- दो दर्जन से ज्यादा इंटरनेशनल व सैकड़ों सीनियर नेशनल प्लेयर्स की सरजमीं है गोरखपुर

- एजुकेशन के बोझ तले दबे यूथ नहीं ले रहे हैं इंटरेस्ट

GORAKHPUR: गोरखपुर और देश के नेशनल गेम यानि कि हॉकी का साथ काफी पुराना है। यही वह सरजमीं हैं, जिसने देश को एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों हरफन मौला खिलाड़ी दिए हैं। 'हॉकी के जादूगर' मेजर ध्यानचंद भी इस सरजमीन की पैदाइश हैं, एक ऐसा खिलाड़ी, जिसने इंडियन हॉकी का नख्शा ही बदल डाला। देश में जब भी कहीं के खिलाडि़यों को तवज्जो मिलती, तो उसमें एक झुंड गोरखपुर का भी होता। उस दौर में कई मौके ऐसे भी आए थे, जब इंडिया इंडिया में एक साथ कई खिलाडि़यों को जगह मिली और उन्होंने सेलेक्टर्स के भरोसे को कायम रखते हुए दमदार परफॉर्मेस भी दी। मगर वक्त बीतने के साथ ही सिटी की यह चमक धुंधली सी पड़ने लगी है। हॉकी का घटता क्रेज और बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी से इसका ग्राफ दिन ब दिन नीचे गिरता जा रहा है। सैकड़ों की भीड़ में अब एक्का-दुक्का खिलाड़ी ही उस लेवल तक पहुंचने में कामयाब हो रहे हैं। ऐसा ही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब नेशनल गेम में सिटी को रिप्रेजेंट करने वाला कोई न होगा। खेल के जादूगर की जयंती पर जब आई नेक्स्ट ने इंटरनेशनल लेवल पर अपना लोहा मनवा चुके प्लेयर्स की नब्ज टटोली, तो उनका दर्द सामने आया।

हमारे समय में स्कूलों से लेकर स्टेडियम तक हॉकी का दबदबा था। हर जगह हॉकी प्लेयर्स को काफी तवज्जो दी जाती थी, लेकिन आज ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। हॉकी को अगर बढ़वा दिया जाए तो आज भी यहां के यूथ इतना दम रखते हैं कि वह इस खेल में अपना बेहतर फ्यूचर तराश सकेंगे। हॉकी में ग्लैमर नहीं है और यही इसके पिछड़ने की सबसे अहम वजह है। वहीं क्रिकेट प्लेयर्स को लोग किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं समझते। आज मुझे या धनराज पिल्ले जैसे तमाम इंटरनेशनल खिलाडि़यों को लोग शायद ही पहचानते हों। इस बदहाली के जिम्मेदार हम सब हैं। आज सचिन को क्रिकेटर होने पर भारत रत्न मिल सकता है तो दादा ध्यानचंद को क्यों नहीं।

- प्रेम माया, इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर

हॉकी का गढ़ कहा जाने वाले गोरखपुर से आज हॉकी लगभग पूरी तरह खत्म होती जा रही है। इसके लिए सरकार और समाज दोनों ही जिम्मेदार है। समाज में हॉकी और उससे जुड़े लोगों को मोटिवेट करने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है, वहीं अब सरकार की भी हाकी को लेकर कोई इंटरेस्ट नहीं दिखा रही है। मेरा मानना है कि ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि सीनियर खिलाडि़यों का सही इस्तेमाल किया जाए और उनके एक्सपीरियंस को यूज किया जाए, तो एक बार फिर ऐसा वक्त आ सकता है, जिससे दुनिया के तमाम देशों में सिटी के खिलाड़ी दम दिखाकर अपना और सिटी का नाम रोशन करेंगे।

- जिल्र्लुर रहमान, इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर

हॉकी जैसा खेल आज प्रोत्साहन न मिलने की वजह से बदहाली का शिकार हो गया है। कई प्लेयर ऐसे हैं, जिन्होंने अपना पूरा कॅरियर हॉकी के नाम कर दिया, लेकिन आज कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्हें दो वक्त की रोटी के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। यही कारण है कि इस खेल के प्रति अब लोगों की रूचि बहुत कम होती जा रही है। निचले लेवल पर हॉकी खत्म होने और कॉनवेंट एजुकेशन के बोझ तले दबे यूथ इसमें इंटरेस्ट नहीं ले रहे हैं।

- अशोक गुप्ता, इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर