वैज्ञानिकों की प्रशंसा:
जीएसएलवी-एफ05 रॉकेट ने निर्धारित समय से 40 मिनट की देरी से श्रीहरिकोटा से शाम चार बजकर 50 मिनट पर उड़ान भरी। जिससे इस सफलता के संबंध में इसरो अध्यक्ष एएस किरण कुमार ने सबसे पहले इससे जुड़े वैज्ञानिकों की प्रशंसा की। वहीं राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने भी वैज्ञानिकों को बधाई दी।
क्रायोजेनिक इंजन प्रयोग:
सबसे पहले तो जियोसिन्क्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल के बारे में जानना जरूरी है। जीएसएलवी का इसरो द्वारा निर्मित मल्टी स्टेज रॉकेट है। यह दो टन से अधिक भार वाले उपग्रह को जमीन से 36,000 कि.मी. की ऊंचाई पर अंतरिक्ष में स्थापित करता है। इसमें क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल हुआ है।
मनचाही जगह पर इस्तेमाल:
क्रायोजेनिक तकनीक का प्रयोग ज्यादा वजन वाले उपग्रहों को अंतरिक्ष में मनचाही जगह पर इस्तेमाल करने के लिए किया जाता है। इस तकनीक में ईंधन बहुत कम तापमान पर द्रव रूप में प्रयुक्त होता है। ईंधन के रूप में तरल हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन के इस्तेमाल से उपग्रह को गति मिलती है।
स्वदेशी क्रायोजेनिक अपर स्टेज:
जीएसएलवी की यह उड़ान इसलिए ज्यादा खास है कि क्योकि यह स्वदेशी क्रायोजेनिक अपर स्टेज (सीयूएस) के साथ रही। जी हां यह जीएसएलवी रॉकेट की पहली सफल संचालन पूर्ण उड़ान थी क्योकि इसके पहले जीएसएलवी की जो उड़ाने हुई इस स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के विकास वाले दौर में हुई हैं।
बचाव कार्य में भी मदद:
एडवांस सैटेलाइट इनसैट-3डीआर मौसम संबंधी विभिन्न सूचनाओं की समय से पहले जानकारी देगा। इसके अलावा यह राहत एवं बचाव अभियानों में भी पूरी मदद करेगा। सबसे खास बात तो यह है कि इसमें लगे उपकरणों की मदद से रात में भी बादलों और धुंधले आकाश में नजर रखने में कोई परेशानी नहीं होगी।
19 चैनल साउंडर उपकरण:
इसमें करीब छह चैनल इमेजर व 19 चैनल साउंडर उपकरण लगाए गए हैं। इसके अलावा थर्मल इंफ्रारेड बैंड का इस्तेमाल हुआ है। जिससे समुद्र के तापमान को सटीक मापा जा सकेगा। यह 1,700 वाट सौर पैनल से यह खुद ऊर्जा बनाएगा। यह सूचना लेने-देने का काम भी काफी तेजी से करेगा।
दस साल तक की उम्र:
इसरो की ओर से तैयार किया गया है यह एडवांस सैटेलाइट इनसैट-3डीआर करीब 2211 किलोग्राम का है। इतना ही नहीं इसरो की ओर से इसकी एक उम्र भी निर्धारित की गई है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस इनसेट-3डीआर उपग्रह की अवधि दस साल निर्धारित हुई है।
तीसरी सफल उड़ान:
वहीं जीएसएलवी की क्रायोजेनिक इंजन के साथ लगातार तीसरी सफल उड़ान है। इसके पहले यह जीसेट-14 को जनवरी 2014 में और जीसेट-6 को अगस्त, 2015 में सफलतापूर्वक अंतरिक्ष कक्षा में स्थापित किया था। वहीं यह जीएसएलवी की यह दसवीं सफल उड़ान रही।
भारत छठा देश:
जीएसएलवी तीन चरणों वाला रॉकेट है। इसके तीसरे यानी कि अंतिम चरण में क्रायोजनकि इंजन का उपयोग होता है। भारत छठा ऐसा देश है जिसने क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन विकसित किया गया है। इसी इंजन से अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा चांद तक जा चुकी है।
4 मौसम उपग्रह बनाए:
वहीं यह भी जानना है जरूरी है कि इसरो ने अब तक 4 मौसम उपग्रह बनाए हैं। इससे पहले इसने 2002 में कल्पना-1, 2003 में इनसेट-3ए और 2013 में इनसैट-3डी नामक स्वदेशी मौसम उपग्रह लॉन्च किया है।
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