- पावर कार्पोरेशन के एमडी इंजीनियर एपी मिश्रा ने शेयर किए लाइफ एक्सपीरियंस

- अपनी बुक 'सिफर से शिखर तक' में शब्दों से पिरोया जिंदगी का सफर

GORAKHPUR : 'गेट आउट फ्रॉम द रूम, नॉक द डोर एंड देन कम इनसाइड' यह व‌र्ड्स ऐसे हैं, जो मेरे दिमाग में हमेशा ही गूंजते रहते हैं। कुछ मामलों को छोड़ दिया जाए तो रैगिंग के रिजल्ट्स हमेशा ही खराब नहीं होते हैं। रैगिंग के दौरान जब मेरे सीनियर्स में मुझसे इतनी चीजें कह दी। मैं गांव का बंदा था और जिस जगह से आया था, वहां पर न तो इस लेवल की एजुकेशन ही दी जाती थी और न ही इस तरह के मैनर्स देखने को मिलते थे। जिसके बाद एक सीनियर उठकर दरवाजे के पास गया, वहां पर जाकर दरवाजा खटखटाया और उसके बाद 'मे आई कम इन' बोलकर अंदर दाखिल हो गया। उसने मुझसे कुछ नहीं कहा, लेकिन बावजूद इसके मुझे काफी कुछ सिखा गया। यह बातें ब्भ् साल पहले एमएमएमयूटी के एल्युमिनस रह चुके यूपी पॉवर कार्पोरेशन के एमडी इंजीनियर एपी मिश्रा ने शेयर कीं, वह यूनिवर्सिटी के पहले एल्युमिनाई मीट में बतौर स्पेशल गेस्ट के तौर पर मौजूद थे। इस दौरान उन्होंने कॉलेज लाइफ से अब तक की लाइफ एक्सपीरियंस शेयर किए।

'सिफर से शिखर तक' में बायोग्राफी

अपनी लाइफ से जुड़ी इंटरेस्टिंग बातों को शेयर करने हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने जिंदगी के सफर को एक किताब में बंद कर दिया है। उनकी जिंदगी की दास्तान उनकी किताब 'सिफर से शिखर तक' से मालूम की जा सकती हैं। उन्होंने बताया कि मैं एक नॉर्मल फैमिली से बिलांग करता हूं। एमएमएम इंजीनियरिंग कॉलेज में जब मैंने एडमिशन लिया, तो इस दौरान शुरुआती दौर में तो मैं डे स्कॉलर रहा, बाद में यही हॉस्टल में एडमिशन ले लिया। आज मैं जहां हूं और जिस परिवेश से आया हूं, वहां तक पहुंच जाना 'शिखर' है। हो सकता है कि मैं क्लास वन अधिकारी का बेटा होता और तब यह उपलब्धि हासिल करता तो मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, लेकिन मैंने जिन परिस्थितियों में यह हासिल किया है वह मेरे लिए शिखर जैसा ही है। इसकी प्रेरणा मुझे स्वामी अंगद जी महाराज से मिली और उन्होंने ही मुझसे इसका शीर्षक भी सजेस्ट किया था और इसकी थीम भी बताई थी।

इंजीनियरिंग के बारे में भी नहीं थी खबर

अपने एक्सपीरियंस शेयर करते हुए उन्होंने बताया कि पूर्वाचल में वैरियस सेक्शन ऑफ सोसाइटी के लोग आते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश का यह शहर है और इस शहर की यही खूबसूरती है, यहां पर काफी विविधता है। आजमगढ़, बलिया, जौनपुर, गाजीपुर, गोंडा, बहराइच, बस्ती, देवरिया इन इलाकों के लोग काफी पिछड़े थे। खुद मुझको ही यह मालूम नहीं था कि इंटरमीडिएट फ‌र्स्ट क्लास पास करने के बाद इंजीनियरिंग जैसी भी कोई चीज होती है। मुझे यह भी नहीं पता था कि गोरखपुर में कोई इंजीनियरिंग कॉलेज है और आप यहां पहुंचकर इस पोजीशन पर पहुंच सकते हैं या अपना करियर बहुत अच्छा बना सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने अपनी जिंदगी से जुड़े काफी पहलुओं को अपनी किताब में जगह दी है।