ध्वनि प्रदूषण से कम हो रही क्षमता
ध्वनि का स्तर सामान्य रूप से 20 से लेकर 40 डेसीबल तक ही होनी चाहिए। बच्चों में कान बहने की समस्या रहती है। इसे हल्के में ना लें और देर किए बिना विशेषज्ञ को दिखाएं। कान की नस हेडफोन की तेज आवाज के लिए तैयार नहीं होती हैं और अचानक से तेज आवाज आने लगती है। दिन में दो घंटे हेडफोन का इस्तेमाल करने पर सुनने की शक्ति स्थायी रूप से कम हो रही है। इसका कोई इलाज नहीं है। 20 से 27 वर्ष के युवा की ईयरफोन के इस्तेमाल से बीस फीसदी सुनने की क्षमता कम हो गई। कोई इलाज नहीं है। इसलिए हल्की आवाज सुनाई नहीं देती हैं। ईएनटी विशेषज्ञों के साथ ही स्वास्थ्य विभाग भी ईयरफोन का इस्तेमाल न करने के लिए अवेयर करेंगे। वहीं, डीजे, लाउडस्पीकर की तेज आवाज से सुनने की क्षमता पूरी तरह से खत्म हो रही है।

सुनने की क्षमता के मानक ये हैं
-15 से 20 डेसीबेल तक की आवाज से कान को कोई नुकसान नहीं होता है, यदि आप इतनी आवाज में संगीत सुनते हैं तो सुनने की क्षमता को नुकसान होने की संभावना न के बराबर रहती है।
-60 से 65 डेसीबेल के बाद कान को आवाज चुभने लगती है। इससे कान में खुजली महसूस हो सकती है।
-85 से 120 डेसीबेल आवाज पटाखे की होती है, यह आवाज भी कान के पर्दे को प्रभावित कर सकती है।
-85 से 115 डेसीबेल आवाज हेडफोन की होती है। यदि फुल वॉल्यूम पर आप लंबे समय तक संगीत सुनते हैं तो यह हानिकारक हो सकता है।
-115 डेसीबेल की आवाज से कान का पर्दा फट सकता है। यह बच्चे से लेकर बड़ों तक के लिए हानिकारक है।

सुनने की क्षमता स्थायी रूप से खत्म होने का समय
120 डेसिबल की ध्वनि में कुछ ही देर में
105 डेसिबल की ध्वनि में 15 मिनट तक
90 डेसिबल की ध्वनि में चार घंटे तक
80 डेसिबल की ध्वनि आठ घंटे तक
70 डेसिबल की ध्वनि 10 घंटे तक, अस्थायी रूप से कुछ देर के लिए कान गुम हो सकता है
50 से 60 डेसिबल सामान्य स्तर है कोई परेशानी नहीं होती है
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किस से कितनी ध्वनि
120 डेसिबल जेट विमान, लड़ाकू विमान
100 से 120 डेसिबल बम पटाखे, लाउडस्पीकर, डीजे
90 से 100 डेसिबल बम पटाखे और लाउडस्पीकर
70 से 90 डेसिबल लाउडस्पीकर, डीजे, होर्न
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ये करें
ईयरफोन और हेडफोन का इस्तेमाल न करें, मोबाइल का स्पीकर आन कर बात करें
कीपेड फोन का इस्तेमाल करें
डीजे, लाउडस्पीकर वाले स्थान पर जाएं तो कान में रूई लगा लें
नाइस कैंसलेशन हेडफोन का इस्तेमाल कर सकते हैं
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ईयरफोन से कान में तेज ध्वनि से आवाज पहुंचती है। इसके लिए कान की सुनने वाली नस तैयार नहीं होती हैं। इससे नस को क्षति पहुंचने लगती है और 30 प्रतिशत तक सुनने की क्षमता कम हो रही है। बच्चों से लेकर युवा सुनने की क्षमता कम होने की समस्या के साथ आ रहे हैं। यह ठीक नहीं हो सकती है।
डॉ। राजीव पचौरी, वरिष्ठ ईएनटी सर्जन


ध्वनि प्रदूषण से सुनने की क्षमता कम हो रही है, इसमें सबसे ज्यादा नुकसान तेज आवाज में बजने वाले डीजे और लाउडस्पीकर से हो रहा है। इससे हेयर सेल को क्षति पहुंचती है और सुनने की क्षमता कम होने लगती है। 120 डेसिबल की ध्वनि से स्थायी रूप से पूरी तरह से सुनना बंद हो सकता है।


साइन बोर्ड लगाने चाहिए
स्कूलों और अस्पतालों जैसे क्षेत्रों के आसपास ट्रैफिक की आवाज को कम से कम किया जाना चाहिए। साइलेंस जोन वाले साइन बोर्ड लगाए जाने चाहिए।
डॉ। वीपी सिंह, ईएनटी, मेडिकल कॉलेज


स्वास्थ्य के लिए हानिकारक शोरगुल
शहरी क्षेत्र में वाहनों के शोरगुल के अलावा अन्य माध्यमों से फैल रहा ध्वनि प्रदूषण सेहत के लिए हानिकारक है। 50 डेसिबल ध्वनि स्तर तक सेहत खराब नहीं होती, लेकिन यदि यही ध्वनि स्तर 80 डेसिबल हो जाता है तो वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

डॉ। अखिलेश मोहन, मुख्य चिकित्सा अधिकारी

घटने लगी सुनने की क्षमता
लगातार शोर-शराबे के बीच रहने से कान को नुकसान पहुंचता है। इससे सुनने की क्षमता घटने लगती है। लगातार शोर से संवेदी तंत्रिका को नुकसान हो सकता है।
डॉ। बीपी कौशिक, ईएनटी, जिला अस्पताल