पीड़िता के माता-पिता ने जूवेनाइल जस्टिस बोर्ड के ट्रायल के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है. उनका कहना है कि इस मामले में 17 साल के नाबालिग़ अभियुक्त को वही सज़ा मिलनी चाहिए जो अन्य को मिली है.

दिल्ली गैंगरेप मामले में छह दोषियों में से चार को फांसी की सज़ा हुई थी. एक अभियुक्त राम सिंह जेल में मृत पाया गया जबकि छठे नाबालिग़ अभियुक्त को जूवेनाइल बोर्ड ने तीन साल के लिए सुधार गृह भेजा गया है.

पीड़िता 'निर्भया' के अभिभावकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल कर क्रिमिनल कोर्ट में नाबालिग़ अभियुक्त के ख़िलाफ़ ताज़ा सुनवाई की मांग की है.

हाल में ये ख़बरें आई हैं कि केंद्र सरकार जघन्य अपराध के मामलों में नाबालिग़ों की उम्र पर फिर से विचार कर रही है.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़ क़ानून मंत्रालय इस दस्तावेज को अंतिम रूप देने में लगा है कि अगर 16 साल से ऊपर का नाबालिग़ कोई जघन्य अपराध करता है तो उसके साथ बालिग़ की तरह व्यवहार किया जाएगा.

'उपयुक्त नहीं सज़ा'

16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में चलती बस में एक लड़की के साथ बलात्कार हुआ था. इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था.

हज़ारों लोग इंसाफ की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए थे जिसके बाद सरकार ने मामले की सुनवाई फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में करवाने का फैसला किया.

'निर्भया' मामले में केंद्र को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

पीड़िता के अभिभावकों के वकील अमन हिंगोरनी के माध्यम से दाखिल याचिका में कहा गया है कि जेजे ऐक्ट की आड़ लेकर जघन्य अपराधियों को बचाना असंवैधानिक है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को दिशा निर्देश देने चाहिए.

जेजे बोर्ड के ट्रायल को खारिज करने की मांग करते हुए 'निर्भया' के माता-पिता का कहना है कि आईपीसी के अंतर्गत आने वाले अपराधों के लिए क्रिमिनल कोर्ट ने एक अभिुयक्त का  ट्रायल केवल इस आधार पर नहीं किया क्योंकि वह 17 साल का नाबालिग़ है.

उनका कहना है कि नाबालिग़ अभिुयक्त को सुधार गृह भेजना इस अपराध के लिए बिलकुल भी उपयुक्त सजा नहीं है.

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