कानपुर (इंटरनेट डेस्‍क)। फाइनेंस व मार्केटिंग से एमबीए शालू ने अपने दो बच्‍चों की परवरिश के लिए कॉरपोरेट वर्ल्‍ड छोड़ा। वक्‍त बीतने के साथ अपनी हॉबी संगीत की ओर दोबारा रुख किया। वोकल म्‍यूजिक सीखना शुरू किया और डेस्टिनी उन्‍हें 'सड़क 2' के को लिरिसिस्‍ट के मुकाम तक ले आई। अपने अब तक के सफर के बारे में वे कहती हैं कि 'हमारी जिंदगी में जो भी हो रहा है उसके पीछे कोई न कोई पर्पज छिपा है।' पेश हैं उनसे बातचीत के अंश...
महेश भट्ट से मुलाकात
'किसी ने कहा था तुम लोग महेश भट्ट से मिलो, वे नए लोगों को मौका देते हैं।' शालू, उनसे अपनी पहली मुलाकात के बारे में बताते हुए कहती हैं, 'दूसरी कोशिश में उन्‍होंने हमें मिलने का वक्‍त दिया, हमारी मुलाकात उनके खार स्थित ऑफिस में हुई। उन्‍होंने 'इश्‍क कमाल' को सुना और एक बार फिर सुनाने के लिए कहा। कई बार इसे सुनने के बाद उन्‍होंने पूजा भट्ट को फोन लगाया और कहा कि तुम्‍हें यह गाना सुनना चाहिए।' लगभग ढाई घंटे की इस मुलाकात में पूजा भट्ट के आने के बाद उन्‍होंने कहा कि वे इस गाने को अपनी आने वाली फिल्‍म सड़क 2 में लेंगे।'


'इश्‍क कमाल' की कहानी भी कम कमाल नहीं
'इश्‍क कमाल' के लिखे और उसे लयबद्ध किए जाने की कहानी भी कम कमाल की नहीं है। शालू बताती हैं कि 'इसकी कोई योजना नहीं थी लेकिन लोग अकसर कहते और खुद भी यह फीलिंग आती कि कुछ ओरिजिनल करना चाहिए।' वह आगे बताती हैं, ' एक दिन हम लोग लिखने बैठ गए, एक लाइन लिखते और सुनीलजीत उसका म्‍यूजिक तैयार करते जाते, इसमें 7-8 दिन लगे।' 'जब पूरा गाना बनकर तैयार हुआ तब इस बात का अहसास हुआ कि किसी चीज का क्रिएशन कितना सैटिस्‍फाइंग होता है।' वे 'इश्‍क कमाल' के पीछे की प्रेरणा सूफी कवि व दार्शनिक बुल्‍लेशाह के कलाम को बताती हैं।


चंडीगढ़ में शुरू हुई संगीत साधना
फाइनेंस व मार्केटिंग से एमबीए शालू अपने बारे में बताते हुए कहती हैं कि लगभग 5 साल कॉरपोरेट लाइफ जीने के बाद जब उन्‍होंने होम मेकर बनने का फैसला किया, तब कुछ तय नहीं था। पढ़ाई के दिनों में संगीत में रुचि तो रही लेकिन कभी उसके बारे में गंभीरता से नहीं सोचा। नोएडा में उन्‍होंने गिटार सीखना शुरू किया, उनके गिटार टीचर मयूर चौधरी ने उन्‍हें वोकल म्‍यूजिक सीखने की सलाह दी। साल 2013 में वह अपने पति के साथ चंडीगढ़ आ गईं। जहां उन्‍होंने संगीत साधना को आगे बढ़ाया। उनके गुरू बने सुनीलजीत जो इस गाने के को-लिरिसिस्‍ट भी हैं।
प्‍यार और शादी
अपने पति के बारे में बताते हुए शालू कहती हैं कि उनकी पहली मुलाकात जबलपुर में पढ़ाई के दौरान हुई। दोस्‍ती जो प्‍यार में बदल गई और फिर उन्‍होंने साल 1998 में शादी कर ली। उनके दो बेटे हैं। घर संभालते-संवारते हुए अपने पैशन को उन्‍होंने कैसे जिया, इस सवाल पर वो कहती हैं, 'टाइम मैनेजमेंट, माइंड कंट्रोल, माई कनेक्‍शन टू गॉड, यह तीन चीजें हैं, जो उनकी इस काम में मदद करती हैं।

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