रत्नागिरी में लंबे समय तक रहे

जी हां महाराष्ट्र के रत्नागिरी में गुमनामी की जिंदगी जीने वाली एक फैमिली वर्मा के आखिरी शासक थिबाव मिन से जुड़ी है। यह उनके वंशज हैं। कहते हैं कि 1885 में बर्मा के शासक थिबाव मिन की सत्ता पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था। इसके बाद अंग्रेजों को डर हुआ कि थिबाव मिन दोबारा विद्रोह कर सत्ता पर कब्जा न कर लें। इसलिए उन्हें पूरे परिवार समेत भारत भेज दिया गया। इस दौरान थिबाव मिन महाराष्ट्र के रत्नागिरि में उनके साथ यहां पर उनकी दो रानिया और चार बेटियां भी साथ आई थी। वे यहां पर पूरे परिवार के साथ लंबे समय तक रहे।

नौकर के प्‍यार में शाही घराना छोड़ भारत आ गई राजकुमारी,पर‍िवार झेल रहा तंगहाली

बर्मा के आखिरी शासक थिबाव मिन।

नौकर गोपाल से प्यार हो गया

करीब तीन दशक तक भारत में रहने के दौरान उनके बच्चे बर्मा की यादों को भुलाकर यहीं के हिसाब से जिदंगी जीने लगे। उनके परिवार पर अंग्रेजों का शासन इस तरह से था कि बेटियों को स्कूल तक जाने की इजाज नहीं थी। जिससे राजा के बच्चों का साथ यहीं के नौकर नौकरानियों के बच्चों से ही हो गया था। उन्हीं को वह अपना रिश्तेदार मानते थे। इस दौरान थिबाव मिन की बड़ी बेटी फाया गी जैसे-जैसे बड़ी हो रही थी उसके मन में प्यार के बीज फूटने लगे थे। फाया गी को घर में काम करने वाले नौकर गोपाल सावंत से प्यार हो गया। फाया गी के माता पिता इस सबसे अंजान थ्ो।

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रत्नागिरी जहां बर्मा के राजा रहे।गोपाल के लिए छोड़ा शाही परिवार

शाही परिवार को तो तब पता चला जब फाया गी और गोपाल की बेटी के रूप में एक संतान हो गई। हालांकि शाही परिवार ने इस नए मेहमान का जोरदारी से स्वागत किया और उसका नाम टूटू रखा। गोपाल और फाया गी एक दूसरे के साथ काफी अच्छे से रह रहे थे। तभी नवंबर 1916 में राजा थिवाब की जब मौत हो गई तो उनके परिवार को वापस बर्मा बुलाया गया। अंग्रेजों को राजा का डर खत्म हो चुका था। इस दौरान 1919 में पूरा परिवार बर्मा गया। साथ में फाया गी अपनी बेटी टूटू को लेकर गई। हालांकि फाया गी का दिल वहां नहीं लगा। इसका कारण भारत में उनका प्यार गोपाल था।

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फाया गी अपनी चारों बहनों के साथ।गोपाल ने भी साथ छोड़ दिया

ऐसे में कुछ दिन वहां रहने के बाद फाया गी शाही खानदान छोड़कर गोपाल के साथ एक आम जिंदगी जीने के लिए वापस महाराष्ट्र के रत्नागिरी आ गईं। कहा जाता है कि जिस गोपाल के लिए फाया गी सब कुछ छोड़कर आयी थी। उसकी पहले ही एक शादी हो चुकी थी। जिससे फाया गी के वापस आने के बाद गोपाल ने उन्हें नहीं अपनाया। हालांकि उसने फाया गी को मिलने वाली पेंशन के लालच में महाराष्ट्र में घर की व्यवस्था करा दी थी। फाया गी ने अपनी बेटी टूटू की अकेले ही परवरिश की। टूटू का जीवन काफी परेशानियों से गुजरा। बाद में टूटू ने यहीं भारत में ही शादी की।

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टूटू का ऑटो मैकेनिक बेटा चंद्रकांत परिवार के साथ।

बच्चे मुफलिसी में जी रहे

आज टूटू की जिंदा संतानों में बेटा चंद्रकान्त और बेटी मालती हैं। चंद्रकान्त और बेटी मालती भी मुफलिसी की ही जिंदगी जी रहे हैं। इनका कहना है कि उनकी मां ने उनकी परवरिश बहुत कठिनाई से की थी। उनकी मां टूटू कागज के फूल बनाकर बेचती थीं। वहीं राजा थिवाब और उनकी पत्िनयों की समाधि यहीं रत्नागिरी में होने से 100 पुण्यतिथि पर म्यांमार सरकार ने एक कार्यक्रम किया था। जिसमें बर्मा के शाही परिवार के लगभग सारे सदस्यों ने शिरकत की थी। इस दौरान चंद्रकांत और मालती को अपने परिवार के सदस्यों से मिलने का मौका मिला। ये सभी एक दूसरे से मिलकर काफी खुश थे।

नौकर के प्‍यार में शाही घराना छोड़ भारत आ गई राजकुमारी,पर‍िवार झेल रहा तंगहालीटूटू की बेटी अपने शाही परिजनों के साथ।

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