लेकिन आज हम आपको मिलवाएंगे कुछ ऐसे लोगों से जो इन कलाकारों को ख़ूबसूरत बनाते हैं या यूं कहें कि इनकी ख़ूबसूरती निखारते हैं. इन लोगों को आप में से बहुतों ने पहले कभी नहीं देखा होगा, इनके बारे में कभी जाना नहीं होगा लेकिन ये ही हैं वो लोग जिनकी मेहनत सितारों के चेहरों को चमकाती और दमकाती है.

दीपक सावंत, अमिताभ बच्चन के मेक-अप मैन

जब किया गया स्मिता पाटिल के शव का मेकअप

(दीपक सावंत पिछले 40 सालों से अमिताभ बच्चन के मेकअप मैन हैं.)

दीपक सावंत पिछले 40 सालों से  अमिताभ बच्चन के मेक-अप मैन हैं. 70 के दशक से लेकर आज तक वो सक्रिय हैं और अमिताभ के अलावा दिलीप कुमार, स्मिता पाटिल जैसे कलाकारों तक का मेकअप उन्होंने किया. वो मानते हैं के मेक-अप के तौर तरीक़ों और तकनीक में पहले की तुलना में काफ़ी बदलाव आ गए हैं.

दीपक सावंत कहते हैं, “पहले मेकअप बड़ा बेसिक हुआ करता था. सिर्फ़ एक एजेंडा होता था कि कलाकार को ख़ूबसूरत दिखाना है बस. फ़िल्म में हीरो या हीरोइन अमीर है या ग़रीब इसका कोई मतलब नहीं होता था. सभी कलाकारों का मेकअप एक जैसा किया जाता था.”

पैसे की बात चलने पर दीपक कहते हैं, ”अब तो ठीक-ठाक पैसे मिलने लगे हैं. पुराने ज़माने में मेकअप आर्टिस्ट के पास ज़्यादा काम नहीं था. जिनके पास काम था भी उन्हें महज़ दो सौ रुपए महीने ही मिला करते थे. फिर धीरे-धीरे दो सौ से पांच सौ हुए फिर हज़ार फिर पांच हज़ार. इस तरह से पैसा धीरे-धीरे बढ़ने लगा. अब तो हर चेहरे के हिसाब से पैसे मिलते हैं.”

जब किया गया स्मिता पाटिल के शव का मेकअप

(अमिताभ के परिवार से दीपक सावंत का बेहद नज़दीकी नाता है)

दीपक सावंत बताते हैं कि जब 80 के दशक में अमिताभ बच्चन राजनीति में चले गए थे उस दौरान उन्होंने स्मिता पाटिल के साथ काम किया. तब स्मिता उनसे कहतीं, “दीपक जी, आप नहीं होते तो मैं मसाला फ़िल्मों में कभी काम ही नहीं कर पाती.”

दीपक सावंत ने बताया स्मिता पाटिल की ख़्वाहिश थी कि मौत के बाद उन्हें एक शादीशुदा महिला की तरह सजाया जाए. जब स्मिता पाटिल की असमय मौत हो गई तो उनके शव को तीन दिनों तक बर्फ़ में रखा गया था क्योंकि स्मिता की बहन अमरीका में रहती थीं और उन्हें आने में वक़्त लगा.

दीपक कहते हैं, “जब स्मिता की शवयात्रा निकली तो उसके पहले मैंने उनके शव का सुहागन की तरह मेकअप किया. वो बहुत ख़ूबसूरत लग रही थीं.“

संगीता खन्ना

जब किया गया स्मिता पाटिल के शव का मेकअपमेकअप कलाकार संगीता खन्ना (दाएं) मानती हैं कि मेकअप के क्षेत्र में पुरुषों का बोलबाला है.

आज से 10-12 साल पहले जब संगीता ने ये सफ़र शुरूर किया था तब लोग उन्हें महज़ 'ब्यूटीशियन' के नाम से संबोधित करते थे लेकिन अब लोगों का नज़रिया बदल रहा है.

संगीता मानती है कि मेकअप इंडस्ट्री में काफ़ी काम है और काफ़ी पैसा भी. लेकिन उनके मुताबिक़ भारतीय मेकअप आर्टिस्ट को सबसे बड़ा ख़तरा है विदेशी मेकअप आर्टिस्ट से.

वो कहती हैं, "आजकल नया प्रचलन शुरू हो गया है कि निर्माता विदेशी मेकअप आर्टिस्ट को आसानी से काम दे देते हैं भले ही वो औसत दर्जे का काम करते हों और उन्हें वेतन भी भारतीय मेकअप आर्टिस्ट से ज़्यादा दिया जाता है."

संगीता का ये भी मानना है कि बॉलीवुड की मेकअप की दुनिया पुरुष प्रधान है और उन्होंने अपना एक गुट बना लिया है.

वो कहती हैं, "औरतों को सिर्फ़ हेयर स्टाइलिंग का काम ज़्यादा मिलता है. शायद इसकी वजह ये भी है कि काम का कोई नियत समय नहीं रहता और ना ही यातायात की सुविधा होती है इसलिए बहुत कम महिला मेकअप आर्टिस्ट बॉलीवुड में जाती हैं. महिला आर्टिस्ट को कोई प्रोत्साहन भी नहीं मिलता और ना ही एसोसिएशन की तरफ़ से कोई मदद."

विपुल भगत

जब किया गया स्मिता पाटिल के शव का मेकअप

(विपुल भगत 27 सालों से मेकअप इंडस्ट्री में हैं)

विपुल भगत एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं. बॉलीवुड में 27 साल से काम करने वाले विपुल ने जब शुरुआत में इस क्षेत्र में आने की ठानी तो उनके मां-बाप ने इस पर बड़ी नाराज़गी दिखाई.

लेकिन आज विपुल की कामयाबी से वो दोनों ख़ुश हैं.

उन्होंने कई फ़ैशन शोज़ और फ़िल्में की हैं. मलाइका अरोरा ख़ान उनकी क़रीबी दोस्त हैं. विपुल बताते हैं कि बॉलीवुड में कई अभिनेत्रियां ऐसी हैं जो बिना मेकअप किए घर से बाहर क़दम नहीं रखतीं.

मेकअप की तकनीक में बदलाव के बारे में विपुल ने बताया, "पहले मेकअप ख़ासा मोटा हुआ करता था. अब तो कॉस्मेटिक्स की दुनिया में बड़ा बदलाव आ गया है. कई बड़ी कंपनियां मेकअप का सामान बनाने लगी हैं. बाज़ार में सब कुछ आसानी से मिल जाता है."

विक्रम गायकवाड

जब किया गया स्मिता पाटिल के शव का मेकअप

(एक विज्ञापन की शूटिंग के लिए रणबीर कपूर का मेकअप करते विक्रम गायकवाड़)

विक्रम गायकवाड भी फ़िल्मों का जाना-माना नाम है. वह इस वक़्त दिबाकर बनर्जी की ब्योमकेश बक्शी, करण मल्होत्रा की शुद्धि और राकेश ओमप्रकाश मेहरा की एक फ़िल्म में काम कर रहे हैं.

उन्हें ' द डर्टी पिक्चर' में बेहतरीन काम के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है.

विक्रम एक मज़ेदार वाकया याद करते हैं. "फ़िल्म मेकिंग ऑफ़ महात्मा की शूटिंग दक्षिण अफ़्रीका में चल रही थी तब एक ब्रिटिश कलाकार को नकली मूंछ लगानी थी. वो जगह जोहानसबर्ग से चार सौ किलोमीटर दूर थी. समय पर मेकअप वैन ना पहुंचने की वजह से घोड़े की पूंछ का इस्तेमाल कर नकली मूंछ बनाई गई."

विक्रम गायकवाड़ कहते हैं कि समय के साथ-साथ मेकअप आर्टिस्ट की इज़्ज़त भी बॉलीवुड में बढ़ती जा रही है. लेकिन विक्रम महिला और पुरुष मेकअप आर्टिस्ट के बीच के भेदभाव से बहुत ख़फ़ा हैं और चाहते हैं कि महिला मेकअप आर्टिस्ट को भी बराबरी के मौक़े मिलने चाहिए.

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