अश्विन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। ये एकादशी इस वर्ष 9 अक्टूबर, 2019, बुधवार को है। पापांकुशा एकादशी रूपी हाथी को महावत के रूप में अंकुश बेदने के कारण ही इसे पापांकुशा एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा व ब्राह्मण भोजन कराना आवश्यक होता है।

ये व्रत रखने से धन-धान्य एवं सुख होता है प्राप्त

पापांकुशा का व्रत रखने से समस्तत पापों व दोषों में कमी होती है। इस दिन मौन रह करके भागवत गीता का ध्यान करना चाहिए। इस दिन व्रतियों को केवल फलाहार करने का विधान है। 1000 अश्वमेघ यज्ञ और राजशूर यज्ञ का फल पापांकुशा एकादशी के व्रत के 16वें हिस्से के बराबर भी नहीं होता है। इस व्रत को करने से मनुष्य को धन-धान्य एवं सुख मिलता है। इसे करने से घर में परेशानियों को आगमन रूक सकता है।

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पापापुंश एकादशी की कथा

पापापुंश एकादशी आखिर क्यों मनाई जाती है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। विन्ध्य पर्वत पर एक महाक्रूर क्रोधन नाम का बहेलिया रहता था। उसने अपना पूरा जीवन लूट-पाट, हिंसा तथा मिथ्या भाषण  और मध्यपान में ही बिता दिया। अब उसके जीवन का अंतिम समय आ चुका था। यमराज ने अपने दो दूतों को क्रोधन के पास उसे ले आने के लिए भेजा। दोनों दूत क्रोधन के पास गए और कहा तुम्हारा अंतिम समय आ गया है हमारे साथ चलो। क्रोधन घबराकर एक ऋषिमुनी के द्वार पर पहुंचा। ऋषि उसे अपने पास आते देख प्रसन्न हुए और उसे विष्णु पूजन का विधान बताया। भागवत कृपा से क्रोधन विष्णु लोक पहुंच गया और दोनों यमदूत उसे अपने साथ न ले जा पाए, बस हाथ ही मल कर रह गए।

-पंडित दीपक पांडेय

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