बिना 'द्रोणाचार्य' के 'अर्जुन' की तलाश
- स्कूल व कॉलेजों में नहीं होती है कोच की नियुक्ति
- बच्चों से स्पोर्ट्स के नाम पर लिया जाता है पैसा आई कंसर्न मेरठ। स्कूल व कॉलेजों में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। लेकिन उनको निखारने वाला कोई नहीं है। अधिकांश स्कूल व कॉलेजों में स्पोर्ट्स के नाम पर फीस तो वसूली जाती है। लेकिन किसी भी खेल के लिए कोच नहीं रखा जाता है। जिसके कारण प्रतिभाएं स्कूल स्तर पर ही दम तोड़ देती है। जिस खिलाड़ी का परिवार आगे बढ़ाने के लिए समय और पैसा खर्च कर देता वह देश ही नहीं विदेशों तक में नाम रोशन करता है। विदेशों में मेरठ का नाममेरठ के खिलाडि़यों ने देश ही नहीं विदेशों तक में नाम रोशन किया है। इनमें भुवनेश्वर कुमार, प्रवीण कुमार, करन शर्मा, शुभव मावी, प्रियांक गर्ग, अलका तोमर, शीतल, मनु अत्री, असव, अभिनव चौधरी, शारदुल विहान, अंकुर सिंह, सैयद फैसल जैसे खिलाड़ी है।
ये है मुश्किलें - अधिकांश स्कूलों में नहीं है कोच - डिग्री कॉलेजों में भी नहीं कोच की व्यवस्था - बेसिक स्कूल में खेल के नाम पर कोई बजट नहीं आता - माध्यमिक स्कूल में खेल के लिए 10 हजार रुपये का बजट- बच्चों से हर माह 5 रुपये फीस ली जाती है।
- हर साल प्रतियोगिताओं के लिए जरूर आता है बजट - डिग्री कॉलेजों में भी नहीं आता स्पोर्ट्स के लिए कोई बजट - इंटर व डिग्री कॉलेजों में नहीं है स्पोर्ट्स के लिए प्रॉपर ग्राउंड सुविधाओं का अभाव - स्टेडियम में इस साल बीस करोड़ रुपये सुविधाओं के लिए मिले। - स्टेडियम में कोच की संख्या में भी हुआ इजाफा वर्जन खेलों को बढ़ावा देने के लिए सरकार इस बार काफी गंभीर है। सुविधाओं के लिए भी सरकार की ओर से करीब बीस करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित हुई है। आले हैदर, क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी