Lucknow News: पीजीआई के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. राजीव अग्रवाल ने बताया कि चेहरा गला हाथ व पैर की त्वचा में कहीं गड्ढा है या त्वचा दबी हुई है तो उसे सही करने के लिए सर्जरी के दौरान दूसरे स्थान से त्वचा लेकर ट्रांसप्लांट किया जाता है जिसमें काफी समय लगता है।


लखनऊ (ब्यूरो)। आजकल युवा खुद को यंग और खूबसूरत दिखाने के लिए काफी जतन करते हैं, जिसके लिए वे प्लास्टिक सर्जरी तक करवाते हैं। हालांकि, विदेशों में आजकल सर्जरी की जगह फिलर्स तकनीक का इस्तेमाल ज्यादा हो रहा है। यह एक प्रकार का इंजेक्शन होता है जिसका इस्तेमाल दबी हुई नाक, पतले होंठ व चेहरे के गड्ढों को भरने के लिए किया जाता है। इसके लिए ऑपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती है, बल्कि प्लास्टिक सर्जन इंजेक्शन लगाकर उस हिस्से का आकार दवा से फूलाकर सामान्य कर देंगे। निजी अस्पतालों में इसका खर्चा बहुत अधिक है। राजधानी के संजय गांधी पीजीआई के प्लास्टिक सर्जरी विभाग में भी इस तकनीक का उपयोग हो रहा है, जहां निजी अस्पतालों के मुकाबले काफी कम खर्च आता है।सर्जरी की नहीं पड़ती जरूरत
पीजीआई के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ। राजीव अग्रवाल ने बताया कि चेहरा, गला, हाथ व पैर की त्वचा में कहीं गड्ढा है या त्वचा दबी हुई है, तो उसे सही करने के लिए सर्जरी के दौरान दूसरे स्थान से त्वचा लेकर ट्रांसप्लांट किया जाता है, जिसमें काफी समय लगता है। पर नई तकनीक जिसे फिलर कहते हैं, उसकी मदद से सर्जरी करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसमें इंजेक्शन को गड्ढा व दबी त्वचा के भीतर लगाने से वह हिस्सा कुछ ही मिनटों में फूलकर नार्मल हो जाएगी। यह तकनीक विदेशों के अलावा देश के बड़े-बड़े शहरों में बेहद मशहूर हो रही है।पीजीआई में होता है कम खर्चडॉ। राजीव अग्रवाल ने बताया कि यह इंजेक्शन अभी विदेशी कंपनियों द्वारा बनाया जा रहा है, इसलिए एक एमएल इंजेक्शन की कीमत 15-16 हजार रुपये और दो एमएल का इंजेक्शन 25-30 हजार का मिल रहा है। हालांकि, पीजीआई में इसका इतना ही खर्च हो रहा है। निजी अस्पतालों में यह खर्च तीन-चार गुना बढ़ जाता है।युवा कर रहे इसका इस्तेमालडॉ। राजीव बताते हैं कि चूंकि सर्जरी का खर्च 25-30 हजार रुपये के करीब लगता है। साथ ही ओटी, बेहोशी आदि के प्रोसेस का अलग चार्ज लिया जाता है, पर इस नई तकनीक में पेशेंट को कुर्सी पर बैठाकर इंजेक्शन लगाया जाता है और कुछ ही मिनट में मरीज वापस अपने काम पर जा सकता है। युवा खासतौर पर यह तकनीक अपना रहे हैं, क्योंकि वे अब सर्जरी नहीं करवाना चाहते। जब इंडियन कंपनियां इसे बनाने लगेंगी तो यह और सस्ता हो जाएगा।

Posted By: Inextlive