सुरक्षित वातावरण में होता इलाज
इस रिसर्च को करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि आरएनए जीनोम के वायरल की पहचान से मरीज का इलाज आसानी से किया जा सकेगा. हालांकि इसके लिये मरीज को एक अलग और सुरक्षित वातावरण में रखना होता है. इसके बाद दूसरा कदम मरीज के संपर्क में आने वाले सभी लोगों की इबोला के संक्रमण की पहचान के लिए जांच की जाती है.

जांच नमूने में वायरल की मात्रा होती बहुत कम
अभी भी खून के नमूने से इबोला वायरल जीनोम की शृंखला बना पाना बहुत बड़ी चुनौती है. दरअसल जांच में लिए गए खून के नमूने में वायरल आरएनए की मात्रा बहुत ही कम होती है और इंसान का अपना आरएनए अत्यधिक होता है. उस पर भी गर्म मौसम में वायरल आरएनए में तेजी से बदलाव होता रहता है. इसके अलावा खून के नमूने को पूरी सतर्कता से संभाला नहीं गया तो भी वह इबोला संक्रमित है या नहीं पता करना मुश्किल होता है.
अमेरिका के ब्रॉड इंस्टीट्यूट के शोध के अनुसार इबोला वायरस के जीनोम की शृंखला को इंसानी आरएनए को दस दिनों के दौरान 80 फीसद से कम करके 0.5 फीसद तक ले आते हैं. उसके बाद इबोला संक्रमण वाले वायरल आरएनए की पहचान सरल हो जाती है.

विश्व बैंक और गेट्स फाउंडेशन ने दी रकम
अफ्रीकी देशों को इबोला वायरस से निपटने के लिए विश्व बैंक ने 28.50 डालर की रकम और बिल गेट्स की संस्था बिल एंड मिलेंडा गेट्स फाउंडेशन ने 57 लाख डालर दिए हैं. ये रकम इस बीमारी के इलाज और निदान पर शोध के लिए जारी की जा रही है. सियरा लियोन के हवाना में क्यूबा का एक डॉक्टर भी इबोला वायरस का शिकार हुआ है.

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