एनसीटीई की चीफ सेक्रेट्री को मिली चिट्ठी में दोहराया गया है 2010 का फैसला

विशिष्ट बीटीसी के तहत नियुक्त प्राथमिक शिक्षकों को ही इसका फायदा मिलेगा

सुप्रीम कोर्ट ही बचा है राहत का आखिरी आसरा, दो नवंबर को हो सकती है सुनवाई

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ALLAHABAD : शिक्षा मित्रों को प्राथमिक विद्यालयों में समायोजित करने के मामले में केन्द्र सरकार के निर्देश पर एनसीटीई ने गेंद खूबसूरती से राज्य सरकार के पाले में डाल दी है। प्रदेश सरकार या शिक्षा मित्रों का इस पत्र से कोई भला नहीं होने वाला है। विधि विशेषज्ञों के अनुसार चीफ सेक्रेट्री को भेजे गए पत्र में एनसीटीई ने जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है, उससे राज्य सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इसी का नतीजा है कि न तो सरकार और न ही शिक्षा मित्र इस पर कुछ खुलकर बोल पाने की स्थिति में हैं। जश्न मनाना तो दूर की बात है।

प्रशिक्षु नहीं सिर्फ शिक्षक

मंगलवार को एनसीटीई का पत्र चीफ सेक्रेट्री आलोक रंजन को मिलने के बाद व्हाट्सएप पर शिक्षा मित्रों को मिला दीवाली गिफ्ट, जैसे शब्द वाले मैसेज जमकर शेयर हुए। न्यूज साइट्स पर भी यही न्यूज फ्लैश होने लगी। इसके बाद माहौल बदल गया था। लेकिन, नेता और जिम्मेदार ऑफिसर दोनों ने खामोशी ओढ़ रखी थी। इसके पीछे था लेटर में इस्तेमाल किए गए शब्द। लेटर में शिक्षक शब्द का इस्तेमाल किया गया है। प्रशिक्षु शिक्षक लास्ट पैरा में जोड़ा जरूर गया है लेकिन, इस पूरी लाइन से लेटर की बाकी बातें उन पर लागू होती हैं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। एक्चुअली सरकार ने शिक्षा मित्रों को शिक्षक की कैटेगिरी में कभी रखा ही नहीं। जब इन्हें शिक्षक का दर्जा दिया गया है, तब को लेटर में टीईटी की छूट से मुक्ति देने की बात ही नहीं कही गई है।

आदेश के शब्दों में हेराफेरी

शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट इलाहाबाद का आदेश आने के बाद एनसीटीई, एमएचआरडी और प्रधानमंत्री को जो चिट्टी भेजी उसमें टीईटी से पूर्ण छूट की मांग की गई थी। इसका जो जवाब आया है उसमें और इस संबंध में 2011 में जारी गाइड लाइंस में कोई अंतर नहीं है। सिर्फ शब्दों की हेराफेरी की गई है। एनसीटीई की जन सूचना अधिकारी ममता कुकरेती ने पांच अक्टूबर 2011 को सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने वाले मलकीत सिंह को बताया था कि शिक्षा मित्रों की नियुक्ति पूर्णकालिक पद पर नहीं की गई थी। लिहाजा ऐसा कोई भी व्यक्ति जो 25 अक्टूबर 2010 की अधिसूचना से पूर्व पूर्णकालिक पद पर नियुक्ति नहीं था ऐसे व्यक्ति को अध्यापक पद पर पूर्णकालिक नियुक्ति के लिए टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा)) पास करना अनिवार्य है। शब्दों के थोड़े से हेरफेर के साथ यही बात चीफ सेक्रेट्री को भेजी गई चिट्ठी में भी दोहराई गई है।

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पूर्णकालिक शिक्षक का दर्जा ही नहीं था

खास बात यह है कि एनसीटीई ने अपने पत्र में उन शिक्षकों को ही अक्टूबर 2010 की अधिसूचना के तहत छूट देने की बात कही है जिनकी नियुक्ति इससे पहले हुई हो और वे शिक्षक के रूप में काम कर रहे हों। इसका फायदा 2009 में विशिष्ट बीटीसी के हुई सहायक अध्यापकों की भर्ती के तहत रिक्रूट होने वाले शिक्षकों को मिल गया। यानी वे टीईटी क्वालीफाई करने से मुक्ति पा गए। शिक्षा मित्रों की नियुक्ति तत्समय उस वक्त संविदा (कांट्रैक्ट)) पर थी, इससे उन्हें इसका फायदा मिलने की संभावना अपने आप समाप्त हो गई। नवीन लेटर से भी यही बात स्पष्ट तौर पर सामने आ रही है। शिक्षा मित्रों की नियुक्ति एकतरफा तौर पर सिर्फ साल के 11 महीनों के लिए होती थी, इसलिए उन्हें पूर्णकालिक शिक्षक न बताना सरकार की मजबूरी थी। यही बात सरकार की तरफ से हाईकोर्ट में दाखिल हलफनामे में भी कही गई है।

शिक्षा मित्रों को क्यों नहीं मिलेगा टीईटी छूट का लाभ

- शिक्षा मित्र अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 के तहत निर्धारित न्यूनतम योग्यता नहीं रखते

- उनका चयन शिक्षकों के रिक्त पद के सापेक्ष नहीं किया गया था

- नियुक्ति के समय उन्हें अस्थाई कर्मी के रूप में संविदा पर रखे जाना बताया गया था

- साल में उन्हें सिर्फ 11 महीने के मानदेय का ही भुगतान किया जाता था

- स्कूलों में उन्हें नियुक्त किए जाने के समय आरक्षण के नियमों का पालन नहीं किया गया, त्रिस्तरीय पंचायत चक्रानुक्रम आरक्षण के तहत ही उन्हें तैनाती दे दी गई

- अध्यापक सेवा नियमावली में संशोधन का राज्य सरकार को अधिकार ही नहीं है

वोट बैंक बनाने के लिए किया खेल

प्रदेश में करीब 1.70 लाख शिक्षा मित्र हैं। इन्हें 1999 से 2003 के बीच ग्राम पंचायत स्तर पर मेरिट के आधार पर नियुक्ति किया गया था। 2009 में बसपा सरकार ने इनके दो वर्षीय प्रशिक्षण की अनुमति एनसीटीई से ली। इसी के तहत उन्हें दूरस्थ शिक्षा के अन्तर्गत दो साल का प्रशिक्षण दिया गया। बसपा ने चुनाव से पूर्व इन्हें अपना वोट बैंक बनाने के लिए चारा डाला था तो प्रदेश में सरकार बनने के बाद सपा ने इन्हें अपने पाले में करने के लिए इन्हें पूर्णकालिक सहायक अध्यापकों के रूप में तैनाती का फैसला ले लिया। दो चरणों में सरकार 1.31 लाख से अधिक शिक्षा मित्रों को समायोजित भी कर चुकी है। 12 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इससे संबंधित सभी याचिकाओं को मर्ज करके हाईकोर्ट इलाहाबाद ने जो फैसला सुनाया इससे सहायक अध्यापक की सैलरी पा चुके अभ्यर्थी अब शिक्षा मित्र कहलाने लायक भी नहीं रह गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार की अवमानना याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को प्रदेश सरकार को एक और झटका देते हुए उसके खिलाफ अवमानना याचिका स्वीकार कर ली है। बता दें कि अजय ठाकुर व अन्य द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार के विरुद्ध दायर अवमानना याचिका संख्या 82ख्/2015 को अति महत्वपूर्ण मानकर जस्टिस दीपक मिश्र की बेंच ने 631क्/2004 में दिनांक 3 अक्टूबर 2012 के आदेश का अनुपालन न करने व प्राथमिक विद्यालयों में 4.86 लाख सहायक अध्यापकों के रिक्त पदों को भरने के लिए टीईटी 2011 उत्तीर्ण अभ्यर्थियों के समायोजन के क्रम में एसएलपी 4347-4375भ्/2014 से टैग करके दो नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर लिया है। यह जानकारी अधिवक्ता आरके पांडेय ने दी है।