'भुनÓ रहा है ना तू...
बस भी कर रही अब बस
-कैंट रीजन से चार सौ बसें अलग-अलग रूट पर दौड़ती हैं-इनमें से 40 परसेंट की हालत खराब है-कई बसें एक से डेढ़ दशक पुरानी हैं-उनके इंजन बॉडी की बात छोड़ दें तो उनके खिड़की-दरवाजे तक गायब हैं-वर्कशॉप की हालत भी अच्छी नहीं होने की वजह से बसों की मरम्मत समय पर नहीं हो पाती है-इन बदहाल बसों में पैसेंजर को सवारी करना मजबूरी होता है -वर्कशॉप की कमी की वजह से ही बनारस से एसी बसों का संचालन नहीं होता है हर रूट का यही हाल -टे्रंस के बाद सबसे अधिक रोडवेज बस के पैसेंजर हैं-नार्मल डेज में डेली लगभग पांच से छह हजार पैसेंजर रोडवेज बसों में सफर करते हैं-इनकी दिनों इनकी संख्या दो गुना है-बनारस रीजन से इलाहाबाद, लखनऊ, मिर्जापुर, सोनभद्र, गाजीपुर, मऊ, जौनपुर, भदोही, चंदौली समेत आसपास के कई डिस्ट्रिक्ट तक पहुंचती हैं
-लगभग सभी रूट पर बदहाल बसें को आना-जाना है-इन बसों में दिन के सफर के दौरान बदन जलाने वाली धूप और लू के थपेड़ों का सामाना करना पड़ता है-इस हालत से खुद को बचाने के लिए पैसेंजर गमछा-आदि से खुद को ढक करके रखते हैं