रामबागस्थित स्कूल
स्कूल स्टॉफ और रिपोर्टर

-रिपोर्टर, स्कूल से कुछ पेरेंट्स बुक्स लेकर निकलेे हैं.
-स्कूल स्टॉफ: जी, बुक्स दी जा रहीं हैं, पेरेंट्स को.

-रिपोर्टर, स्कूल से बुक सेल नहीं कर सकते है आप
-स्कूल स्टॉफ: पता है हमको, लेकिन ये पेरेंट्स की सुविधा के लिए है।

-स्कूल स्टॉफ: पीटीएम में पेरेंट्स की सहमति ले गई थी।
-रिपोर्टर, फिर भी ये गलत तो है, रेट भी अधिक हैं।

-स्कूल स्टॉफ: आप ये सब क्यों पूछ रहे हैं?
-रिपोर्टर, हम भी पेरेंट्स है बच्चों के.

मधुनगर स्थित स्कूल
स्कूल कर्मचारी और रिपोर्टर

-रिपोर्टर, स्कूल में बुक्स कहां से दी जा रहीं है?
-स्कूल कर्मचारी, आपको किस क्लास की बुक्स चाहिए?

-रिपोर्टर, हमको क्लास फोर्थ की बुक्स चाहिए
-स्कूल कर्मचारी, आपको मिल जाएगी, 4240 रुपए का है.

-रिपोर्टर, इतने रुपए तो नहीं है हमारे पास, कुछ कम हैं।
-स्कूल कर्मचारी, कल लेकर आना फिर ले जाना।

-रिपोर्टर, दुकान से नहीं मिल रही है क्या बुक्स?
-स्कूल कर्मचारी, नहीं पेरेंट्स की सुविधा के लिए है।

स्कूल से ही बेच रहे बुक सेट
दरअसल, न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए अगले सत्र से सभी क्लासों में एनसीईआरटी की बुक्स लागू करवाने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने मामले में सीबीएसई को निर्र्देश दिए थे, लेकिन इसके बावजूद निजी स्कूलों की ओर से अब भी प्राइवेट पब्लिकेशन की बुक्स खरीदने के लिए पेरेंट्स से कहा जा रहा है। स्कूलों की दुकान चलाने के लिए वहां दुकानदार को फिक्स कमीशन दिया जा रहा है, वहीं कुछ एक स्कूल्स में स्कूल से ही बुक सेट पेरेंट्स को दिए जा रहे हैं। शहर के सभी बड़े निजी स्कूलों ने दुकानों से साथ सांठगांठ कर रखी है।


पेरेंट्स को बिल के नाम पर थमा रहे कच्ची स्लिप
शहर के निजी स्कूल प्राइवेट पब्लिशर की बुक्स लगवाकर मोटा कमीशन वसूल रहे हैं। एनसीईआरटी की छठीं से 8 वीं क्लास का बुक सेट मार्केट में आसानी से नहीं मिल रहा है, लेकिन प्राइवेट पब्लिशर की बुक्स का सेट सेट पांच से छह हजार में आता है। मधुनगर, शास्त्रीपुरम, आवास विकास और रामबाग स्थित निजी स्कूल में बुक सेट स्कूल से ही पेरेंट्स को दिए जा रहे हैं। बिल के नाम पर हाथ की लिखी पर्ची उनको शेयर की जा रही है। पांचवी क्लास की बुक्स का सेट 5246 रुपए में खरीदना पड़ रहा है। शहर के कान्वेंट स्कूल भी अपनी मर्जी से बुक्स का चयन करते हैं। एंट्री लेवल की बुक्स का सेट ढाई हजार में मिल रहा है। वहीं, एलकेजी का 3240 रुपए का सेट मिल रहा है।

स्कूल तैयार करते हैं पूरी प्लानिंग
नए सत्र आने से पहले ही बुक्स के बदलने के लिए स्कूलों में पूरी प्लानिंग तैयार की जाती है। स्कूलों द्वारा कमेटी बनाई जाती है। सत्र शुरू होने से पहले ही पब्लिशर्स की लाइन स्कूलों में लगनी शुरू हो जाती है। कमेटी अलग-अलग प्रकाशकों की बुक्स चेक करती है।
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स्टूडेंट्स को अपडेट के नाम पर बुक्स चेंज
बुक्स को लेकर पीटीएम में पेरेंट्स को जानकारी दी जाती है। उन्हें कहा जाता है कि शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव हो रहा है.नई चीजें बुक्स में जुड़ रही है। स्टूडेंट्स को अपडेट करने के लिए जरूरी है कि उन्हें नई जानकारी दी जाए। नई किताबें पढ़ाई जाए। उधर, जो पब्लिशर अधिक कमीशन या गिफ्ट देने के लिए राजी होते हैं, उनकी बुक्स लगा दी जाती है।

सीधे स्कूल से करते हैं संपर्क
बुक्स बिक्री के लिए दुकान सीधे निजी स्कूलों के संचालको से संपर्क करते है। कमीशन के आधार पर बुक्स लागू करने की सौदेबाजी की जाती है। जो पब्लिशर अधिक कमीशन देता है उसी की बुक्स संचालक अपने स्कूल में लागू करते है। पब्लिकशर से डील फाइनल होने के बाद बुक्स को मार्केट में किसी एक दुकान पर बिक्री के लिए रखवाया जाता है। जो दुकानदार उन पुस्तको को बेचता है उसे भी दस फीसदी तक का कमीशन मिलता है।



पेरेंट्स को बुक्स खरीदने के लिए बाजार में भटकना न पड़े। एक ही जगह पर सभी चीजे आसानी से उपलब्ध हो जाए, इसके लिए दुकानदारों को अलॉट किया जाता है। इसमें सीधे स्कूलों का कोई रोल नहीं होता है। हर साल प्रकाशक बुक्स को अपडेट करते है। नई चीजें जोड़ते हैं। ऐसे में पुरानी बुक्स आउटडेटेड हो जाती है।
रामानन्द चौहान, सीबीएसई सिटी को-ऑर्डिनेटर


शहर से बुक्स को लेकर कंप्लेंन मिली हैं, बीईओ को इस संबंध में दिशा निर्देश दिए गए हैं, जांच रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई कराई जाएगी। ऐसे स्कूल संचालक स्कूल में बुक सेल नहीं कर सकते हैं।
जितेन्द्र गौड, बीएसए



निजी स्कूलों में बुक्स की संख्या अधिक होती है, कुछ बुक्स ऐसी हैं जो पूरे साल में एक बार भी नहीं पढ़ाई जाती हैं। लेकिन इसके बाद भी स्कूल के सेट मेें इनको शामिल किया गया है।
सिद्धार्थ शर्मा, पेरेंट्स


पेरेंट्स विभाग से कंप्लेंन करते हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती है। शिक्षा विभाग द्वारा अभियान चलाकर ऐसे मामलों को सॉल्व करना होगा। रूल्स की अनदेखी करने वालों पर सख्ती करनी चाहिए।
प्रशांत जुनेजा, पेरेंट्स