ऐसी है जानकारी
पिछली बार 1982 में गांव वालों ने इन मंदिरों को देखा था। उस समय भी नासिक ऐसे ही भयंकर सूखे की मार को झेल रहा था। हां, वो बात और है कि गर्मियों में कुछ मंदिरों के शिखर जरूर नजर आते हैं। ऐसे में इन दिनों गोदावरी नदी के घाट भी आसपास के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गए हैं। अब दूर-दूर से लोग यहां मंदिरों में दर्शन करने के लिए आते हैं। सिर्फ यही नहीं, अब तो यहां आरती-पूजन भी शुरू हो गया है। इन मंदिरों में ज्यादातर मंदिर भगवान शिव के हैं।

ये मंदिर हैं घाटों का हिस्सा
एएसआई के पास इन मंदिरों की भले ही कोई जानकारी न हो, लेकिन ब्रिटिशकालीन गजटियर में गोदावरी के घाटों और कुछ अन्य निर्माणों का जिक्र जरूर मिल जाता है। बताया जाता है कि ये सभी मंदिर गोदावरी के घाटों का ही हिस्सा हैं। इन्हें पेशवाओं के मंत्री सरदार हिंगणे और विंचुरकर ने उस समय बनवाया था, जब चंदोरी उनके क्षेत्राधिकार में शामिल होता था। नासिक गजटियर पर गौर करें तो 1907 में नंदूर मध्यमेश्वर बांध बनने के बाद ये घाट और मंदिर नदी में डूब गए थे।

ऐसी है मंदिर की शैली
इन मंदिरों की शैली के बारे में बताया गया है कि इनकी और घाटों की शैली हेमदपंथी है। हर मंदिर के अंदर एक शिवलिंग स्थापित है। बताया जाता है कि नदी की गहराई में स्थित एक मंदिर में एक देवता की लेटी हुई मूर्ति है। इस मूर्ति के बारे में माना जाता है कि ये इंद्र की मूर्ति है।

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