नई दिल्ली (पीटीआई)। "पाताल लोक" के राइटर क्रिएटर सुदीप शर्मा का कहना है कि वे इस शो में वे एक पुलिस ऑफीसर की आंख से दिल्ली के एक खास पहलू को दिखाना चाहते थे। ये अधिकारी एक पत्रकार की हत्या की साजिश का खुलासा करने की कोशिश में लगा है। साथ ही वे इसके जरिए भारत में रिलिजन और कास्ट से जुड़ी भ्रांतियों के बारे में बात करना चाह रहे थे।

नहीं बाहर आ सकते कास्ट और रिलिजन के दवाब से

पिछले हफ्ते अमेज़न प्राइम पर शुरू होने वाले इस शो ने देश में जाति, वर्ग, लिंग और धार्मिक समीकरणों पर अपनी पैनी नजर के चलते खासी पाप्युलैरिटी हासिल की है। सुदीप ने बताया कि इन्वेस्टिगेशन के केंद्र में आये चार संदिग्धों की तकदीर का फैसला करते हुए इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी (जयदीप अहलावत) और उनका सबॉर्डिनेट इमरान अंसारी (इशाक सिंह) भारत में जाति, भाषा, धर्म या लिंग इन विभाजनों का पता लगाने की कोशिश में यहां से वहां भटकते हैं। इस क्रम में ये सच सामने आता है कि सामाजिक आर्थिक स्थिति में बदलाव के माध्यम से आप ऊपर उठ सकते हैं, लेकिन देश में अपनी जाति या धर्म से ऊपर आना असंभव है।

फिल्मों से वेब सीरीज तक का सफर

"एनएच 10", "उड़ता पंजाब" और "सोनचिरिया" जैसी फिल्में लिख चुके सुदीप के लिए नौ-एपिसोड की सीरीज "पाताल लोक" लिखना एक अलग उनुभव था। उनके अनुसार ये ऐसा एक्सपीयरेंस था जैसे कई शॉर्ट स्टोरीज लिखने के बाद वे एक उपन्यास लिख रहे हों। साथ ही इस सीरीज ने उन्हें अपने कलाकारों और उनके करेक्टर को हर नजरिए से एक्सप्लोर करने की आजादी दी। उदाहरण के जौर पर उनके चार सस्पेक्टस हाथोदा त्यागी, कबीर एम, छेनी और टोपे सिंह के करेक्टर। इनमें से कबीर की कहानी एक ऐसे लड़के और उसके पिता की कोशिश के बारे में है जो अपने धर्म से बाहर निकल कर आगे बढ़ना चाहते हैं पर फिर उन्हें अहसास होता है कि इस देश में यह असंभव है।

हर करेक्टर की कहानी

सुदीप कहते हैं कि वे अंसारी के जरिए धार्मिक एंगल को एक अलग सामाजिक आर्थिक कलास में प्रेजेंट करके दिखाना चाहते थे। सीरीज का हर एपिसोड एक प्रस्तावना के साथ शुरू होता है जो कहानी के स्पष्ट खलनायक से नफरत करना असंभव बनाता है। शर्मा के लिए यही सबसे महत्वपूर्ण था, और उनके लेखकों की टीम, सागर हवेली, हार्दिक मेहता और गनजीत चोपड़ा ने इसे पूरी तरह निभाने की कोशिश की है कि किसी एक पर फैसला करके बजाय लोग हर करेक्टर को सहानुभूति के नजरिए से देखें। लंबे समय से, पुलिस को या तो अच्छे काम करने वालों के रूप में या असभ्य, अक्षम और बेवकूफ के रूप में दिखाया जाता रहा है, लेकिन शर्मा ने कहा कि वह शो के साथ इस नजरिए को बदलना चाहते हैं। वे चाहते थे कि लोग एक पुलिस वाले के दृष्टिकोण से देखें कि जब वह हमें देखता है तो वह क्या देखता है? उसके नौकरी करने का क्या मतलब है जो दिल्ली जैसे शहर में हर महीने 35,000-40,000 रुपये कमाता है और दिन भर अपराध और हिंसा के बीच रहता है। हाथीराम असभ्य और राजनीतिक रूप से गलत हो सकता है लेकिन जब हम उसके साथ समय बिताते हैं और उसकी आंखों से उसकी दुनिया को देखना शुरू करते हैं, तो उसके बारे में हमारी सोच बदल जाती है।

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