अपनों के सहयोग से हर सेक्टर में परचम लहरा रहीं काशी की महिलाएं परिवार और अपनी मेहनत से खुद के साथ दूसरों को भी बढ़ा रहीं आगे


वाराणसी (ब्यूरो)मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है। इस वाक्य को किसी ने सही मायने में सच कर दिखाया है तो वह काशी की महिलाएं हैैं। वह हर सेक्टर में तो आगे बढ़ ही रही हैं। साथ ही उन महिलाओं को भी आगे बढ़ाने में हेल्प कर रही हैं जो फाइनेंशियल स्ट्रांग नहीं हैं। घर हो या ऑफिस का काम, महिलाएं बड़ी कुशलता के साथ उसे पूरा करती हैं। इन महिलाओं को आगे बढ़ाने में इनके परिवार वालों का सबसे ज्यादा सहयोग है तभी वह अपने साथ-साथ दूसरे के सपनों को सच करने के लिए भी दिन-रात मेहनत कर रही हैैं। आज हम आपको बनारस की कुछ ऐसी ही महिलाओं के बारे में बताएंगे, जिन्होंने अपने के सहयोग से खुद तो प्रगति पाई। सोसाइटी के लिए पथ प्रदर्शक का काम कर रही हैं।

शादी के बाद पढ़ाई, वकालत से मिलता संतोष

हरिओम नगर कालोनी निवासी संगीता की जब शादी हुई तो वह सिर्फ आठवीं कक्षा तक ही पढ़ी थीं। उन्हें कुछ समय बाद लगा कि अगर अपने साथ दूसरों को भी आगे बढ़ाना है तो पढ़ाई पूरी करनी होगी। उन्होंने अपने पति संतोष मिश्रा को जब यह बात बताई तो उन्होंने संगीता के इस फैसले का सम्मान किया। उन्होंने संगीता को 12वीं की पढ़ाई पूरी कराई, जिसके बाद संगीता वकालत की पढ़ाई करने लगी। आज संगीता खुद वकील हैं। साथ ही कॉलोनी के असहाय नन्हे-मुन्ने बच्चों को वह पढ़ाती भी हैं। संगीता दोपहर तक अपनी वकालत करती हैं। फिर शाम में उन सभी बच्चों को पढ़ाती हैं, जो भविष्य में आगे बढऩे का सपना लिए हैं.

परिवार ने दिया साथ

अर्दली बाजार स्थित विंध्यवासिनी नगर कालोनी निवासी श्वेता रावत ने खुद से ज्यादा दूसरों के बारे में सोचा। उन्हें लगा कि उन्हें उन बच्चों को पढ़ाना चाहिए जोकि खुद पढऩे में सक्षम नहीं हैं। श्वेता ने जब यह फैसला लिया तब वह इंजीनियरिंग सेक्टर में अच्छी जॉब कर रही थीं। उन्होंने खुद से ज्यादा दूसरों का सपना पूरा करना चाहा और आज वह अपनी जॉब छोड़कर एप्स रोलेंड स्कूल के बच्चों को पढ़ाती भी हैं। पढ़ाने के साथ ही जो बच्चे अपनी फीस नहीं दे सकते हैं, उनकी वह फीस भी देती हैं। वह जो कर रही हैं, उसके लिए अपने परिवार को श्रेय देती हैं, क्योंकि उनके परिवार ने उनका साथ फाइनेंशियली और मेंटली दोनों रूपों में दिया है.

पति बने प्रेरणा, महिलाओं के लड़ती हैं फ्री केस

लंका निवासी शशिकला को सफल वकील बनाने में उनके पति वीरेंद्र कुमार ने पूरा साथ दिया। हर कदम पर वह उनके साथ खड़े रहे। शशिकला बताती हैं कि जब वह शादी करके बनारस आईं तो उनके पति चाहते थे कि वह पढ़-लिखकर वकील बनें। अपने पति के साथ उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और आज वह बनारस के सफल वकीलों में से एक हैं। शशिकला महिलाओं का केस लड़ती हैं और उनको न्याय दिलाने के लिए लगातार मेहनत भी कर रही हैं। वहीं जिन महिलाओं के पास पैसे नहीं होते हैं, वह उनका केस बिना पैसे लिए भी लड़ती हैं। वह कहती हैं कि महिलाएं आज के समय में हर सेक्टर में परचम लहरा रही हैं। वहीं आज वह जो कुछ भी लोगों के लिए कर पा रही हैं, वह सब उनके पति के कारण संभव हो पाया है.

सेलिब्रेट करते हैं महिलाओं की सक्सेस

आगामी 8 मार्च को इंटरनेशनल वूमेंस डे है। यह दिन महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्रेम प्रकट करते हुए, महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों एवं कठिनाइयों की सापेक्षता के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर सेलिब्रेट किया जाता है। इंटरनेशनल वूमेंस डे का थीम है। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की यह न्यूज सीरीज महिलाओं के संघर्ष, उनकी सफलता और उनके प्रेरणास्रोतों पर आधारित है.

Posted By: Inextlive