बच्चे हो रहे ऑटिज्म का शिकार
ऑटिज़्म को मेडिकल भाषा में ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर कहते हैं। यह एक विकास संबंधी गड़बड़ी है, जिससे पीडि़त व्यक्ति को बातचीत करने में, पढऩे-लिखने में और समाज में मेलजोल बनाने में परेशानियां आती हैं। ऑटिज़्म एक ऐसी स्थिति है, जिससे पीडि़त व्यक्ति का दिमाग अन्य लोगों के दिमाग की तुलना में अलग तरीके से काम करता है। वहीं, ऑटिज़्म से पीडि़त लोग भी एक-दूसरे से अलग होते हैं।

पढऩे लिखने में आती है समस्या
इस बीमारी से पीडि़त लोग नौकरी करने, परिवार और दोस्तों के साथ मेल-मिलाप करने में सक्षम होते हैं, लेकिन कई बार उन्हें इसके लिए दूसरों की मदद लेनी पड़ती है। जहां कुछ ऑटिस्टिक लोगों को पढऩे-लिखने में परेशानी होती है। तो वहीं ऑटिज्म के कुछ मरीज या तो पढऩे लिखने में बहुत तेज होते हैं या सामान्य होते हैं। परिवार, टीचर्स या दोस्तों के सहयोग से ये लोग नई स्किल्स सीखने में भी सक्षम होते हैं और बिना किसी सहारे के काम कर पाते हैं।


ऑटिज़्म के तीन प्रकार

1-ऑटिस्टिक डिसॉर्डर
-क्लासिक ऑटिज़्म यह ऑटिज़्म का सबसे आम प्रकार है। जो लोग ऑटिज्म के इस डिसऑडर से प्रभावित होते हैं उन्हें सामाजिक व्यवहार में और अन्य लोगों से बातचीत करने में मुश्किलें होती हैं।

2-अस्पेर्गेर सिंड्रोम
-इस सिंड्रोम को ऑटिस्टिक डिसऑडर का सबसे हल्का रूप माना जाता है। इस सिंड्रोम से पीडि़त व्यक्ति कभी कभार अपने व्यवहार से भले ही अजीब लग सकते हैं लेकिन, कुछ खास विषयों में इनकी रूचि बहुत अधिक हो सकती है।

3-पर्वेसिव डेवलपमेंट डिसॉर्डर
-आमतौर पर इसे ऑटिज़्म का प्रकार नहीं माना जाता है। कुछ विशेष स्थितियों में ही लोगों को इस डिसॉर्डर से पीडि़त माना जाता है।

सामान्य से गंभीर हो सकती है ऑटिज़्म
इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर 12-18 महीनों की उम्र में दिखते हैं जो सामान्य से लेकर गंभीर हो सकते हैं। ये समस्याएं पूरे जीवनकाल तक रह सकती हैं। नवजात शिशु जब ऑटिज्म का शिकार होते हैं उनमें विकास के कई संकेत दिखाई नहीं देते है, जैसे इक्का-दुक्का शब्द बार-बार बोलना या बड़बड़ाना, किसी चीज़ की तरफ इशारा करना, मां की आवाज़ सुनकर मुस्कुराना या उसे प्रतिक्रिया देना, हाथों के बल चलकर दूसरों के पास जाना, आंखों में आंखें मिलाकर ना देखना या आई-कॉन्टैक्ट ना बनाना।

ऑटिज़्म से प्रभावित बच्चों में लक्षण
-दूसरे बच्चों से घुलने-मिलने से बचना, अकेले रहना
-खेल-कूद में हिस्सा ना लेना या रूचि ना दिखाना
-किसी एक जगह पर घंटों अकेले या चुपचाप बैठना
- किसी एक ही वस्तु पर ध्यान देना, दूसरों से संपर्क ना करना
- प्यास लगने पर 'मुझे पानी पीना हैÓ कहने की बजाय 'क्या तुम पानी पीओगेÓ कहना
-बातचीत के दौरान दूसरे व्यक्ति के हर शब्द को दोहराना, सनकी व्यवहार करना


बिहेवियरल थेरेपी से ऑटिज्म से राहत
मनोरोगी एक्पर्ट केसी गुनानी बताते हैं कि वर्तमान में ऑटिज़्म के लिए कोई उपचार उपलब्ध नहीं है। हालांकि, स्टडीज़ में ऐसे संकेत दिए गए हैं जिसमें बचपन में ही इंटरवेंशनल ट्रीटमेंट सर्विसेज़ की मदद से ऑटिस्टिक बच्चों को पढऩे-लिखने जैसी ज़रूरी स्किल्स सीखने में सहायता मिल सके। इसमें एजुकेशनल प्रोग्राम और बिहेवियरल थेरेपी के साथ-साथ ऐसे स्किल्स ओरिएंटेड ट्रेनिंग सेशन्स भी कराए जाते हैं जो बच्चों को बोलना, सामाजिक व्यवहार और सकारात्मक व्यवहार सीखने में मदद करते हैं।


बच्चों का इन टिप्स के साथ रखें ख्याल
ऑटिज़्म नर्वस सिस्टम से जुड़ी हुई समस्या है। इसका असर बच्चों पर पूरी जि़ंदगी होता है। जिसके, इन बच्चों के लिए जि़ंदगी बहुत अधिक चुनौतिपूर्ण हो सकती है। इसीलिए, ऐसे बच्चों की मदद करने की कोशिश करें। ऑटिस्टिक बच्चों को साधारण बच्चों के साथ मिलने-जुलने और खेलने या साथ रहने में दिक्कतें हो सकती हैं। यही वजह है कि ऑटिस्टिक बच्चों के साथ बहुत ही सावधानी के साथ व्यवहार करना चाहिए और इनका खास ख्याल रखना चाहिए।


ऑटिस्टिक बच्चों की करें तारीफ, दें प्राइज
2 अप्रैल को 'विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस 2024Ó मनाया जा रहा है। अधिकतर लोगों को लगता है कि ऑटिज्म सिर्फ बच्चों को होने वाली मानसिक बीमारी है, पर ऐसा नहीं है। ऑटिज्म से पीडि़त बच्चे जल्दी दूसरों से बात नहीं करते। उनके साथ मिलने-जुलने में खुद को असहज महसूस करते हैं। ऐसे में पेरेंट्स अपनी तरफ से अधिक प्रयास करें। अपने ऑटिस्टिक बच्चे की तारीफ करें। उसे प्राइज के रूप में कोई गिफ्ट दें।


मंदबुद्धि और आटिज्म में अंतर क्या है?
समाज में आटिज्म और मंदबुद्धि बालक की पहचान में कई बार गलतियां होती है। सामान्य तरीके से देखने पर मंदबुद्धि और आटिज्म में कोई विशेष अंतर समझ में नहीं आता है। आज का दौर वो दौर है जब किसी भी चीज के बारे में तुरंत बोलना होता है, जबकि मंदबुद्धि या आटिज्म के शिकार बच्चे बहुत देर में प्रतिक्रिया देते हैं या नहीं देते हैं।


हार्मोन की अधिकता से होता है यह खतरा
प्रेगनेंसी में महिला के शरीर में एस्ट्रोजन का लेवन कम ज्यादा होता रहता है। वैसे तो एस्ट्रोजन हार्मोन शिशु के विकास के लिए जरूरी है, लेकिन जब इसकी मात्रा अधिक हो जाती है तो यह मानसिक सेहत पर नकारात्मक असर डालता है।



मेरा बच्चा शुरू के दो साल में चुप और अलग रहता था, स्कूल जाने पर टीचर्स ने इसकी जानकारी दी। इस संबंध में डॉक्टर्स से सलाह ली, तब ऑटिज्म के बारे में पता चला, हमारा बच्चा अब सामान्य है।
सुनीता रानी, पेरेंट्स


इस तरह की बीमारी के बारे में मुझे काफी पहले पता चला था, अमेरिका में रहने वाले रिलेटिव की बेटी को ऑटिज्म था, इस पर हमने अपने बच्चों पर ध्यान दिया।
स्वाति मगरानी, पेरेंट्स


मेरा बेटा तीन साल का होने वाला है, प्रॉपर बोलने में समस्या आ रही है, उसको हाल ही में हरियाणा में दिखाया है, पहले से बहुत आराम है।
पुनीत, पेरेंट्स


ऑटिज्म एक प्रकार का डिसऑर्डर होता है। सामान्य शब्दों में कहें तो यह एक मानसिक बीमारी है। बच्चों में इसके लक्षण जन्म लेने के तीन-चार महीने के बाद से लेकर तीन वर्ष की आयु में नजर आने लगते हैं ऐसी स्थिति होने पर डॉक्टर से परामर्श करें।
डॉ। केसी गुनानी, मनोचिकित्सक