बुरी है आदत बदल डालो
- रोजाना डेढ़ यूनिट बिजली घरों और दफ्तरों में हो जाती है बेकार
- स्टडी रूम से ड्राइंग रूम तक और आलाधिकारी से लेकर बाबू के दफ्तर तक में लाइट्स रहती है ऑन - सालाना 97 करोड़ रुपए से अधिक की बिजली हो जाती है बेकारMeerut : यदि आप कमरे का पंखा चलता हुआ छोड़ देते हैं, कमरे या बाथरूम की लाइट जली छोड़ते या फिर टीवी का स्विच ऑफ किए बिना ही सो जाते हैं, तो अपनी इस खराब आदत को तुरंत बदल डालिए। क्योंकि आपकी यह पुरानी आदत न केवल आपकी ही जेब पर कैंची चला रही है, बल्कि देश को भी गड्ढ़े में धकेल रही है। आपकी इस एक छोटी से लापरवाही के बदले सैकड़ों घरों को रोशन किया जा सकता है और तो और आपके द्वारा बचाई गई एक-एक यूनिट आपकी भविष्य निधि बनकर आने वाले समय में आपके ही काम आ सकती है।
एक ओर जहां शहर को रोस्टिंग मुक्त रखा गया है, वहीं दूसरी ओर शहर में बिजली की अंधाधुंध कटौती की जा रही है। मौजूद समय में शहर को बामुश्किल आठ से दस घंटे ही बिजली मिल पा रही है। विभागीय अधिकारियों से जब बिजली कटौती का कारण पूछा जाता है तो वह इमरजेंसी रोस्टिंग बताकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। लगातार बढ़ रहे कंज्यूमर्स जनपद में बढ़ रही जनसंख्या के साथ ही बिजली उपभोक्ताओं में भी तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। यदि विभागीय आंकड़ों पर गौर करें तो हर साल दस हजार उपभोक्ता विभाग से कनेक्शन प्राप्त कर रहे हैं। उपभोक्ताओं की बढ़ती तदाद साल शहर ग्रामीण 2007 2,02,355 1,34,584 2008 2,12,233 1,34,584 2009 2,32,435 2,16,668 2010 2,38,328 2,28,577 2011 2,44,578 2,38,925 2012 2,51,592 2,47,988 2013 2,92,594 2,54,694 सभी आंकडे़ बिजली विभाग से लिए गए हैं 300 मेगावाट बिजली की कमी विभागीय आंकड़ों पर गौर करें तो इस समय शहर में बिजली की मांग के सापेक्ष आपूर्ति में भारी कमी है। जिसके चलते शहर में बिजली का संकट बना हुआ है। मौजूद समय में शहर में बिजली की मांग 700 सौ मेगावाट है, जबकि इसके सापेक्ष शहर को केवल 400 मेगावाट बिजली ही मुहैया कराई जा रही है। पॉवर लाइन लॉस यदि आंकड़ों पर गौर करें तो मेरठ समेत पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम के अधिकतर जिलों में बड़े पैमाने पर पॉवर लाइन लॉस की जा रही है। जिला लाइन लॉस मेरठ 40.2 मुजफ्फरनगर 33.78 सहारनपुर 44.30 शामली 59.78 बागपत 45.23 गाजियाबाद 19.15 मुरादाबाद 32.72 हापुड़ 44.17 बुलंदशहर 40.92 रामपुर 52.44 नोएडा 7.85 बिजनौर 32.87 संभल 61.41 इस तरह से कर सकते हैं समाधान विशेषज्ञों की मानें तो सरकार, विभाग और जनता जनार्दन के संयुक्त प्रयास से ही बिजली की उपलब्धता को बढ़ाया जा सकता है। ये हैं कुछ उपाय- -बिजली चोरी पर लगे रोक -कनेक्शन की प्रक्रिया को सीधा व सरल बनाया जाए -बिजली चोरी के प्रति लोगों में जागरुकता लाई जाए -राजनीतिक व सभ्रांत लोगों को साथ लेकर चोरी वाले इलाकों में लोगों से संवाद कायम किया जाए। -कैंप लगाकर नए कनेक्शन दिए जाएं -बिजली चोरी पकड़ जाने पर उसको दंडनीय अपराध के स्थान पर कनेक्शन लेने के लिए बाध्य किया जाए। -विभागीय हेराफेरी पर अंकुश लगाया जाए तो तीन घंटे एक्स्ट्रा बिजली बिजली विभाग के अफसरों की मानें तो बिजली चोरी पर लगाम जहां मांग व आपूर्ति के अंतर को काफी हद तक कम कर देगी, वहीं ऐसा होने शहर को तीन घंटे अतिरिक्त बिजली भी मुहैया कराई जा सकेगी। कदम दर कदम जेनरेटर सिटी में आप कहीं भी चले जाएं आपको हर सड़क और घर और बैंक के बाहर जेनरेटर रखा मिल जाएगा। अगर आंकड़ों की बात करें तो सिटी में छोटे बड़े मिलाकर करीब दो लाख जेनरेटर रन कर रहे हैं। किराए पर जेनरेटर देने का कारोबार करने वाले सुनील पाल की मानें तो वैसे तो ये कारोबार पूरे साल चलता है। लाइट जाने पर बैकअप में सभी जेनरेटर का कनेक्शन रखते ही हैं। लेकिन गर्मियों में पब्लिक अपने लिए किराए का जेनरेटर भी रखती है। सिटी में 2.5 केवीए से 500 केवीए तक के जेनरेटर्स यूज हो रहे हैं, जिनमें रोजाना 40 लाख रुपये के डीजल की खपत होती है। तो कुछ इस तरह से होती है डीजल की खपत जेनरेटर्स (केवीए में) डीजल खपत प्रति घंटा (लीटर में) 2.5 0.8 7.5 1 10 1.75 15 2.5 20 3 30 5 40 7 62 12 82 15 125 22 160 30 250 40 500 60 वर्जन आज के समय में जेनरेटर लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है, क्योंकि बिजली न होने की वजह से लोगों के इनवर्टर की बैट्री जल्दी खत्म हो जाती है। तो वो जेनरेटर की ओर ही भागते नजर आ रहे हैं। - सुनील पाल, जेनरेटर व्यापारी ऐसे निपटे संकट से बिजली के संकट को देखते हुए शहरवासी अपने स्तर पर भी कुछ उपाय कर सकते हैं - घरों में केवल जरूरत के उपकरण ही चलाएं - संभव हो तो एक कमरे का पंखा चलाकर, वहीं बैठें - कमरा ठंडा होने के बाद ऐसी का स्वीच ऑफ कर दें - रेफ्रिजरेटर को भी दिन में दो घंटे का रेस्ट दिलाएं - एलईडी व सीएफएल लाइट्स का इस्तेमाल करें एनर्जी सेविंग को लेकर हम सभी का जागरुक होना बहुत जरूरी है। यदि समय रहते नहीं चेता गया तो आने वाले समय में बिजली केवल एक सपना बनकर रह जाएगी। केएम शर्मा, अजंता कालोनी कहते हैं कि बूंद-बूंद से घड़ा भरता है। इस तहर एक-एक यूनिट बचाकर बिजली का बड़ा हिस्सा बचाया जा सकता है। इस बचे हुए हिस्से से कई लोगों के घरों में उजाला हो सकता है। सुनीता, मवाना रोड जब हम अपनी जिम्मेदारी को ही नहीं समझेंगे तब तक किसी दूसरे पर आरोप लगाना सरासर बेमानी है। बिजली हमारी मूलभूत सुविधाओं में से एक है। इस लिए हमें इसको लेकर जागरुक होना चाहिए। - डॉ। संगीता, शास्त्रीनगर पॉवर सेविंग को लेकर सरकार के साथ-साथ जनता को भी आगे आने चाहिए। बिना जनता के सहयोग के कोई कार्य पूर्ण करना मुश्किल ही नहीं असंभव है। एनर्जी सेविंग हमारा आज नहीं हमारा कल है। काजी शाबाद, कोतवाली एनर्जी सेविंग को लेकर विभाग की ओर से तमाम अभियान चलाए जाते हैं, लेकिन जनता की सहभागिता के अभाव में एनर्जी सेविंग केवल एक सपना बनकर रह गई है। शहरवासियों को समझना चाहिए कि बिजली की बचत ही बिजली का उत्पादन है। - विजय विश्वास पंत, एमडी पीवीवीएनएलरोजाना डेढ़ यूनिट बिजली बेकार
आप अनुमान नहीं लगा सकते हैं कि इस तरह की लापरवाही से रोजाना हम लोग घरों में डेढ़ यूनिट बिजली बर्बाद कर देते हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो सिटी में 3 लाख बिजली के कनेक्शन हैं। कनेक्शन के हिसाब से रोज 4.5 लाख बिजली की यूनिट्स बेकार हो जाती है। वहीं महीने के हिसाब से ये यूनिट्स बढ़कर 1.35 करोड़ हो जाती हैं।
करोड़ों रुपए चले जाते हैं जेब से मौजूदा दरों के हिसाब से बिजली की एक यूनिट अधिकतम कीमत 6 रुपए हैं। यानि एक दिन में 27 लाख रुपए की बिजली खराब हम लोग कर देते हैं। वहीं महीने के हिसाब से 8.10 करोड़ करोड़ रुपए की बिजली बेकार हो जाती है। वहीं सालाना हम 97.20 करोड़ रुपए क बिजली का इस्तेमाल ही नहीं करते हैं। ये रुपया कहीं और से नहीं बल्कि हमारी ही जेब से जाता है। जरूरी है अवेयर होना बिजली अधिकारियों की मानें तो ये बातें बहुत ही छोटी-छोटी हैं, लेकिन इनके ध्यान रखने से काफी फायदा होता है। अगर कोई एक यूनिट सेव करता हैं तो इसका मतलब दो यूनिट की अपने आप ही बचत हो रही है। क्योंकि बिजली सप्लाई के दौरान खर्च होने वाली यूनिट इसमें इंक्लूड होगी। एलईडी इक्विपमेंट्स करें यूजबल्ब बाकी चीजों के मुकाबले ज्यादा बिजली खर्च करता है। इसे बिल्कुल भी यूज न करें। इससे बेहतर है कि उपभोक्ता एलईडी का इस्तेमाल करें। इनसे बल्ब के मुकाबले रोशनी भी ज्यादा होती है और बिजली भी कम खर्च होती है। साथ ही लोकल आइटम की जगह बिजली के ब्रांडेड प्रॉडक्ट्स का उपयोग करें, क्योंकि लोकल बिजली के प्रॉडक्ट्स ज्यादा बिजली की खपत करते हैं। इसके अलावा हम दिन में सन लाइट्स का यूज कर काफी बिजली बचा सकते हैं।
24 घंटे में ये इतना करते हैं ये खर्च इक्विप्मेंट यूनिट टीवी 3 फैन 2 ट्यूब लाइट 2 इंवर्टर 1 कूलर 3 बल्ब 3 लैपटॉप 2 कंप्यूटर 3 म्यूजिक सिस्टम 4 10 इंडीकेटर्स 2 फैक्ट्स एंड फिगर - मेरठ में 750 मेगावाट बिजली की आवश्यकता। - मेरठ को मिल पाती है 400 मेगावाट बिजली।- मेरठ सिटी में कुल 3 लाख कनेक्शन।
- एक साल में बढ़ गए 50 हजार कनेक्शन। - विभाग को मिलता है लगभग 40 करोड़ रुपए का रेवेन्यू। - रोज हर घर या दुकान में बेकार हो जाती है डेढ़ यूनिट बिजली। - सिटी में हो रहा रोजाना 4.5 लाख यूनिट्स बिजली का मिस्यूज। - एक दिन में 27 लाख रुपए की बिजली हो जाती बेकार। - महीने में हो जाती है 1.35 करोड़ यूनिट्स बिजली बेकार। - हर माह हो जाती है 8.10 करोड़ रुपए की बिजली बेकार। - साल के हिसाब से 16.20 करोड़ यूनिट्स की बिजली बेकार। - साल में 97.20 करोड़ रुपए क बिजली बेकार चली जाती है। मेरठ महानगर जनसंख्या-- बीस लाख उपभोक्ता - -ढ़ाई लाख आपूर्ति -- चार सौ मेगावाट डिमांड -- सात सौ मेगावाट बिजली घर --पच्चीस डिमांड --तीस ट्रांसफार्मर --ढ़ाई सौ डिमांड --पांच सौ रोस्टिंग --- शून्य कटौती -- सात घंटे इंतजाम -- सिफर रोस्टिंग व इमरजेंसी रोस्टिंग