RANCHI: रांची का बड़ा तालाब, जिसे रांची लेक के नाम से भी जाना जाता है। इसकी कभी इतनी क्षमता थी कि अकेले पूरी रांची को वाटर सप्लाई कर दे। कभी रांची शहर की लाइफ लाइन रहा बड़ा तालाब अब धीरे-धीरे दम तोड़ रहा है। इसका पानी जहरीला हो चुका है। एक तरफ जहां शहर के सीवरेज का पानी और कूड़ा-कचरा इसमें भरा जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ अस्पतालों का बायोमेडिकल वेस्ट भी इसमें बेखौफ डाला जा रहा है। इसके पीछे कारण रांची नगर निगम और झारखंड सरकार की लापरवाही है। वहीं, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस तालाब की ब्यूटीफिकेशन के लिए एक नहीं पिछले 10 सालों में रांची नगर निगम की तरफ से 10 प्लानिंग की गई। 10 डीपीआर बने, लेकिन किसी डीपीआर पर काम नहीं हो पाया। लिहाजा सारी योजनाएं ठंडे बस्ते में चली गई और बड़ा तालाब दिनों-दिन पहले से भी खराब होता जा रहा है।

आवाज उठाते रहे हैं संगठन

आलम यह है कि बड़ा तालाब की बदहाली को लेकर सामाजिक संगठन समय-समय पर आवाज उठाते हैं। इसके बाद इस तालाब की व्यवस्था के लिए जिम्मेदार रांची नगर निगम नींद से जागता है, लेकिन, सिर्फ मीटिंग और डीपीआर बना कर फिर चिर निंद्रा में नगर निगम सो जाता है। योजनाओं को धरातल पर उतारने का कोई सटीक उपाय नहीं होता।

कभी पिकनिक स्पॉट था बड़ा तालाब

बड़ा तालाब कभी अपनी ब्यूटी के लिए पूरी रांची में जाना जाता था। तालाब के किनारे चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे इटैलियन पेड़ लगे हुए थे। रात में जब तालाब का लैंप पोस्ट जलता, तो इसकी रोशनी से पानी के सतह पर अद्भुत छटा बिखेरती थी। शाम के समय सिटी के अलग-अलग मोहल्लों और कॉलोनियों से लोग यहां फैमिली और फ्रेंडस के साथ आते थे। लोगों के लिए यह फैमिली के साथ पिकनिक मनाने का बेस्ट स्पॉट था।

साइबेरियन पक्षियों का नहीं रहा बसेरा

साइबेरियन पक्षियों का भी यह तालाब बसेरा हुआ करता था, जिन्हें देखने के लिए भी दूर-दूर से लोग आते थे। लेकिन यह सब अब अतीत की बातें हो गई हैं। पिछले दो दशक से रांची लेक हादसों और इसमें मर रहीं मछलियों तथा दूसरे जीवों के लिए ही चर्चा में बना हुआ है।

अंग्रेज अफसर राबर्ट ओस्ले ने खुदवाई थी तालाब

रांची जिले के फ‌र्स्ट डिस्ट्रिक्ट कमिश्नर रहे राबर्ट ओस्ले ने 1842 में रांची सिटी के बीचों-बीच एक तालाब खुदवाने की सोची। इसके लिए उनके पास जमीन नहीं थी। इसके लिए उन्होंने सिटी के बीच स्थित पालकोट के राजा की जमीन की डिमांड की थी, जिसे राजा ने मना कर दिया था। इसके बाद राबर्ट ओस्ले ने जबर्दस्ती इस जमीन का अधिग्रहण कर तालाब खुदवाने का काम शुरू कर दिया। इसमें जेल में बंद आदिवासी कैदियों को लगाया गया। पूरे एक साल की खुदाई के बाद यह तालाब बन पाया। जब इसका उद्घाटन हुआ तो अंग्रेज अफसर भी अपनी फैमिली के साथ इसे देखने आए थे। सबने इसकी काफी तारीफ की थी। दूर-दूर तक लोग इसे देखने आते थे। यह तालाब रांची के लिए जीवनदायिनी भी बन गया था। इसके चारों ओर घाट बनाया गया था। उस समय इस तालाब पर एक पक्का गेट भी बनाया गया था।

'साहेब का तालाब' बहा रहा बदहाली का आंसू

आजादी के बाद जब अंग्रेज यहां से चले गए, तो इसकी उपेक्षा होने लगी। सिटी का कूड़ा-कचरा, नालियों का पानी यहां गिरने लगा। तालाब के आसपास स्थित मोहल्लों का वेस्टेज भी इसी तालाब में जाने लगा। इससे यह तालाब बदहाल होने लगा। तालाब का अतिक्रमण होने लगा। इसका विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने विरोध किया, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही इसे बदहाली पर ले जाते रहा। पहले जहां तालाब की नियमित सफाई होती थी, वहीं फिलहाल दशकों से सफाई से नहीं होने से इस तालाब की गहराई कम होने के साथ ही इसका जलस्तर भी कम हो गया है। इस तालाब में वाटर रिचार्ज नहीं होने और ऑक्सीजन की कमी के कारण इसके अंदर की मछलियां और दूसरे जीव भी मरने लगे हैं। ऐसे में साहेब का तालाब कहा जाने वाला यह बड़ा तालाब आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है।

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पहली बार 2005 में बनी योजना

बड़ा तालाब के सौंदर्यीकरण के लिए साल 2005-06 में रांची नगर निगम ने 2.40 करोड़ रुपए की लागत वाली योजना बनाई थी। इसमें इस तालाब को लेकर काफी लंबी-लंबी बातें की गई थीं, लेकिन यह योजना साकार नहीं हो पाई और रांची नगर निगम को यह पैसा लौटाना पड़ा। इसके बाद पिछले 10 सालों में हर वित्तीय वर्ष बड़ा तालाब को लेकर योजनाएं बनती रहीं, लेकिन कुछ काम नहीं हुआ। बीते वित्तीय वर्ष में भी इस तालाब को संवारने के लिए योजना थी, लेकिन डीपीआर के आगे काम ही नहीं बढ़ा।

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टाटा ने भी दिखाया था इंट्रेस्ट

साल 2005 में टाटा कंपनी ने भी इस तालाब को टूरिस्ट स्पॉट के रूप में विकसित करने और इसके ब्यूटीफिकेशन के लिए इंट्रेस्ट दिखाया था। कंपनी ने इसके लिए झारखंड गवर्नमेंट और रांची नगर निगम को अपना प्रपोजल भी दिया था। कंपनी ने मांग की थी कि बड़ा तालाब के पास से डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन पहले अतिक्रमण हटाए। लेकिन, सरकार ने इसमें कोई रूचि नहीं ली और अंतत: टाटा कंपनी पीछे हट गई। इसके बाद से लगभग हर साल इसके लिए प्लानिंग फाइलों में होती रही, लेकिन ये योजनाएं कभी धरातल पर नहीं उतर पाई।

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अफसर ही नहीं चाहते संवरे बड़ा तालाब: सीपी सिंह

बड़ा तालाब के सौंदर्यीकरण के लिए मैंने लगातार आवाज उठाई है। लेकिन, अधिकारी ही नहीं चाहते हैं कि यहां पर काम हो। हर बार डीपीआर बनता है, लेकिन इसमें इतनी पेंच फंसा दी जाती है कि डीपीआर से आगे काम बढ़ता ही नहीं है।

-सीपी सिंह, नगर विधायक सह नगर विकास मंत्री