कानपुर। पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार 83 वर्षीयगिरिराज किशोर का रविवार सुबह कानपुर में उनके रेजिडेंस पर हृदय गति रुकने से निधन हो गया। उनके निधन पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट करते हुए कहा कि "गिरिराज किशोर जी के देहावसान से साहित्य जगत व सम्पूर्ण प्रबुद्ध समाज में एक निर्वात उत्पन्न हो गया है।" साहित्य जगत से जुड़े कई लोगों ने उनके देहांत पर अपनी शोक संवेदनायें व्यक्त की हैं। बताते हैं कि वे मुजफ्फरनगर से आ कर कानपुर में बसे थे।
प्रख्यात साहित्यकार, कालजयी रचना 'पहला गिरमिटिया' के लेखक, पद्मश्री श्री गिरिराज किशोर जी के देहावसान से साहित्य जगत व सम्पूर्ण प्रबुद्ध समाज में एक निर्वात उत्पन्न हो गया है।
प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि उनकी पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करें।
ॐ शांति— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) February 9, 2020
सोमवार को होगा अंतिम संस्कार
गिरिराज किशोर के परिवार से जुड़े लोगों ने बताया कि आज सुबह करीब 9.30बजे उनका निधन हुआ था। वे कुछ समय से बीमार चल रहे थे। करीब तीन महीने पहले गिरने के कारण उनके कूल्हे में फ्रैक्चर हो गया था जिसके बाद से वह लगातार अस्वस्थ ही थे। देह दान करने के कारण गिरिराज का अंतिम संस्कार सोमवार को सुबह 10:00 बजे हो सकेगा। उनके परिवार में पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा है।
पद्मश्री सम्मान
गिरिराज किशोर को 23 मार्च 2007 में साहित्य और शिक्षा के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी रचनाओं में कहानी संग्रह 'नीम के फूल', 'चार मोती बेआब', 'पेपरवेट', 'रिश्ता और अन्य कहानियां', 'शहर -दर -शहर', 'हम प्यार कर लें', 'जगत्तारनी' एवं अन्य कहानियां, 'वल्द' 'रोजी', और 'यह देह किसकी है?' खासी चर्चित रहीं। इसके साथ भी वे उपन्यासकार, नाटककार और आलोचक के रूप में भी प्रसिद्ध थे। उनके उपन्यास 'ढाई घर' को 1992 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित कर दिया गया था। गिरिराज किशोर को सबसे ज्यादा 'पहला गिरमिटिया' नाम के उपन्यास के लिए जाना जाता है जिसमें उन्होंने महात्मा गाँधी के अफ्रीका प्रवास से प्रेरित हो कर लिखा था।
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