खलबली मची है

शहर की कानून-व्यवस्था को बरकरार रखने की जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन की होती है। मगर, इन दिनों खुद महकमें के अंदरखाने में खलबली मची है। एडीएम सिटी को हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी का मामला अभी ठंडा भी नहीं हो पाया था कि अब एक अदद घूमने वाली कुर्सी ने कलक्ट्रेट में बवंडर मचा दिया है। इससे भी ज्यादा वीआईपीज के प्रोटोकॉल को सही ढंग से मैनेज नहीं किये जाने की कमी सामने आई है। पार्लियामेंट इलेक्शन के सीडी कांड के बाद तो बवाल और ज्यादा बढ़ गया है। हालत ये है कि इस सबसे आजिज आकर एडीएम सिटी ने तो शासन से अपने ट्रांसफर तक की रिक्वेस्ट कर डाली है। अफसर सीनियर हो या जूनियर। कानाफूसी का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
मुझे इस शहर में नहीं रहना

ये तो सबको मालूम है कि पिछले दिनों मकान पर कब्जा खाली कराने के मामले में हाईकोर्ट ने एडीएम सिटी को कोर्ट में रोक लिया था। एडीएम सिटी का कहना है कि इस पूरे मसले में उनकी कोई गलती नहीं थी। मीडिया में भी पूरे तथ्य नहीं लिखे गए सिर्फ प्रशासन को ही गलत ठहराया। हकीकत तो ये थी कि हाईकोर्ट ने इसलिए रोका क्योंकि अन्य केसेज के फैसले सुनाने थे। बोले, मेरे बाद बनारस के डीएम पर 10,000 का जुर्माना हुआ, कानपुर के एनएसए (जो बीएसए के बिहाफ पर कोर्ट में प्रेजेंट हुए थे) पर 50,000 रुपए और एक एसडीएम पर भी कार्यवाही हुई थी। ये तो किसी ने लिखा नहींसब मेरे पीछे पड़ गए.अगर ईमानदारी से काम करने की सजा यही है तो मैं इस शहर में ही नहीं रहना चाहते। इस सिलसिले में उन्होंने चीफ सेक्रेटरी को रिटेन में अपने ट्रांसफर की फरियाद लिखकर भी दे दी है।
सिटी मजिस्ट्रेट बेस्ट रिप्लेसमेंट

सोर्सेज की मानें तो शासन ने एडीएम सिटी की फरियाद पर गंभीरता से विचार किया है। हालांकि, इससे पहले उनसे डिस्ट्रिक्ट में ही उनका बेस्ट रिप्लेसमेंट फाइंडआउट करने को कहा है। एडीएम सिटी ने सिटी मजिस्ट्रेट अविनाश सिंह को अपना बेस्ट रिप्लेसमेंट बताया है। इसलिए सिटी मजिस्ट्रेट को शायद जल्द ही एडीएम सिटी बना भी दिया जाए।
बात ही कुछ ऐसी है

प्रशासनिक हल्कों में सेकेंड हॉट टॉपिक एक घूमने वाली कुर्सी यानि रिवॉल्विंग चेयर बनी हुई है। इस स्पेशल कुर्सी की मांग एसडीएम सदर इंद्रजीत उत्तम ने एडीएम सिटी से की है। सोर्सेज की मानें तो एसडीएम को अपनी ओल्ड फैशन कुर्सी अच्छी नहीं लग रही। इसलिए उन्होंने घूमने वाली यानि रिवॉल्विंग चेयर की डिमांड कर दी। हालांकि, अफसरों को अपने मातहत की ये डिमांड अच्छी नहीं लगी। या यूं कहें कि अखर गई। क्योंकि आज भी कुछ सीनियर अफसरों के पास रिवॉल्विंग चेयर नहीं है।
हमारी भी तो पुरानी है

एसडीएम का लेटर जब एडीएम सिटी के पास पहुंचा तो उन्होंने ऑब्जेक्शन कर दिया। पहला सवाल यही पूछा कि अचानक ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी, जिसके लिए एसडीएम को घूमने वाली कुर्सी की जरूरत पड़ गई। एडीएम सिटी ने जरूर कहा कि अगर रिवॉल्विंग चेयर की बात है तो सबसे पहले मेरे ऑफिस की कुर्सियां बदली जानी चाहिए। क्योंकि यहां की चेयर भी काफी पुरानी हैं। आम हो या खास हर कोई इन कुर्सियों पर आकर बैठते हैं। फिलहाल, अभी इस रिवॉल्विंग चेयर पर कोई भी फैसला नहीं लिया गया है। चौंकना इसलिए भी लाजमी था क्योंकि ये डिमांड सामने प्रेजेंट होकर कही भी जा सकती थी। खैर, इस इश्यू पर कोई भी कुछ खुलकर तो बोल नहीं रहा, लेकिन सोर्सेज की मानें तो पहले भी जूनियर अफसर अपने आला अफसरों के सामने आने से कतराते थे।
बॉस का चेहरा नहीं देखना पड़ता

कुर्सी प्रकरण पर चर्चा बढ़ी तो कई लूपहोल्स खुलकर सामने आ गये। कलक्ट्रेट की नई बिल्डिंग में अफसरों की शिफ्टिंग के पीछे की कमियां भी खुलकर  सामने आ गईं। दरअसल, कुछ ऑफिसर्स नई बिल्डिंग में इसलिए शिफ्ट हो गए, जिससे रोज-रोज डीएम का सामना न करना पड़े। एडीएम सिटी ने इस बात पर एडीएम फाइनेंस एसपी सिंह को भी आड़े हाथों लिया। बोले, आखिर कैसे बिना चार्ज के जूनियर्स को न्यू बिल्डिंग्स में शिफ्ट कर दिया।
देनी पड़ती थी अटेंडेंस


फॉर्मर डीएम अनिल सागर के समय भी जूनियर्स ने कुछ ऐसा ही काम शुरू किया था। इस पर डीएम ने अपने ऑफिस में एक अटेंडेंस रजिस्टर रखवाया। सभी एसीएम, एडीएम और एसडीएम को  रजिस्टर पर साइन करना कम्पलसरी था। इस कारण डीएम का सामना करना मातहतों की मजबूरी बन गई। ऐसी चर्चा है कि नई बिल्डिंग बनने के बाद से दोबारा स्थितियां पुराने ट्रैक पर लौट आई हैं। सिटी मजिस्ट्रेट या एसीएम लेवल अफसरों को डीएम-एडीएम से कम ही सामना करना पड़ता है। चर्चा गरम है कि जूनियर्स को  सबक सिखाने के लिए दोबारा यही व्यवस्था लागू कर दी जाए।
ये तो बहुत नाइंसाफी है


खबरों की अगली कड़ी में प्रोटोकॉल का नंबर आता है। इस विभाग में भी काफी फेरबदल किया गया है। सोर्सेज के मुताबिक इसकी वजह भी काफी मजेदार है। दरअसल, इस वक्त प्रोटोकॉल विभाग एसीएम-3 राकेश कुमार के पास है। उन पर वीआईपीज का प्रोटोकॉल मैनेज नहीं करने का ठीकरा फोड़ा गया है। पिछले दिनों पॉलिटीशियन एनडी तिवारी और उनकी टीम ने इसी कारण सर्किट हाउस में हंगामा भी किया था (वो बात अलग है कि कमी उन्हीं लोगों के लेवल पर थी)। दूसरा, चौकाने वाले कारण उनका लुक एंड फील नहीं होना है। सीनियर अफसरों के अनुसार एसीएम-3 मैनेजमेंट में तो फेल्योर हैं हीं उनकी पर्सनेलिटी भी प्रोटोकॉल को मैनेज नहीं कर सकने वाली है। इसीलिए अब ये जिम्मेदारी एसीएम-5 एसके मिश्रा को सौंपी गई है। यहां एक बात  गौर करने वाली है कि आये दिन वीआईपीज की इतनी फ्रीक्वेंट विजिट्स होती हैं कि उन्हें मैनेज कर पाना आसान काम नहीं है। खैर, एसीएम-5 ये जिम्मेदारी कैसे मैनेज करते हैं ये देखना भी काफी रोचक होगा।