रायपुर शहर के इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला नागरिक सहकारी बैंक में उन्होंने करीब 12 साल पहले अपना खाता खुलवाया था. अलग-अलग तरह के काम करके बड़ी मुश्किल से जुटाए गए एक लाख रुपए से अधिक की रक़म उन्होंने खाते में जमा कराई.

महिलाओं के लिए ख़ास तौर पर बनाए गए इस बैंक के संचालक मंडल में केवल महिलाएं थीं. बैंक में केवल महिलाओं को ही ऋण देने की व्यवस्था भी थी.

देवमति की योजना थी कि कुछ वर्षों बाद बैंक से ऋण ले कर अपना पत्तल-दोना बनाने का व्यापार शुरू करेंगी. लेकिन एक दिन खबर मिली कि बैंक बंद हो गया है.

देवमति के सारे सपने तार-तार हो गए.

वे कहती हैं, “अब महिला बैंक हो या मर्द बैंक, मैं भले अपनी कमाई किसी अनाथ आश्रम में दे दूं, बैंक में तो क़दम नहीं रखूंगी.”

महिला बैंक

महिला बैंक,नार्को टेस्ट और 'रमन सिंह का नाम'

समाज के कमज़ोर वर्ग की महिलाओं को बेहद कम ब्याज़ दर पर क़र्ज़ देकर उन्हें आर्थिक तौर पर स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 'महिला बैंक' शुरू करने की पहल की है.

कुछ हफ़्तों पहले ही गुवाहाटी, कोलकाता, चेन्नई, मुंबई, अहमदाबाद, बैंगलौर और लखनऊ में महिला बैंक की शाखाएं खोली गई हैं.

इस बैंक का मक़सद काम और सेवा में महिलाओं को प्राथमिकता देना है.

लेकिन रायपुर के लोग इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक के अनुभव की वजह से कड़वाहट से भरे हैं.

रायपुर शहर के सबसे व्यस्त सदर बाज़ार के इलाके में वर्ष 1995 में जब महिलाओं के लिए ख़ास तौर पर इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला नागरिक सहकारी बैंक खोला गया तो महिलाओं में गज़ब का उत्साह था.

सब कुछ ठीक-ठीक चल रहा था. लेकिन बाद में बैंक के कुछ अधिकारियों और संचालक मंडल के घोटाले सामने आए और 2 अगस्त 2006 को बैंक बंद हो गया.

शहर में मौजूद बैंक की दो शाखाएं भी बंद हो गईं.

इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला नागरिक सहकारी बैंक संघर्ष समिति के कन्हैया अग्रवाल बताते हैं कि बैंक के आख़री दिनों उसके 25 हजार से ज़्यादा ग्राहक थे. इनमें से ज्यादातर लोग ऐसे थे जिन्होंने वर्षों तक छोटी-छोटी रक़म खाते में जमा करवाई थी. इससे उनके सपने भी जुड़े थे. किसी के व्यापार की योजना, बेटी की शादी, बच्चों की पढ़ाई वग़ैरह.

कन्हैया अग्रवाल कहते हैं, "संचालक मंडल के सदस्यों और बैंक प्रबंधन ने 54 करोड़ रुपए से अधिक की रक़म का घालमेल किया. फिर उन्होंने एक दिन अचानक बैंक बंद करने की घोषणा कर दी.”

मुख्यमंत्री पर आरोप

मामले की पुलिस में रिपोर्ट हुई. धरना और प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हुआ. सरकार ने कुछ खाता धारकों का पैसा वापस भी किया. कुछ अभियुक्तों की गिरफ़्तारी भी हुई और वे ज़मानत पर छूट कर बाहर भी आ गए. लेकिन इस मामले ने इस साल जुलाई में तब तूल पकड़ा, जब इस बंद हो चुके बैंक के प्रबंधक के नार्को टेस्ट की सीडी सार्वजनिक हुई.

महिला बैंक,नार्को टेस्ट और 'रमन सिंह का नाम'

छत्तीसगढ़ पुलिस ने ये नार्को टेस्ट कराया जिसकी सीडी में बैंक प्रबंधक ने दावा किया था कि उन्होंने बैंक घोटाले को दबाने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह और उनके चार मंत्रियों को करोड़ों रुपए की रिश्वत दी थी.

रायपुर के पुलिस महानिरीक्षक जीपी सिंह का कहना है कि नार्को टेस्ट की जो सीडी सार्वजनिक हुई, उसकी विश्वसनीयता पर कोई सवाल नहीं है. लेकिन नार्को टेस्ट के दौरान बैंक प्रबंधक ने जो बयान दिया था उसमें विरोधाभास था. इसलिए उस सीडी को अदालत में पेश नहीं किया गया.

रायपुर की महापौर किरणमयी नायक का कहना है कि इस पूरे घोटाले को दबाने की कोशिश की गई.

वे कहती हैं, "आंदोलन के अलावा मंत्रियों के भ्रष्टाचार की सीडी भी बंटी है. अभी चुनाव में भी यह मुद्दा था और नतीजे आने के बाद इसका परिणाम पता चलेगा.”

किरणमयी नायक मानती हैं कि महिला बैंक के इस घोटाले में उन महिलाओं का भरोसा टूटा है, जो छोटा-मोटा काम करके इस बैंक में अपना पैसा जमा करती थीं.

अफ़सरों की अनियमितता

हालांकि बिलासपुर की बिलासा महिला नागरिक सहकारी बैंक की अध्यक्ष अरुणा दीक्षित इससे सहमत नहीं हैं.

वे मानती हैं कि उनके बैंक समेत दूसरे महिला बैंकों में भी राजनीतिक हस्तक्षेप होता है लेकिन रायपुर का महिला बैंक अफसरों की अनियमितता का शिकार हुआ.

अरुणा दीक्षित कहती हैं, “हमारे बैंक में लगभग नौ हज़ार खाताधारक हैं और संचालक मंडल में 12 महिलाएं हैं. 16 वर्षों से हमारा काम बेहतर तरीके से चल रहा है. मुझे लगता है कि अब कहीं जा कर जब भारतीय महिला बैंक की शुरुआत हुई है तो इसे महिलाओं को मज़बूत करने की दिशा में एक बड़े क़दम के तौर पर देखा जाना चाहिए.”

लेकिन देवमति और उनके जैसी जिन सैकड़ों महिलाओं के पैसे बैंक में डूब गए हैं, उनके सवालों के जवाब किसी के पास नहीं हैं.

रायपुर शहर के इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला नागरिक सहकारी बैंक में उन्होंने करीब 12 साल पहले अपना खाता खुलवाया था. अलग-अलग तरह के काम करके बड़ी मुश्किल से जुटाए गए एक लाख रुपए से अधिक की रक़म उन्होंने खाते में जमा कराई.

महिलाओं के लिए ख़ास तौर पर बनाए गए इस बैंक के संचालक मंडल में केवल महिलाएं थीं. बैंक में केवल महिलाओं को ही ऋण देने की व्यवस्था भी थी.

देवमति की योजना थी कि कुछ वर्षों बाद बैंक से ऋण ले कर अपना पत्तल-दोना बनाने का व्यापार शुरू करेंगी. लेकिन एक दिन खबर मिली कि बैंक बंद हो गया है.

देवमति के सारे सपने तार-तार हो गए.

वे कहती हैं, “अब महिला बैंक हो या मर्द बैंक, मैं भले अपनी कमाई किसी अनाथ आश्रम में दे दूं, बैंक में तो क़दम नहीं रखूंगी.”

महिला बैंक

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समाज के कमज़ोर वर्ग की महिलाओं को बेहद कम ब्याज़ दर पर क़र्ज़ देकर उन्हें आर्थिक तौर पर स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने 'महिला बैंक' शुरू करने की पहल की है.

कुछ हफ़्तों पहले ही गुवाहाटी, कोलकाता, चेन्नई, मुंबई, अहमदाबाद, बैंगलौर और लखनऊ में महिला बैंक की शाखाएं खोली गई हैं.

इस बैंक का मक़सद काम और सेवा में महिलाओं को प्राथमिकता देना है.

लेकिन रायपुर के लोग इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक के अनुभव की वजह से कड़वाहट से भरे हैं.

रायपुर शहर के सबसे व्यस्त सदर बाज़ार के इलाके में वर्ष 1995 में जब महिलाओं के लिए ख़ास तौर पर इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला नागरिक सहकारी बैंक खोला गया तो महिलाओं में गज़ब का उत्साह था.

सब कुछ ठीक-ठीक चल रहा था. लेकिन बाद में बैंक के कुछ अधिकारियों और संचालक मंडल के घोटाले सामने आए और 2 अगस्त 2006 को बैंक बंद हो गया.

शहर में मौजूद बैंक की दो शाखाएं भी बंद हो गईं.

इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला नागरिक सहकारी बैंक संघर्ष समिति के कन्हैया अग्रवाल बताते हैं कि बैंक के आख़री दिनों उसके 25 हजार से ज़्यादा ग्राहक थे. इनमें से ज्यादातर लोग ऐसे थे जिन्होंने वर्षों तक छोटी-छोटी रक़म खाते में जमा करवाई थी. इससे उनके सपने भी जुड़े थे. किसी के व्यापार की योजना, बेटी की शादी, बच्चों की पढ़ाई वग़ैरह.

कन्हैया अग्रवाल कहते हैं, "संचालक मंडल के सदस्यों और बैंक प्रबंधन ने 54 करोड़ रुपए से अधिक की रक़म का घालमेल किया. फिर उन्होंने एक दिन अचानक बैंक बंद करने की घोषणा कर दी.”

मुख्यमंत्री पर आरोप

मामले की पुलिस में रिपोर्ट हुई. धरना और प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हुआ. सरकार ने कुछ खाता धारकों का पैसा वापस भी किया. कुछ अभियुक्तों की गिरफ़्तारी भी हुई और वे ज़मानत पर छूट कर बाहर भी आ गए. लेकिन इस मामले ने इस साल जुलाई में तब तूल पकड़ा, जब इस बंद हो चुके बैंक के प्रबंधक के नार्को टेस्ट की सीडी सार्वजनिक हुई.

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छत्तीसगढ़ पुलिस ने ये नार्को टेस्ट कराया जिसकी सीडी में बैंक प्रबंधक ने दावा किया था कि उन्होंने बैंक घोटाले को दबाने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह और उनके चार मंत्रियों को करोड़ों रुपए की रिश्वत दी थी.

रायपुर के पुलिस महानिरीक्षक जीपी सिंह का कहना है कि नार्को टेस्ट की जो सीडी सार्वजनिक हुई, उसकी विश्वसनीयता पर कोई सवाल नहीं है. लेकिन नार्को टेस्ट के दौरान बैंक प्रबंधक ने जो बयान दिया था उसमें विरोधाभास था. इसलिए उस सीडी को अदालत में पेश नहीं किया गया.

रायपुर की महापौर किरणमयी नायक का कहना है कि इस पूरे घोटाले को दबाने की कोशिश की गई.

वे कहती हैं, "आंदोलन के अलावा मंत्रियों के भ्रष्टाचार की सीडी भी बंटी है. अभी चुनाव में भी यह मुद्दा था और नतीजे आने के बाद इसका परिणाम पता चलेगा.”

किरणमयी नायक मानती हैं कि महिला बैंक के इस घोटाले में उन महिलाओं का भरोसा टूटा है, जो छोटा-मोटा काम करके इस बैंक में अपना पैसा जमा करती थीं.

अफ़सरों की अनियमितता

हालांकि बिलासपुर की बिलासा महिला नागरिक सहकारी बैंक की अध्यक्ष अरुणा दीक्षित इससे सहमत नहीं हैं.

वे मानती हैं कि उनके बैंक समेत दूसरे महिला बैंकों में भी राजनीतिक हस्तक्षेप होता है लेकिन रायपुर का महिला बैंक अफसरों की अनियमितता का शिकार हुआ.

अरुणा दीक्षित कहती हैं, “हमारे बैंक में लगभग नौ हज़ार खाताधारक हैं और संचालक मंडल में 12 महिलाएं हैं. 16 वर्षों से हमारा काम बेहतर तरीके से चल रहा है. मुझे लगता है कि अब कहीं जा कर जब भारतीय महिला बैंक की शुरुआत हुई है तो इसे महिलाओं को मज़बूत करने की दिशा में एक बड़े क़दम के तौर पर देखा जाना चाहिए.”

लेकिन देवमति और उनके जैसी जिन सैकड़ों महिलाओं के पैसे बैंक में डूब गए हैं, उनके सवालों के जवाब किसी के पास नहीं हैं.

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