पर एक रिसर्च की गई है। ये सभी केजीएमयू की ओपीडी में एक साल के दौरान आए थे। इनमें से करीब 10 प्रतिशत लोग ऐसे मिले, जो सेक्स को लेकर मिली गलत जानकारी के चलते डिप्रेशन में थे और इनमें समस्या भी मिली। वहीं, बाकी 90 प्रतिशत भी कुछ हद तक गलतफहमी का शिकार थे, लेकिन उनमें कोई समस्या नहीं मिली।

जानकारी न होने का उठा रहे लाभ
डा। आदर्श ने बताया कि यूरोप और अमेरिका में सेक्स एजुकेशन पर काफी जोर दिया जाता है और सेक्स से रिलेटेड मेडिकल मार्केट पर भी कड़ी नजर रखी जाती है। वहीं, भारत संग साउथ एशिया के देशों में ऐसा कुछ नहीं होता है। यहां बहुत से डाक्टर भी इस चीज को ठीक से नहीं समझा पाते हैं, या कहें कि लोग इसे समझ ही नहीं पाते हैं। इसका पूरा फायदा सेक्स की दवाएं बेचने वाले और सेक्सोलॉजिस्ट उठाते हैं। इंडिया में कई नीम-हकीम लोगों की इस कमजोरी का फायदा उठा रहे हैं।

इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं
डा। आर्दश के अनुसार आयुर्वेद में वीर्य को बेहद महत्वपूर्ण बताते हुए इसका बचाव जरूरी बताया गया है। यानि मास्टरबेशन या नाइट फाल को गलत बताया गया है। कई माडर्न मेडिकल रिसर्च में पाया गया है कि इसके लॉस से कोई नुकसान नहीं होता है। दुनिया में 95 प्रतिशत से अधिक लोग मास्टरबेशन करते हैं और इसका उन पर कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है।

गलत विज्ञापन के चक्कर में फंसते हैं
सेक्स एजुकेशन न होने के चलते युवाओं को सही जानकारी नहीं मिलती है। वे सेक्स रोग से संबंधित विज्ञापनों को देखते हैं और समझ ही नहीं पाते हैं कि इसमें दी गई बहुत सी जानकारियां गलत होती हैं। जिसके चलते वे खुद को बीमार समझने लगते हैं। 10 प्रतिशत के करीब किशोर और युवा इस तरह के विज्ञापनों से भ्रमित हो जाते हैं। मेडिकल भाषा में इस समस्या को धात सिंड्रोम कहते हैं।

एंग्जायटी का होते हैं शिकार
डा। आदर्श के मुताबिक कई बार युवा मास्टरबेट करते हैं। बाद में गलत महसूस होने पर टेंशन और एंग्जायटी का शिकार हो जाते हैं। जिसके चलते उनकी भूख में कमी आती है, खाना पचता नहीं है और नींद भी नहीं आती है। मास्टरबेशन के कारण वे यह सोचने लगते हैं। कई युवा इसे कमर या पैर में दर्द की समस्या भी बताते हैं। पुरुषों में यह समस्या अधिक होती है।

हर सोमवार को ओपीडी
डा। आदर्श त्रिपाठी ने बताया कि युवाओं संग बाकी उम्र के लोगों को सेक्स एजुकेशन व दूसरी परेशानियों से बचाने के लिए हर सोमवार को ओपीडी सुबह नौ बजे से चलाई जा रही है। हर उम्र के लोग इसमें समस्याएं लेकर आ रहे हैं।

सही सेक्स एजुकेशन न मिलने से युवा प्रिडेटरी ऐड की चपेट में आ जाते हैं। जहां उन्हें गलत व अधूरी जानकारी मिलती है। इससे वे टेंशन में आ जाते हैं और एंग्जायटी का शिकार हो जाते हैं।
- डा। आदर्श त्रिपाठी, केजीएमयू

Posted By: Inextlive