अमेरिका और यूरोपीय देशों को भा रही धातु और ढलुआ की मूर्तियां 5 करोड़ का मिला है आर्डर दिल्ली मुंबई के एक्सपोटर्स के जरिए जाता है विदेश


वाराणसी (ब्यूरो)बनारस सिर्फ लकड़ी के खिलौनों ही नहीं धातु, ढलुआ और चांदी की बनी मूर्तियों के लिए देश-विदेश में पहचान बना चुका है। यहां बनी मूर्तियां अमेरिका, यूरोप, मॉरीसस और अन्य देशों के लोगों को भा रही हैं। यही वजह है कि दीपावली से पहले यहां निर्मित मूर्तियों की विदेशों में एक बार फिर डिमांड बढ़ गई है। मूर्ति कारोबारी राजीव कुमार ने बताया कि यहां से मूर्तियां दिल्ली, मुंबई और गुजरात के जरिये विदेश भेजी जाती हैं। ढलुआ मूर्ति की कारीगरी विदेशी बाजार में धूम मचा रही हैं। दीपावली से पहले ही निर्यातकों को मूर्तियों के बड़े ऑर्डर मिले हैं। कोरोना समाप्त होने के बाद एक बार फिर दीपावली से पहले मूर्ति बाजार में बड़ा उछाल देखने को मिल रहा है। कारोबारियों की मानें तो इस बार दिवाली में विदेशों से करीब 5 करोड़ की मूर्ति का आर्डर मिला है.

मूर्तियों के अलावा मुखौटों की भी डिमांड

मूर्ति कारोबारियों के मुताबिक कारीगर मूर्ति को निर्माण के साथ उसकी सजावट के लिए मुकुट, कुंडल, टीका अस्त्र, शस्त्र, डोलची और सिंहासन से सुसज्जित कर रहे हैं। मूर्ति कारोबारी विनय कसेरा ने बताया कि बनारस में पीतल की मूर्ति बनाने की करीब डेढ़ सौ से ज्यादा छोटी-बड़ी इकाइयां काम कर रही हैं। इन इकाइयों में करीब पांच हजार कारीगर काम कर रहे हैं। इनसे करीब छह करोड़ के करीब कारोबार प्रति वर्ष होता है। विदेशों से सर्वाधिक छह इंच की मूर्तियों की मांग की गई है। फिलहाल पीतल का बाजार भाव 500 रुपये प्रति किलो तक है। वहीं डॉ। रजनीकांत ने बताया कि बनारस मूर्तियों का बहुत बड़ा हब है। यहां हर आकार की मूर्तियां बनाई जाती हैं। इसमें सबसे छोटी मूर्ति 6 इंच की होती है, जिसका निर्माण सिर्फ बनारस में ही होता है। इसे विदेशों में खूब पसंद किया जाता है। यहां मूर्तियों के अलावा मुखौटे भी तैयार होते हैैं। दीपावली से पहले इसकी भी खूब डिमांड होती है। इसके भी करोड़ों के आर्डर मिले हैं.

बनावट की दृष्टि से भी होती खास

वैसे तो मूर्तियां करीब-करीब हर जगह बनती हैं, लेकिन बनारस में बनने वाली मूर्तियां ढलवा होने के कारण ठोस होती हैं। इसे बनाने की प्रक्रिया ही इन्हें बेहद खास बनाती है। मूर्ति सेट की कास्टिंग मिट्टी के सांचे से तैयार की जाती है। डॉ। रजनीकांत बताते हैं कि बनारस में इसका कारोबार 500 साल से भी पुराना है। मूर्तियों की कीमत की बात की जाए तो 700 ग्राम वजन की चार इंच की मूर्ति करीब 600 से 800 रुपये तक में मिलेगी। गणेश-लक्ष्मी की जोड़ी में इसकी कीमत करीब 1000 से 1500 रुपये तक है.

जीआई के लिए भेजा है प्रस्ताव

बनारस की संस्कृति से संबंधित धातु की मूर्ति को जीआई (जिओग्राफिकल इंडेक्स) में शामिल करने का प्रस्ताव चेन्नई भेजा गया है। यह प्रस्ताव बनारस मेटल क्राफ्ट डेवलपमेंट सोसाइटी ने किया है.

बनारस की ढलुआ मूर्ति की 500 साल पुरानी पहचान है। यहां निर्मित छोटी से छोटी मूर्ति काफी ठोस होती है। यह अंदर खोखली बिल्कुल भी नहीं होती है। यहां बनी मूर्तियों की मांग अमेरिका, यूरोप, कनाडा और मॉरीसस तक है। मोटे तौर पर देखा जाए तो इस बार यहां से करीब 5 करोड़ का आर्डर आया है। जिसे दिल्ली, मुंबई और गुजरात में बैठे एक्सपोटर्स के जरिए भेजा जाएगा.

डॉरजनीकांत, जीआई विशेषज्ञ

Posted By: Inextlive