- प्रदेश में बिना आबकारी नीति के नहीं चल सकती राजनीति

- शराबबंदी की दिशा में सोचने वाली सरकार ने बढ़ाया शराब से कमाई का टारगेट

DEHRADUN: आखिरकार सूबे में टीएसआर सरकार की नई शराब नीति सामने आ गई है। शराबबंदी की ओर अपने कदम आगे बढ़ाने का ऐलान करने वाली राज्य सरकार ने शराब से ब्00 करोड़ से ज्यादा कमाई का नया लक्ष्य रखा है। इतना ही नहीं राज्य सरकार ने पहाड़ और मैदान के लिए शराब की दुकानों को खोलने का टाइम भी अलग-अलग निर्धारित कर दिया है, यानी पहाड़ और मैदान के लिए शराब की नीति अलग-अलग होगी।

शराब आय का प्रमुख जरिया

देवभूमि में लम्बे समय से शराब बंदी की मांग और नई शराब की दुकानों के खोलने के विरोध के बावजूद राज्य सरकार ने नई आबकारी नीति को मंजूरी दे दी है। नई आबकारी नीति को लाकर राज्य सरकार ने साफ कर दिया कि बिना शराब के सरकार के लिए प्रदेश चलाना आसान नहीं। दरअसल ब्0 हजार करोड़ के घाटे में चल रहे प्रदेश सरकार के लिए शराब आय का प्रमुख साधन है। ऐसे में शराब को बंद करने से पहले आय के नए ठोस साधन तलाशने होंगे।

कांग्रेस ने खड़े किए सवाल

आबकारी मंत्री ने दावा किया है कि नई आबकारी नीति से मिलने वाले राजस्व से प्रदेश के विकास में बड़ा योगदान होगा। इतना ही नहीं आबकारी मंत्री ने दावा किया है कि उनकी सरकार ने महिलाओं के सम्मान को देखते हुए पहाड़ में शराब की दुकानों के खोलने का समय घटाया है। साथ ही सरकार को शराब से होने वाले मुनाफे के अधिकतर हिस्से को महिलाओं की सुरक्षा में खर्च किया जाएगा। इधर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने राज्य की आबकारी नीति पर सवाल खड़े किए हैं। प्रीतम सिंह ने कहा कि वर्तमान शराब नीति में प्रदेश सरकार ने शराब माफिया को संरक्षण देने का काम किया है। प्रीतम ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने शराब माफिया के आगे घुटने टेकने का काम किया है।

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नई शराब नीति में प्रदेश सरकार ने शराब माफिया को संरक्षण देने का काम किया है। बीजेपी ने चुनाव के दौरान उत्तराखंड में पूर्ण शराब बन्दी लागू करने की बात कही थी। लेकिन, सरकार ने इसके उलट फैसला लिया है।

प्रीतम सिंह, अध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस

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बिना आबकारी नीति के उत्तराखंड में राजनीति नहीं हो सकती। सत्ता में आते ही सरकारों को राजस्व के लिए साधन तलाशने होते हैं। ऐसे में ये व्यवहारिक बातें नहीं चल सकती है। शराब बंदी करना इतना आसान नहीं है। प्रदेश में रेवेन्यू कें लिए आबकारी नीति का होना जरूरी है।

जय सिंह रावत, वरिष्ठ पत्रकार

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ये हमारे प्रदेश का दुर्भाग्य है कि यहां की सरकारें शराब को आय का प्रमुख साधन मानती हैं। सरकार को लगता है कि शराब का विकल्प नहीं है। किसी न किसी तरह से राज्य सरकार शराब को प्रमोट करने का काम कर रही है। आने वाले समय में प्रदेश में शराब को लेकर आंदोलन ओर तेज होंगे।

अनिल जोशी, पर्यावरणविद्

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खनन, आबकारी जिसकी भी नीति सरकार बनाए उसमें ट्रांसपेरेन्सी होनी जरूरी है। नीति स्पष्ट होनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि शराब के अलावा अन्य आय के साधन तलाशे। उत्तराखंड में टूरिज्म पर फोकस किया जाना चाहिए।

अनूप नौटियाल, समाजसेवी

Posted By: Inextlive