- अमूमन सभी दालों पर बढ़े हुए हैं 50 फीसदी कीमत

- सिटी में दाल की खरीद में जमकर हो रही है जमाखोरी

- मेरठ में प्रतिदिन दालों की डिमांड 35 हजार क्विंटल

Meerut : जून माह में दालों के जो रेट फुटकर के थे वो अब मंडी के हो गए हैं। फुटकर के रेट आसमान छूने के बावजूद कोई भी इस पर लगाम लगाने की कोशिश नहीं कर रहा है। पब्लिक बढ़े हुए दामों के साथ दालें खरीदने पर मजबूर हैं। सबसे बड़ी बात तो ये है मंडी अधिकारियों से लेकर थोक और फुटकर व्यापारियों तक कोई भी इसे जमाखोरी मानने को तैयार नहीं है। आइए आपको भी बताते हैं कि दालों की क्या स्थिति है

कीमतों का हाल

मंडी में अरहर की दाल के मौजूदा रेट 120-130 रुपए प्रति किलो हो गए हैं। वहीं मूंग धुली के रेट 80-90 रुपए प्रति किलो हैं। वहीं उड़द धुली 120-140 रुपए प्रति किलो और चने की दाल 50-52 रुपए और काली मसूर 90 रुपए प्रति किलो बिक रही है। वहीं बात फुटकर दुकानों की करें तो अरहर की दाल 170 रुपए किलो बिक रही है। जबकि हाई सोसायटी कॉलोनीज में अरहर की दाल की कीमत 200 रुपए तक भी है। वहीं मूंग 120 रुपए, उड़द 180-210 रुपए, चना 70 रुपए मसूर 100 रुपए है।

यहां से आती हैं दालें

अगर बात मेरठ की करें तो मंडी में कर्नाटक, राजस्थान, बिहार, एमपी, ईस्ट यूपी, चेन्नई दालों की सप्लाई होती है। अगर बात विदेशों की करें तो मेरठ की नवीन मंडी में अरहर की दाल रंगून से मंगाई जाती है जबकि मटर का सबसे बड़ा निर्यातक देश कनाडा है। चना ऑस्ट्रेलिया से आता है और मूंग की दाल और राजमा चाइना से खरीदा जाता है, जबकि उड़द की दाल की सप्लाई रंगून और थाईलैंड से होती है। वहीं म्यांमार, अमेरिका और अफ्रीकी देशों से भी दालों की सप्लाई मेरठ की मंडी में हो रही है।

कोई प्राइस कंट्रोल नहीं

मंडी कारोबारियों की मानें तो मिनिमम प्राइस तो तय है, लेकिन मैक्सिमम प्राइस तय नहीं होता। इसका फायदा फुटकर विक्रेता उठाते हैं और मनमाने दामों पर दालों को बेचते हैं। कई दुकानदार इसे 20 से 25 परसेंट तक रेट हाई कर बेचते हैं। हालांकि दाल की गिनी चुनी मार्केट में इसे 8 से 10 परसेंट के मुनाफे पर ही बेच दिया जाता है।

रेट बढ़ने का कारण दालों की पैदावार में काफी कम होना है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में दालों की पैदावार ज्यादा होती है। वहीं सबसे ज्यादा कमी आई है।

- विरेंद्र सिंह, मंडी पर्यवेक्षक, नवीन मंडी

वैसे भी इस साल बारिश के कारण पैदावार भी काफी कम हुई है। अगर पीछे से सप्लाई नहीं आती है तो और मंगा लिया जाता है। अगर बात रेट की करें तो ये तो पीछे से ही तय होते हैं। इनमें हमारा कोई हाथ नहीं होता है।

- महेंद्र गर्ग, पूर्व अध्यक्ष, नवीन मंडी दलहन एसोसिएशन

मुझे नहीं लगता कि कोई भी दालों की जमाखोरी कर रहा है। वैसे भी ट्रेडिंग के इस दौर में कोई जमाखोरी नहीं करेगा। वैसे भी दालों के रेट बढ़ने से खुद दुकानदारों को ही घाटा होता है।

- गौरव गुप्ता, व्यापारी

हम अपनी ओर से दालों के रेट नहीं बढ़ाते हैं। सदर दाल मंडी से हमें जिस रेट पर मिलता है, उसमें टैक्स और ट्रांसपोर्टेशन का भी खर्चा होता है। थोड़ा मुनाफा दुकानदार भी कमाएगा भी। पब्लिक का पूरा ख्याल रखते हैं।

- दीपक चुघ, ऑनर आरके किराना स्टोर, चाणक्य पुरी

महंगाई के कारण

सबसे अहम कारण जमाखोरी है। जमाखोरों ने बाजार का रुख भांपते हुए शहर के आउटर एरिया में भारी मात्रा में दाल जमा कर रखी है। एक बार बाजार भाव आसमान छूने के बाद इसे धीरे-धीरे बाजार में उतारा जा रहा है। सरकारी मशीनरी भी सब कुछ जानते हुए जमाखोरों पर लगाम कसने में नाकाम साबित हो रही है। दाल की महंगाई के दूसरे कारण इस प्रकार हैं

- महाराष्ट्र और एमपी से हर महीने ऊंचे दामों पर दाल का आयात किया जा रहा है।

- इस साल बेमौसम बरसात ने दलहन की फसल को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

- पिछले पांच सालों से मेरठ दालों की खेती पूरी तरह से खत्म हो गई है।

- महाराष्ट्र से मेरठ तक आने में प्रति क्विंटल ट्रक भाड़ा 400 क्विंटल रुपए है।

- दलहन की फसल तैयार होने में आठ से नौ महीने लगते हैं। एक बार फसल खराब होने के बाद किसान बर्बाद हो जाते हैं। किसान तीन से चार महीने वाली फटाफट फसलों की ओर भाग रहे हैं।