आगरा (ब्यूरो) । 9 हजार रुपए कमाने वाले राकेश के लिए ये खर्चा किसी पहाड़ को पार करने से कम नहीं था कि सेशन शुरू होने के अचानक से स्कूल ने डे्रस बदल दी। इसके लिए 1500-2000 रुपए तक और खर्च करने होंगे। ये दास्तां भले ही राकेश की हो, लेकिन इससे शहर का बड़ा तबका जूझ रहा है।

पढ़ाई नहीं, एक्टिविटी मार देती है
शास्त्रीपुरम निवासी अंकित ने बताया कि उनकी बेटी क्षेत्र में ही स्थित एक कॉन्वेंट स्कूल में क्लास फोर्थ की छात्रा है। स्कूल फीस नहीं जाती, लेकिन बुक्स से लेकर विभिन्न एक्टिविटी ही मार देती है। हर महीने स्कूल की ओर से कोई न कोई ऐसी एक्टिविटी कराई जाती है, जिसमें 500 रुपए से एक हजार तक का खर्चा आता है। अगर बच्चे को पैसे नहीं दें तो टीचर्स गलत व्यवहार करती है। इस बारे में स्कूल से शिकायत भी की गई, लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ।

दैनिक जागरण आईनेक्स्ट को भेजे मैसेज
दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की ओर से एजुकेशन के नाम पर हो रही लूट के मुद्दे को उठाया गया तो जिला ही नहीं बल्कि मंडलभर के पेरेंट्स का दर्द छलक उठा। एजुकेशन के नाम पर किस तरह लूटा जा रहा है इसको लेकर उन्होंने व्हाट्सएप पर और सोशल मीडिया पर मैसेज कर अपनी परेशानी बयां की। आगरा, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद, मथुरा, एटा, हाथरस निवासी 100 से अधिक पेरेंट्स ने स्कूल्स की ओर से दी गई बुक्स सेट की रेट लिस्ट के साथ मैसेज शेयर किए।

अकाउंट में आते हैं पांच हजार
आरटीई के तहत एडमिशन लेने वाले बच्चे के लिए पेरेंट्स के खाते में सरकार की ओर से पांच हजार रुपए भेजे जाते हैं। एकबार भेजे जाने वाले इस अमाउंट से पेरेंट्स को बच्चों के लिए बुक्स, कॉपी, ड्रेस, शू आदि के साथ अन्य एक्सेसरीज परचेज करनी होती है। नगला पदी के रहने नरेश चौधरी ने बताया कि क्लास एक में बच्चे का एडमिशन कराया था, बेटा क्लास थर्ड में आ चुका है, लेकिन अब तक खाते में पांच हजार रुपए नहीं आए हैं।

एनसीईआरटी के अनुसार पेमेंट, स्कूल में प्राइवेट पब्लिशर्स
सरकार की ओर से बुक्स के लिए जो पेमेंट किया जाता है, वह एनसीईआरटी बुक्स के अनुसार दिया जाता है। जबकि स्कूल्स में प्राइवेट पब्लिशर्स की बुक्स होती हैं। इसके चलते वह खर्चा नहीं उठा पाते हैं।

आरटीई के तहत एडमिशन
वर्ष 2023 में 3900 स्टूडेंट्स
वर्ष 2024 में 3400 सीट्स

ये मथुरा के लिए स्कूल की स्लिप है। जिसमें यूकेजी की बुक्स 1960 और एलकेजी की बुक्स 1645 रुपए की हंै। स्कूल ने लूट मचा रखी है।

शाहगंज क्षेत्र में स्थित स्कूल में क्लास सेवंथ का बुक सेट 5250 का है। शिकायत भी करें तो किससे, कौन सुनने वाला है। ये मुद्दा उठाने के लिए आपका आभार।

ट्रांसयमुना कॉलोनी स्थित स्कूल में बेटा क्लास सेवंथ का स्टूडेंट है। हर बार की तरह इस बार भी स्कूल से बुक स्टोर की स्लिप पकड़ा दी गई है। पिछली बार 5500 रुपए का बुक सेट लिया था। अब तो और महंगा ही आएगा। करें भी तो क्या।

आरटीई के तहत प्रकिया जटिल है। अफसर पेरेंट्स को गुमराह करते हैं। कई बार तो पेरेंट्स स्कूल और विभाग के बीच फुटबॉल बन जाते है। कई मामले ऐसे देखे हैं, लॉटरी में नाम आ गया, लेटर भी जारी हो गया, लेकिन स्कूल ने एडमिशन नहीं दिया। प्रशासन से भी गुहार लगाने के बाद भी
एडमिशन नहीं हो पाता। वहीं एडमिशन मिलने के बाद फीस तो माफ हो जाती है। बच्चे के लिए डे्रस, एक्टिविटी, बुक्स और कॉपी पेरेंट्स अफॉर्ड नहीं कर पाते। इससे दो नुकसान है बच्चे की शिक्षा प्रभावित होती है, वहीं बच्चा हीनभावना का शिकार भी होता है।
नरेश पारस, चाइल्ड एक्टिविस्ट

आरटीई के तहत एडमिशन में बड़ा खेल शामिल है। प्राइमरी क्लास के लिए एडमिशन में कई क्षेत्रों के स्कूल्स तो मैप ही नहीं है। बहुत सारे स्कूल्स ऐसे हैं, एडमिशन तो फ्री में कर देते हैं। बाद में बच्चों से पैसे की डिमांड करते हैं। ये डिमांड किसी भी रूप में हो सकती है, एक्टिविटी के नाम पर या फिर किसी अन्य तरीके से।
दीपक सिंह सरीन, राष्ट्रीय संयोजक, प्रोग्रेसिव एसेासिएशन ऑफ पेरेंट्स

अगर कोई पेरेंट्स शिकायत लेकर आते हैं इस पर संज्ञान लेते हुए कार्यवाही की जाएगी।
जितेंद्र कुमार गौड़, बीएसए, आगरा

स्कूल्स को 450 रुपए 10 महीने के मिलते हैं। ये देश में सबसे कम है। वो भी कई सालों तक नहीं मिलते हैं। आरटीई के तहत लाभ लेने वाले स्टूडेंट्स के सिलेक्शन पर आशंकित हूं। जिन बच्चों को आरटीई का लाभ मिलना चाहिए, उन्हें नहीं मिल पाता। मुझे नहीं पता कि गलत बच्चों का किस तरह सिलेक्शन हो जाता है। पेरेंट्स के अकाउंट में बुक्स और अन्य एक्सेसरीज के लिए सरकार की ओर से पांच हजार रुपए भेजे जाते हैं।
डॉ। सुशील गुप्ता, अध्यक्ष, अप्सा

हर किसी को एजुकेशन देने के लिए भले ही सरकार की ओर से कितने ही प्रयास क्यों ने किए जा रहेे हों, लेकिन शिक्षा माफिया के हावी होने के चलते ये सपना साकार नहीं हो पा रहा है। अब तो जितनी स्कूल की फीस होती है, उतना ही खर्चा बुक्स-कॉपी, विभिन्न एक्टिविटी, ड्रेस के नाम पर होता है।

_ LAXMIKANT
एजुकेशन के नाम पर लूट हो रही है। 10 पेज की बुक्स 200 रुपए तक में बेची जा रही है। न तो प्रशासन और न ही शासन इस ओर कोई ध्यान दे रहा है। इस लूट पर जल्द से जल्द लगाम लगाने की जरूरत है। जिससे आम लोगों को राहत मिल सके।

_ suresh chandra
जब प्राइवेट पब्लिशर्स की बुक्स के सभी चैप्टर एनसीईआरटी बुक्स की तर्ज पर होते हैं। तो एनसीईआरटी बुक्स क्यों नहीं स्कूल में लगाई जातीं। वजह दी जाती है कि एनसीईआरटी बुक्स की अवेलेबिलिटी नहीं है। जबकि हर बुक ऑनलाइन अवेलेबल है।

-sandeep tiwari