समझौते के लिए बनाया था दबाव

जगदीशपुरा थाने में यह मुकदमा यमुना ब्रिज के रहने वाले धर्मेंद्र ङ्क्षसह ने लिखाया है। धर्मेंद्र ने पुलिस को बताया कि वह इस मामले में पीडि़त परिवार की ओर से पैरवी कर रहे हैं। वह उन्हें डीजीपी ऑफिस तक लेकर गए थे। धर्मेंद्र के पास पांच जनवरी की सुबह तत्कालीन एसओ एमएम गेट (पूर्व एसओ जगदीशपुरा) जितेंद्र कुमार का फोन आया। एसओ ने कहा कि एमजी रोड स्थित होटल पीएल पैलेस पर आकर मिलो। धर्मेंद्र समेत चार लोग होटल पर पहुंचे। पीडि़त पक्ष का रिश्तेदार मोहित भी साथ था। मोहित को कार में छोड़कर धर्मेंद्र समेत तीन लोग कमरे में गए थे। बिल्डर कमल चौधरी और एसओ जितेंद्र कुमार वहां मौजूद थे। वे मामले में समझौता करने को रुपए का प्रलोभन देने लगे।

गोली मारने की दी धमकी

पीडि़त धर्मेंद्र ने बात नहीं मानी तो बिल्डर और तत्कालीन एसओ जितेंद्र कुमार ने उन्हें धमकाया। खतौनी से उमा देवी का नाम भी कटवाने की धमकी दी गई। गोली मारने की धमकी भी दी। वे करीब एक घंटे तक वहां रहे। धमकी से भयभीत होकर वहां से चले आए।

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पीडि़त पक्ष ने सोमवार को इस घटना की जानकारी दी थी। पुलिस ने होटल पीएल पैलेस के सीसीटीवी कैमरों की रिकार्डिंग चेक की। आरोपी जितेंद्र कुमार के होटल में आने के फुटेज मिले। बिल्डर कमल चौधरी के होटल में आने के फुटेज नहीं मिले। वह पहले से कमरे में था। पीडि़त ने बताया था। इसलिए कई घंटे पहले से कैमरे की रिकार्डिंग खंगाली जा रही है। मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।

- सूरज राय, डीसीपी सिटी, आगरा

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एसओ और बिल्डर पर ईनाम की तैयारी

मुकदमे से पहले ही एसओ और बिल्डर शहर से फरार हो गए। निलंबन से पहले एसओ और बिल्डर ने मुलाकात की थी। इस बात के प्रमाण पुलिस को मिले हैं। एक मुकदमा भी लिखाया गया है। दोनों पर अब इनाम की तैयारी है। डीसीपी सिटी सूरज कुमार राय ने बताया कि मुकदमे में पुरुषोत्त पहलवान का नाम भी बढ़ाया जा रहा है। उसकी तलाश में पुलिस दबिश दे रही है। पीडि़त पक्ष को उसने धमकाया था।

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इनसेट

14 दिन में मिल गई एफएसल की रिपोर्ट

बोदला-लोहामंडी मार्ग स्थित करोड़ों की जमीन पर कब्जे को केयरटेकर के परिवार को फर्जी मुकदमों में फंसाने के लिए तत्कालीन एसओ जगदीशपुरा जितेंद्र कुमार, बिल्डर कमल चौधरी व अन्य ने गहरी साजिश रची थी। हर स्तर पर राकेट की रफ्तार से काम हुआ। एनडीपीएस में दर्ज मुकदमे के विवेचक ने 22 दिन में पांच पर्चे काटकर चार्जशीट लगा दी। 14 दिन में फोरेंसिक वैज्ञानिकों ने गांजा का परीक्षण कर रिपोर्ट भी दे दी। जबकि सामान्य मामलों में महीनों में रिपोर्ट तब मिलती है, जब पुलिस कई रिमाइंडर देती है।

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उठ रहे ये सवाल

- गांजा बेचने वाला अरुण था, लेकिन उसके बारे में पुलिस क्यों पता कर सकी?

- फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट मिलने में महज 14 दिन का वक्त लगा? जबकि सामान्य मामलों में इतनी तेजी नहीं रहती।

- विवेचना की मानीटङ्क्षरग करने वाले अधिकारी क्या कर रहे थे? क्या उन्हें इसमें कोई पेंच नजर नहीं आया।

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संयुक्त मजिस्ट्रेट करेंगे जांच

डीएम भानु चंद्र गोस्वामी ने संयुक्त मजिस्ट्रेट और एसडीएम एत्मादपुर कृष्ण कुमार ङ्क्षसह को आबकारी विभाग के इंस्पेक्टर समेत कर्मचारियों की भूमिका कीजांच के आदेश दिए हैं। संयुक्त मजिस्ट्रेट यह भी पता लगाएंगे कि शराब कैसे और कहां से आई है? बता दें कि पुलिस और आबकारी विभाग की संयुक्त टीम ने नौ अक्टूबर को जर्जर भवन पर छापा मारा था। पुष्पा, पूनम और फुरकान को गिरफ्तार किया गया। यह छापेमारी मुखबिर की सूचना पर हुई थी। आबकारी विभाग के सेक्टर चार के इंस्पेक्टर त्रिभुवन ङ्क्षसह हयांकी सहित अन्य सिपाही टीम में शामिल थे। छापेमारी की जानकारी विभाग के उच्च अधिकारियों को नहीं दी गई थी।

कई सफेदपोश भी शामिल

करोड़ों की जमीन पर कब्जे के केस में कई सफेदपोश भी शामिल नजर आ रहे हैं। समय-समय पर इस संपत्ति पर कब्जे के लिए प्रयास किए जाते रहे हैं और इसमें कानून एवं सत्ता के गठजोड़ से असल मालिकों पर दबाव लगातार दबाव बनाया गया। जांच के एक माननीय और पूर्व ब्लाक प्रमुख का दखल भी उजागर हो रहा है। पीडि़तों पर कार्रवाई के लिए आरोपी इंस्पेक्टर का तबादला कराने में पूर्व ब्लाक प्रमुख की भूमिका सामने आ रही है। वहीं, पीडि़तों के जख्म पर मरहम लगाने के नाम पर भी कुछ सत्तापक्ष के बैठे लोगों की इस केस में दिलचस्पी बढ़ रही है।