शहर के युवाओं व किशोरों में बढ़ती जा रही ऑनलाइन गेम्स में रुपयों की बाजी लगाने की लत किसी का पैसा तो किसी का लत की वजह से फ्यूचर ही दांव पर

वाराणसी (ब्यूरो)बनारस में ऑनलाइन गेमर्स की भरमार है। वहीं, ग्राउंड से दूर सिल्वर स्क्रीन पर अपना ज्यादा समय बिताने वाले किशोर व युवाओं की मुश्किलें भी कम नहीं है। जहां घंटों समय बिताने की वजह से अपने जीवन का कीमती समय जाया कर रहे हैैं, तो वहीं, गेमर जुए के लती भी पाए जा रहा है। कई बार तो इनकी लत इतनी बुरी होती है कि या तो इसे खेलने वाला खुद ठगी का शिकार बन जाता है अथवा पैसे के लिए खुद अपराध में लिप्त हो जाता है। ऑनलाइन गेमर्स शारीरिक दुर्बलता, मानसिक कमजोरी, एडिक्शन डिसॉर्डर, जुए के लती और स्वभाव मेंंं अक्रामक होते जा रहे हैैं। एसएसपीजी कबीरचौरा समेत अन्य अस्पतालों में प्रति महीने सौ से अधिक केसेज देखने को मिल रहे हैैं.

शौक से लेकर एडिक्शन डिसॉर्डर तक

मनोचिकित्सक डॉ। अवधेश कुमार बताते हैैं कि देखा गया है कि कोविड काल और अब लोग अपने बच्चों को आसानी से मोबाइल खेलने के लिए दे देते हैं। बच्चे भी एक जगह बैठकर आराम से मोबाइल गेम का मजा लेते रहते हैं। अक्सर अभिभावकों को पता भी नहीं चलता कि बच्चे अनजाने में मोबाइल गेमिंग के साथ-साथ रुपयों की हार जीत वाले गेम के आदी हो जाते हैं। मोबाइल गेमिंग से खासा नुकसान हो रहा है। अस्पताल में आने वालों केसेज में ये एडिक्शन डिसॉर्डर बच्चों के साथ-साथ 35-40 साल तक के लोगों में भी देखने को मिल रहा है.

केस-1 : लगी हजारों की चपत

लक्सा का 28 साल के किशोर मोनू (बदला हुआ नाम) को ऑनलाइन गेम खेलने की लत थी। वह रोजाना देर रात तक स्मार्टफोन पर रुपयों की बाजी लगाकर वह गेम खेलता था। जिसमें उसकी मां के बैैंक एकाउंट एप था। गेम खेलने के दौरान अचानक से स्क्रिन पर एक मैसेज फ्लैस किया। मोनू ने जल्दबाजी में उस पर क्लिक कर दिया। थोड़ी ही देर में बैैंक एकाउंट से लगभग 40 हजार रुपये के डिडक्ट होने का मैसेज आया तो उसके होश होश उड़ गए। पैरेंट्स ने सिगरा व साइबर थाने में कंप्लेन की.

केस-2 : गेमर्स बन गया मानसिक रोगी

एसएसपीजी कबीरचौरा के मानसिक विभाग में कुमुद (बदला नाम, 16 वर्ष)का इलाज चल रहा है। वह लुडो व रमी गेम्स का आदि है। शुरूआत में उसने चार-पांच हजार रुपए जीते। इसके बाद वह लगातार हारते चला गया। ऑनलाइन जुए की लत का शिकार वह अकेल नहीं था, बल्कि उसके फ्रेंड सर्किल में दर्जनों किशोर हैं। कुमुद को स्ट्रेस व निराश देखकर उसके जागरूक पैरेंट्स मनोचिकित्सक के पास ले आए। अब वह सामान्य बच्चों की तरह है.

नशा से भी बुरी लत

डॉ। अवधेश के अनुसार आनलाइन गेम्स की लत साइकोसिस बीमारी की जड़ है। ऑनलाइन गेमिंग और एप पर लाइव रहने की खुमारी और रुपये जीतने के चांस की लत नशे में बदल जाती है। जीतने की चाह, नए लेवल पार करना, हाई स्कोर बनाना जैसे उद्देश्य और खेलने के लिए उत्साहित करते हैं। ऐसे में व्यक्ति बिना सोचे-समझे गेम खेलता जाता है, और असली मैदान के खेलों से विपरीत इसका दुष्प्रभाव शरीर पर पड़ता है और यह खेल मानसिक रूप से भी कमज़ोर बनाता है.

ऑनलाइन गेम्स समय के साथ सेहत को भी नुकसान पहुंचा रहा है। गेमिंग और खासकर गैैंबलिंग गेमिंग के केसेज में केसेज सामान्य हो गए हैैं। दरअसल, गेमिंग के लिए उकसाने का ही एक तरीका है। हार मिलने पर बच्चे व युवा तब तक पैसा लगाते जाते हैं जब तक उन्हें जीत नहीं मिलती। यही लत उन्हें चौतरफा नुकसान पहुंचाती है.

डॉ अवधेश कुमार, मनोचिकित्सक

किशोर, युवा समेत सभी को चाहिए कि जुए की लत लगाने वाले ऐसे मोबाइल गेम्स से दूर रहें। स्मार्टफोन में डेटा, नंबर और सिक्यूरिटी से समझौता नहीं करें। अननोन लिंक व फाइल को कभी भी ओपन नहीं करें। सीधे ट्रैश कर दें। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ठगी के शिकार होने से बचें.

आरएस गौतम, डीसीपी, काशी

Posted By: Inextlive