- अब रोमांचक होगी लड़ाई

- आसान नहीं होगा जीत-हार का दांव

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ALLAHABAD: महीनों से चल रही गुणा-गणित, जोड़-घटाव के बाद इलाहाबाद कॉन्स्टीचुएंसी में चुनाव का अखाड़ा सज चुका है। सपा, बसपा, भाजपा के साथ अब कांग्रेस के भी योद्धा मैदान में आ चुके हैं। सभी ने अपनी-अपनी कमान संभाल ली है। राजनीति के अखाड़े में दांव शुरू हो गई है। हर योद्धा अपनी जीत का दावा कर रहा है। पब्लिक के दरवाजे पर पहुंच रहा है। लेकिन जीत हासिल करना आसान नहीं होगा। क्योंकि मैदान में उतरे सभी धुरंधरों के पास जहां जीत के लिए प्लस प्वाइंट है, वहीं कुछ माइनस प्वाइंट भी हैं। अब देखना है कि कौन किसको चित्त करता है और कौन मैदान मारता है।

वाराणसी से कम इंपार्टेंट नहीं है इलाहाबाद सीट

इलाहाबाद से मात्र 120 किलोमीटर दूर स्थित बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी यानी वाराणसी इन दिनों पूरे देश में पॉलिटिक्स का सेंटर प्वाइंट बना हुआ है। लेकिन एजुकेशन हब और धर्म-संस्कृति व आस्था की नगरी इलाहाबाद का इंपॉर्टेस भी पॉलिटिक्स में कम नहीं है। तभी तो काफी मंथन और ठोक-बजाने के बाद सपा, भाजपा, बसपा और कांग्रेस ने चुनाव मैदान में अपना-अपना कैंडिडेट उतारा है। जिसके लिए भाजपा और कांग्रेस में तो विरोध भी हुआ है। लेकिन विरोध की परवाह किए बगैर पार्टियों ने अपना दांव खेला है। क्योंकि लक्ष्य केवल जीत हासिल करना है।

रेवती रमण पर हैट्रिक का दबाव

2004 और फिर 2009 में लगातार दो बार लोकसभा चुनाव जीत कर इलाहाबाद की पब्लिक का प्रतिनिधित्व करने वाले समाजवादी पार्टी के सांसद कुंवर रेवती रमण सिंह एक बार फिर चुनाव लड़ रहे हैं। कुंवर रेवती रमण सिंह की प्रतिष्ठा जहां दांव पर लगी हुई है, वहीं लगातार दो बार सांसद रहने के बाद तीसरी बार हैट्रिक लगाने का प्रेशर भी है।

Plus point

कुंवर रेवती रमण सिंह के साथ प्लस प्वाइंट यह है कि वे काफी दिनों से पब्लिक के बीच में हैं। यमुनापार के इलाकों में उनकी अच्छी पकड़ है। उनके बेटे उज्जवल रमण सिंह करछना से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं, जो बहुत ही कम अंतर से चुनाव हारे थे। लेकिन पब्लिक के बीच में उनकी पकड़ आज भी मजबूत है।

Minus point

पिछले 10 साल से पब्लिक कुंवर रेवती रमण सिंह को देख रही है। दो बार के कार्यकाल में इलाहाबाद के लिए कुछ खास नहीं किया। इलाहाबाद ने इंडस्ट्रियल ग्रोथ ज्यादा नहीं किया।

श्यामाचरण पर बढ़ गया प्रेशर

बसपा से निकाले जाने के बाद नंद गोपाल गुप्ता नंदी भाजपा से टिकट हासिल करने के प्रयास में थे। वहीं केसरीनाथ त्रिपाठी अपनी दावेदारी कर रहे थे। लेकिन पार्टी ने नंदी को नकार कर वहीं, केसरीनाथ त्रिपाठी की दावेदारी को खारिज कर वैश्य मतदाताओं की अधिकता को देखते हुए श्यामाचरण गुप्ता पर दांव लगाया। जिनका शुरुआत में कुछ विरोध हुआ, लेकिन वैश्य मतदाताओं की संख्या के कारण वे राहत में थे। लेकिन नंद गोपाल गुप्ता का कांग्रेस से टिकट फाइनल होने के बाद अब श्यामाचरण गुप्ता पर भी प्रेशर बढ़ गया है।

Plus point

श्यामाचरण गुप्ता के साथ प्लस प्वाइंट यह है कि पब्लिक के बीच में उनकी अच्छी इमेज है। वे विवादित नहीं हैं।

Minus point

श्यामाचरण गुप्ता बांदा से चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन उन्हें इलाहाबाद से टिकट दिया गया। पिछले लोकसभा चुनाव में फूलपुर सीट से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। दल-बदलू के रूप में छवि रही है। सपा छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए हैं।

अब नंदी की प्रतिष्ठा है दांव पर

बसपा सरकार में मंत्री रहते हुए जानलेवा हमले के शिकार हुए पूर्व मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी को बसपा से निकाला गया। पार्टी ने उन पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाया। भाजपा में जाने और टिकट पाने का प्रयास किया, लेकिन भाजपा में कुछ दिग्गजों के कारण नंदी की दाल नहीं गल सकी। अपनी राजनीतिक पारी को बचाने के लिए नंदी ने कांग्रेस का हाथ पकड़ा। कांग्रेस से टिकट न मिलता तो नंदी निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर चुके थे। अब कांग्रेस से टिकट पाने के बाद नंदी की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है।

Plus point

चुनाव मैदान मैं जितने भी कैंडिडेट हैं, उनमें नंद गोपाल गुप्ता नंदी सबसे कम उम्र के प्रत्याशी हैं। इसके अलावा उनकी छवि पब्लिक के बीच में जुझारू नेता की रही है। जिन्होंने बहुत ही कम समय में फर्श से अर्श तक का सफर तय किया है। जानलेवा हमले के बाद पब्लिक का सपोर्ट मिला।

Minus point

सिटी एरिया में नंद गोपाल गुप्ता का वोट बैंक भले हो, लेकिन रूरल एरिया में उनकी पकड़ अन्य पार्टियों के दावेदारों की अपेक्षा कमजोर है। इसके अलावा नंदी की भी छवि दल-बदलू नेता के रूप में हो गई है।

केशरी देवी पटेल को भी साबित करना होगा अपना जनाधार

पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष केशरी देवी पटेल को बहुजन समाज पार्टी ने अपना कैंडिडेट बनाया है। बसपा को छोड़ अब तक किसी भी पॉलिटिकल पार्टी ने इलाहाबाद से किसी महिला को चुनाव मैदान में नहीं उतारा है। केशरी देवी पटेल अकेली महिला कैंडिडेट हैं। एक तरफ जहां उन पर इलाहाबाद की लाखों महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने की जिम्मेदारी है। वहीं दूसरी तरफ प्रतिद्वंदियों के साथ ही बसपा से निकाले गए पूर्व मंत्री नंद गोपाल गुप्ता से भी टक्कर है।

Plus point

अन्य पार्टियों के वोट बैंक जहां बदलते रहते हैं, वहीं बसपा का अपना कैडर वोट सबसे ज्यादा मजबूत है। उसके वोटर इधर-उधर खिसकने वाले नहीं हैं। कैडर वोट तो मिलना तय है। इसके अलावा केशरी देवी पटेल अकेली महिला कैंडिडेट हैं। उनकी भी छवि पब्लिक के बीच में एक अच्छी नेता की रही है।

Minus point

केशरी देवी पटेल मूल रूप से फूलपुर की रहने वाली हैं। फूलपुर कॉन्स्टीचुएंसी में उनकी सबसे मजबूत पकड़ है, लेकिन फूलपुर कॉन्स्टीचुएंसी से उनका कोई मतलब नहीं है। ऐसे में इलाहाबाद कॉन्स्टीचुएंसी में उन्हें अपना जनाधार साबित करना होगा।