सड़क से लेकर घाट तक काला धुंआ
वाराणसी (ब्यूरो)। सड़क ही नहीं अब घाटों पर भी लोगों का सेहत सुरक्षित नहीं है। यहां प्रदूषण का लेवल खतरनाक स्तर को पार कर रहा है। इसके पीछे गंगा नदी में चल रहे डीजलयुक्त नाव हैैं। आदेश के बाद भी सभी नावों को सीएनजी नहीं करना प्रशासन की लापरवाही को दर्शाता है। पिछले साल दिसंबर में 550 नावों को सीएनजीयुक्त करने का टारगेट था, पर सिर्फ 304 नाव में ही सीएनजी लग पाए। यही नहीं, सीएनजी वाले नाव का भी डीजल से संचालन हो रहा है। इससे गंगा के साथ-साथ घाट भी पूरी तरह से प्रदूषण की चपेट में है। इस कारण गंगा घाट पर आने वाले सैलानियों को वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण से निजात मिलना अब भी दूर की कौड़ी ही नजर आ रही है। इसी का परिणाम यह रहा कि क्लाइमेट एजेंडा संस्था की ओर से अस्सी घाट पर लगाए गए फिल्टर युक्त आर्टिफिशियल लंग्स दो दिनों में ही काले और धुंधले पड़ गए.
गंगा घाटों पर बढ़ रहा प्रदूषणवाराणसी में आने वाले लोग गंगा घाट के किनारे एक बार जरूर आते हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता है कि घाटों पर प्रदूषण कितना अधिक है। काशी विश्वनाथ दर्शन के पूर्व लोग गंगा में स्नान करने जाते तो हैं, लेकिन डुबकी लगाने के बाद खुद को मैला महसूस करते हैं। यहां तक कि प्रदूषण के चलते गंगा के घाटों से सात मीटर तक पानी आचमन के लायक तक नहीं रहता है। वहीं गंगा में जो नावों का संचालन होता है, उसमें डीजल का प्रयोग पानी को और भी जहरीला और आसपास के वातावरण को दूषित कर रहा है। हालाकि नाविकों की ओर से बार-बार सीएनजी स्टेशन नजदीक बनाए जाने की बात कही गई, लेकिन अब सीएनजी स्टेशन का मामला अधर में लटका है.
डीजल से नुकसान 1. ऑयल स्पीलेज से पानी को नुकसान पहुंचेगा. 2. पानी में तेल रहेगा तो बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड होने से प्रदूषण बढ़ेगा. 3. गंदगी से पानी न पीने लायक रहेगा न नहाने लायक. 4. पानी में काई का ग्रो भी नहीं हो सकेगा. 5. मछलियां और केकड़े मरने लगेंगे. घाटों पर फैल रहा है प्रदूषणआमलोगों में वायु प्रदूषण के लिए जागरूकता लाने के उद्देश्य से एक संस्था की ओर से कृत्रिम फेफड़े की प्रदर्शनी स्थापित की गई। देखना यह था कि शहर के सबसे साफ माने जाने वाले अस्सी घाट पर प्रदूषण के बारे में प्रशासनिक दावों के पीछे की सच्चाई क्या है। आर्टिफिशियल लंग्स दो दिन में ही धुंधला हो गया। संस्था के सदस्यों ने बताया कि ऐसा ही आर्टिफिशियल लंग्स हम लोगों ने कुछ दिन पहले बेंगलोर में लगाया था, जहां 18 दिनों में ये काला हुआ था और दिल्ली में 6 दिनों में काला हुआ था। 2019 में लखनऊ में लगाया गया था तब ये 24 घंटे में ही काला हो गया था। वाराणसी में दो दिन में ही आर्टिफिशियल लंग्स का काला होने दर्शाता है कि यहां प्रदूषण की स्थिति कितनी खराब है.
सिर्फ 300 नावों में सीएनजी किट जानकारी के मुताबिक पिछले साल दिसंबर में फैसला लिया गया था कि सभी मोटर चालकों को नावों में 12 दिसंबर से पहले हर हाल में सीएनजी में बदल दिया जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं सका है। अब तक सिर्फ 300 नावों में ही सीएनजी किट लगे हैं, लेकिन उनका भी इस्तेमाल नहीं होता है. एक सीएनजी स्टेशन, वो भी दूर नाविकों ने बताया कि अभी सिर्फ एक ही सीएनजी स्टेशन खिड़किया में है, लेकिन वो भी बहुत दूर है। नगर निगम की ओर से रविदास में सीएनजी स्टेशन बनाने का प्रस्ताव कब से बना है, लेकिन अब तक इस पर काम शुरू नहीं हो सका है. नमामि गंगे की ओर से चलता अभियानगंगा सफाई के नाम पर प्रत्येक सप्ताह नमामि गंगे की ओर से अभियान तक चलाया जा रहा है, लेकिन नमामि गंगे तो दूर अन्य जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी सिर्फ मीटिंग कर समस्या को दूर कहने की बात कहते नजर आ रहे हैं। आलम यह है कि गंगा किनारे जाने वाले लोग पानी को देखते ही अपनी नाक तक बंद कर लेते हैं। वहीं, गंगा में नाव चलाने वाले नाविकों ने बताया कि उन्हें डीजल महंगा तो पड़ता है, लेकिन मजबूरी में सीएनजी स्टेशन दूर होने के कारण डीजल का सहारा लेना पड़ता है.
इन पर भी एक नजर घाटों की संख्या- 84 नावों में मोटरबोट छोटे-बड़े- 950 सीएनजी नाव टारगेट- 550 सीएनजी लगे- 304 नाविक- 5000 सालाना टैक्स (रु.)- 850 अभी इस मामले को लेकर एक बार मीटिंग होने वाली है। जल्द ही नावों को सीएनजी से संचालित पूरी तरह से शुरू कर दिया जाएगा। हम घाटों पर प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए पूरी तरह से गंभीर हैं. राजेश अग्रवाल, जोन अधिकारी, भेलूपुर