जगह- गंगा बैराज का घना जंगल

टाइम-दोपहर एक बजकर 20 मिनट

 

रेस्क्यू प्वाइंट से निकल रहीं कई टीमों के पास जब आई नेक्स्ट टीम पहुंची तो टीम में शामिल मेंबर्स ने मना किया कि यहां से जाइए ये एरिया डेंजर जोन है..यहां से मात्र 2 किलोमीटर के एरिया में बाघ विचरण कर रहा है. उनके लाख मना करने के बाद भी आई नेक्स्ट टीम नहीं मानी और उनके साथ चल पड़ी. चूंकि वहां गाड़ी नहीं जा सकती थी तो पैदल ही उनके पीछे आई नेक्स्ट टीम चल पड़ी. मौका लगते ही कॉम्बिंग कर रही टीम में शामिल हाथी के ऊपर आई नेक्स्ट रिपोर्टर भी सवार हो गए और उन खतरनाक जगहों के लिए निकल पड़े जहां बाघ टहल रहा था.

वो देखो खून..

करीब एक किलोमीटर की कॉम्बिंग के बाद हाथी के महावत नफीस ने आई नेक्स्ट रिपोर्टर के कंधे पर हाथ मारते हुए कहा कि वो देखा कितना खून दिख रहा है. आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने मुड़कर देखा तो वहां कोई जानवर पड़ा था. कॉम्बिंग कर रहा हाथी उस ओर निकल पड़ा.करीब 100 मीटर चलने के बाद मालूम हुआ कि वहां नील गाय मरी पड़ी है. उसके और पास आई नेक्स्ट टीम पहुंची तो आसपास लगे कैमरों से मालूम चला कि वहां कुछ मिनट पहले वो आवारा बाघ आया था.

नील गाय को मार दिया

बाघ उस एरिया में आया और वहां घूम रही नील गाय को मार दिया. शिकार करने के बाद उसने भोजन शुरू ही किया था लेकिन चंद मिनटों बाद ही उसको वहां किसी के आने की सुगबुगाहट लगी, और वो नील गाय का सिर्फ कान और एक पैर ही खा सका. लखनऊ चिडि़याघर के सीनियर डॉक्टर उत्कर्ष शुक्ला ने बताया कि बाघ एक बार भरपेट भोजन करने के बाद दो-तीन दिन शिकार नहीं करता है, लेकिन उसके लिए जरूरी है कि वो भरपेट भोजन कर ले. उसको भरपेट भोजन के लिए करीब 30-35 किलो मीट की जरूरत पड़ती है, लेकिन वो नील गाय का सिर्फ 5-10 किलोग्राम मीट ही खा पाया है.

..तो फिर भूखा है बाघ

नील गाय का उसने शिकार किया लेकिन वो उससे पेट नहीं भर पाया. इससे साफ हो गया है कि वो भूखा है. बाघ अपना पेट भर लेता लेकिन उसी समय वहां सिंघाड़े तोड़ रहे एक युवक की नजर उस पर पड़ गई. बाघ को देखते ही उसकी सांसे अटक गई वो बदहवास हालत में हाईवे की ओर भागा. वहां पहुंचते ही उसने वन विभाग की टीम को पूरी जानकारी दी जिसके बाद सब निकल पड़े. उनकी भनक लगते ही वाघ वहां से चला गया.

चार घंटे तक चली कॉम्बिंग

बाघ की भनक लगते ही टीमों ने कॉम्बिंग शुरू कर दी, जो करीब चार घंटे चली. कॉम्बिंग में रेस्क्यू वैन के अलावा दो हाथी और वन विभाग समेत कई टीमें शामिल थीं. टीमों ने बाघ को चारों ओर से घेरने की पूरी कोशिश की. हर तरफ वन विभाग के कर्मचारियों ने अपनी निगाहें दौड़ना शुरू कर दिया. स्पेशल दूरबीन से उसको देखने के प्रयास शुरू हो गए. करीब चार घंटे तक कॉम्बिंग चली.

ट्रांक्युलाइजर गन से निशाना

कॉम्बिंग टीम के साथ चल रहे फॉरेस्ट रेंजर्स ट्रांक्युलाइजर गन से निशाना लगाए रहे. वो तैयार थे जिससे की अगर वो दिखे तो तुरंत उसको बेहोश किया जा सके. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के सीनियर रेंजर ऑफिसर आफताब वली खान ने बताया कि बाघ को बेहोश करने के लिए स्पेशल ट्रांक्युलाइजर गन का यूज किया जाता है. वो बताते हैं कि कई बार उन्होंने बाघ को इसके जरिए पकड़ा है. इसी कार्य के लिए वो यहां आए हैं. करीब 30 साल से जंगल में अपना समय बिता रहे आफताब का कहना है कि बाघ को बेहोश करना कोई आसान काम नहीं है. इसके लिए स्पेशल टेक्निक का इस्तेमाल करना पड़ता है.

पानी और घास रोड़ा बन रही

गंगा बैराज में वन विभाग और डब्ल्यूडब्ल्यूटीआई की टीम बाघ को पकड़ने के लिए छह दिनों से डेरा डाले हुए है. वो बाघ को पकड़ने के लिए लगातार कॉम्बिंग कर रहे हैं, लेकिन बाघ उनको हर बार गच्चा देकर निकल जाता है. दोनों टीमें अभी तक बाघ को पकड़ने के लिए गंगा बैराज के पास के जंगल को सबसे अनुकूल मान रही थीं, लेकिन अब उनको एहसास हो गया है कि कटरी में बाघ को पकड़ना और भी मुश्किल है. सोमवार को दोनों टीमों के पास बाघ को पकड़ने का मौका था, लेकिन बाघ उनके हाथ से निकल गया. डब्लूटीआई के सीनियर चिकित्सक डॉ. उत्कर्ष शुक्ला और डॉ. सौरभ सिंघई के मुताबिक कटरी में जगह-जगह पानी और घास है. वो गाड़ी से कटरी में घुसते तो हैं, पर वहां पर पानी की वजह से उनको रुकना पड़ रहा है. उन्हें हाथी से कॉम्बिंग करनी पड़ रही है. बाघ हाथी से काफी तेज चलता है. वो हाथी को देखकर भाग जाता है. जिससे उनको बाघ को पकड़ने का मौका नहीं मिल रहा है.

शाम होते ही पसरा सन्नाटा

गंगा बैराज के कटरी इलाके में बाघ की दस्तक से इलाके में हड़कम्प मचा हुआ है. अब बाघ की दहशत गंगा बैराज तक फैल गई. जिससे बैराज में शाम ढलने के पहले ही सन्नाटा पसर जाता है. दुकानदार दुकानें बन्द कर देते हैं. वहीं, बैराज में घूमने जाने वाले लोगों में भी अच्छी खासी कमी आई है. अगर कोई वहां पर घूमने जाता है, तो पुलिस कर्मी उसे वापस भेज देते हैं. यहीं हाल बैराज के आसपास रहने वाले लोगों का भी है. वे शाम ढलने के बाद घरों में दुबक जाते हैं और अगर कोई घर के बाहर बैठता है तो वो अलाव जलाकर ग्रुप में रहते हैं. जिससे की किसी विपरीत परिस्थिति में वो मिलकर निपट सकें.

घरों के अंदर बांधे पालतू जानवर

कटरी में बाघ के पग के निशान और उसके जंगली जानवरों के शिकार करने की सूचना के बाद से ग्रामीणों ने पालतू जानवरों को घरों में कैद कर लिया है. नत्थापुरवा के राजेश ने बताया कि ज्यादातर ग्रामीण चारा बचाने के लिए पालतू जानवरों को दिन में कटरी में घास चरने के लिए छोड़ देते थे, लेकिन गंगा किनारे बाघ की दस्तक के बाद से उन लोगों ने पालतू जानवरों को चरने के लिए छोड़ना बन्द कर दिया. अब वे उनको घरों में चारा देते हैं. साथ ही रात में उनकी रखवाली करनी पड़ती है. वे जानवर बांधने की जगह पर सुरक्षा के लिहाज से अलाव जला देते हैं, ताकि बाघ वहां न पहुंचे.

परेशान कर रहे हैं चोर रास्ते

वन विभाग की टीम ने कटरी को सील कर दिया है. उन्होंने वहां पर ग्रामीणों के जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है, लेकिन ग्रामीण लगातार कटरी में आवाजाही कर रहे हैं. वन विभाग की टीम ने तीन मुख्य प्वाइंट पर जवान भी तैनात कर दिए हैं, लेकिन ग्रामीण चोर रास्तों का यूज कर रहे हैं. ऑफिसर के मुताबिक ग्रामीणों की गलती से बाघ आदमखोर हो सकता है. वे लगातार कटरी में जा रहे हैं. ऐसे में किसी ग्रामीण का बाघ से सामना हो गया, तो वो हड़बड़ाहट में कोई गलती कर देगा और बाघ उस पर हमला कर देगा.

बाघ देखें या पापी पेट

गंगा कटरी में अमरूद के करीब 800 बाग हैं. यहां पर सिंघाड़ा, लौकी, गेहूं आदि की खेती भी होती है. इस समय अमरूद का सीजन है. ऐसे में गांव वालों को ये चिंता है कि अगर वो अमरूद तोड़कर बाजार में नहीं बेचेंगे तो फिर उनका पेट कैसे भरेगा? इस वजह से मालूम होते हुए भी कि पास में ही बाघ है वो वहां जाने को मजूबर हैं क्योंकि पेट को पालना है. बिशनू और किशन कहते हैं कि कटरी के कुछ बाग को तो किसान शहर के फल व्यापारी को ठेके में दे देते हैं, लेकिन ज्यादातर खुद ही अमरूद तोड़कर बेचते हैं. ऐसे में बाघ का डर तो है लेकिन फिर भी मजबूरी में जान जोखिम में डालकर अमरूद तोड़ने वो लोग जा रहे हैं. कभी-कभी तो फल व्यापारी ही गरीब ग्रामीणों से बाग से अमरूद तोड़कर पैक करवाते हैं. इस वजह से अमरूद के बागों में अभी भी ग्रामीण चहलकदमी कर रहे हैं. आई नेक्स्ट ने ग्रामीणों से बात की, तो उन्होंने बताया कि वे इसी से साल भर की कमाई करते हैं. उन्होंने कहा कि डर तो उन्हें भी लगता है, लेकिन अगर डर कर घर बैठ गए, तो वो कैसे बच्चों को पालेंगे? दूसरी ओर लोगों को बाघ से बचाने के लिए वन विभाग के कर्मचारी और अधिकारी उनको वहां जाने से रोक रहे हैं.

बाघ डराए, विभाग थप्पड़ मारे

मंडे को जंगल की ओर जा रहे कई ग्रामीणों को वन विभाग के कर्मचारियों ने रोकने की कोशिश की लेकिन जब वो नहीं माने तो उन्होंने धक्का-मुक्की करके उनको वहां से भगाया. कई ग्रामीणों से उनकी कहासुनी भी हुई. एक ग्रामीण को वन विभाग के कर्मचारी ने थप्पड़ भी रसीद कर दिया.